नमस्कार किसान भाइयों जब बात धान की हो और वो भी ऐसी किस्म की जो खेत में कमाल करे और जेब में माल भरे, तो 6444 गोल्ड धान का नाम सबसे ऊपर आता है। ये हाइब्रिड किस्म न सिर्फ ज्यादा पैदावार देती है, बल्कि रोगों से भी डटकर मुकाबला करती है। बाजार में इसके दाने की डिमांड भी जबरदस्त है।
तो चलो, आज हम 6444 गोल्ड धान की खेती का पूरा फंडा देसी स्टाइल में समझते हैं, ताकि तुम भी इसे उगाकर मोटा मुनाफा कमा सको।
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6444 गोल्ड धान: ये है क्या?
6444 गोल्ड एक हाइब्रिड धान की किस्म है, जिसे नुज़ीवेडु सीड्स प्राइवेट लिमिटेड (NSL) ने तैयार किया है। ये कम समय में पकने वाली, ज्यादा उपज देने वाली और रोगों से लड़ने वाली किस्म है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ये किस्म खूब चलती है। इसका दाना लंबा, पतला और चमकदार होता है, जो बाजार में सबको पसंद आता है।
खासियतें एक नजर में:
- पकने का समय: 110-115 दिन।
- पैदावार: 60-75 क्विंटल/हेक्टेयर।
- पौधे की ऊंचाई: 95-105 सेमी।
- दाना: लंबा, पतला, चमकदार।
- रोग प्रतिरोध: ब्लास्ट, झुलसा (BLB), तना छेदक।
- उपयुक्त क्षेत्र: यूपी, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बंगाल, झारखंड।

मिट्टी और मौसम का जुगाड़
धान की खेती के लिए सही मिट्टी और अनुकूल मौसम का चयन बेहद जरूरी होता है। अच्छी उपज के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें पानी को रोकने की क्षमता हो और जल निकासी भी सही तरीके से हो सके। खेत को तैयार करते समय मिट्टी को अच्छी तरह जोतकर समतल कर लेना चाहिए ताकि पानी हर जगह समान रूप से फैले। इसके साथ ही खेत में जैविक खाद और सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
मौसम की बात करें तो धान को गर्म और आद्र्र जलवायु की जरूरत होती है। बुवाई के समय हल्की गर्मी और अच्छी धूप आवश्यक होती है, जबकि रोपाई के बाद मानसून का पानी फसल के लिए लाभदायक होता है। धान के पौधे को बढ़ने के लिए लगातार नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए बारिश वाले मौसम का सही चुनाव करना जरूरी है। यदि बारिश समय पर न हो, तो सिंचाई का विकल्प जरूर तैयार रखना चाहिए। मिट्टी और मौसम के इस संतुलित जुगाड़ से ही फसल भरपूर और गुणवत्तापूर्ण होती है।
मिट्टी:
- दोमट, बलुई दोमट या काली मिट्टी इसके लिए बेस्ट।
- मिट्टी का pH 5.5 से 7.5 के बीच हो, तो फसल लहलहाएगी।
- खेत में पानी रुकने की व्यवस्था हो, लेकिन जलभराव न हो, ये ध्यान रखो।
मौसम:
- गर्म और नम मौसम इसका दोस्त है।
- 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 1000-1500 मिमी बारिश इसके लिए परफेक्ट।
कब बोएँ?
6444 गोल्ड खरीफ की फसल है, यानी मानसून इसका बेस्ट टाइम है। बुआई और रोपाई का समय जगह के हिसाब से:
- उत्तर प्रदेश: बुआई 20 जून-10 जुलाई, रोपाई 10 जुलाई-25 जुलाई।
- बिहार: बुआई जून अंत-जुलाई मध्य, रोपाई जुलाई मध्य-अगस्त शुरू।
- छत्तीसगढ़/ओडिशा: बुआई जून-जुलाई, रोपाई जुलाई-अगस्त।
बीज का चयन और तैयारी
धान की अच्छी पैदावार के लिए बीज का सही चयन सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है। 6444 एक उच्च गुणवत्ता वाला धान बीज है, जिसे किसान खासतौर पर उसकी अधिक उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और तेज विकास के लिए पसंद करते हैं। यह किस्म मध्यम अवधि में पकने वाली है और इसकी बालियाँ मोटी तथा दाने लंबे होते हैं, जो बाजार में अच्छा दाम दिलाते हैं।
बीज की तैयारी के लिए सबसे पहले स्वस्थ और परिपक्व बीजों का चयन करें। इसके बाद बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखें और फिर उन्हें छाया में फैलाकर हल्का अंकुरित होने दें। बोने से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा, कार्बेन्डाजिम या थायरम जैसे फफूंदनाशकों से उपचारित करें, ताकि रोगों से फसल की शुरुआती अवस्था में ही सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। यह प्रक्रिया भविष्य में लगने वाले कीट और बीमारियों से बचाने में मददगार होती है और मजबूत फसल की नींव रखती है।
- मात्रा: 8-10 किलो प्रति एकड़ (20-25 किलो/हेक्टेयर)।
- उपचार:
- बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम (2.5 ग्राम/किलो बीज) से ट्रीट करो।
- ट्रीटमेंट के बाद छाँव में सुखाकर बोने के लिए तैयार कर लो।
- देसी टिप: बीज को नमक वाले पानी में डालकर चेक करो। जो तैरें, वो फेंक दो। जो डूब जाएँ, वही बोने लायक हैं।
नर्सरी का इंतजाम
धान की अच्छी फसल के लिए मजबूत और स्वस्थ पौध तैयार करना जरूरी होता है, और इसके लिए नर्सरी का सही इंतजाम पहली कड़ी है। नर्सरी की तैयारी के लिए खेत को समतल करके बारीक जुताई करनी चाहिए ताकि बीजों को अंकुरण के लिए अनुकूल वातावरण मिल सके। आमतौर पर 1 एकड़ रोपाई के लिए लगभग 10-12 किलो बीज पर्याप्त होते हैं। नर्सरी में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था और हल्की सिंचाई से अंकुरण दर बेहतर होती है।
बीजों को बुवाई से पहले 12 से 24 घंटे पानी में भिगोना और फिर छायादार जगह में 24 घंटे रखना चाहिए, जिससे अंकुर फूट जाएं। इससे बीज जल्दी और समान रूप से उगते हैं। नर्सरी में जैविक खाद जैसे गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालना चाहिए, जिससे पौध मजबूत बनती है। यदि समय पर खरपतवारों की सफाई और कीट नियंत्रण किया जाए, तो रोपाई के लिए तैयार पौधे अधिक स्वस्थ और उत्पादन में सहायक होते हैं।
- साइज: 1 एकड़ के लिए 20×4 मीटर नर्सरी काफी।
- तरीका:
- गोबर की खाद डालकर मिट्टी तैयार करो।
- बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर बो दो।
- 20-25 दिन में पौधे 4-5 पत्ती वाले हो जाएँ, तो रोपाई के लिए तैयार।
- टिप: नर्सरी में पानी 2-3 सेमी रखो, ज्यादा गहरा पानी पौधों को डुबो सकता है।
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खेत की तैयारी
धान की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी सबसे पहला और सबसे जरूरी कदम होता है। 6444 बासमती जैसी उन्नत किस्म की खेती के लिए खेत को भुरभुरा, समतल और जल निकासी योग्य बनाना बहुत जरूरी होता है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई की जाती है जिससे पिछले फसल के अवशेष और खरपतवार नष्ट हो जाएं। इसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई करके पाटा चलाया जाता है, जिससे मिट्टी की सतह चिकनी और समतल हो जाए।
धान के लिए खेत में पानी रुकने की क्षमता होनी चाहिए, इसलिए लेवलिंग (सतह समतलीकरण) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिन खेतों में नमी अधिक देर तक टिकती है, वहाँ धान की जड़ें मजबूत होती हैं और पौधा अधिक दिनों तक स्वस्थ बना रहता है। नर्सरी डालने से पहले खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद, जैविक खाद और ज़रूरत अनुसार उर्वरक मिला देने से मृदा की उर्वरता बनी रहती है, जिससे 6444 बासमती जैसे किस्मों को पूरा पोषण मिलता है और उत्पादन अधिक होता है।
- 2-3 बार जुताई करो, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
- अंतिम जुताई में 10-12 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर डालो।
- खेत में पानी रोकने के लिए मेड़बंदी करो।
- रोपाई की दूरी: कतार से कतार 20 सेमी, पौधे से पौधे 15 सेमी।
खाद और उर्वरक का फंडा
अच्छी पैदावार के लिए खाद का सही हिसाब जरूरी है:
उर्वरक | मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) | कब डालें? |
नाइट्रोजन (N) | 150 | 50% रोपाई, 25% कल्ले, 25% फूल |
फॉस्फोरस (P) | 60 | खेत तैयार करते वक्त |
पोटाश (K) | 60 | खेत तैयार करते वक्त |
जिंक सल्फेट | 25 | रोपाई के समय |
देसी टिप: गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या नीम की खली डालने से मिट्टी की ताकत बढ़ती है। केमिकल कम करना हो, तो इनका इस्तेमाल जरूर करो।
पानी का जुगाड़
धान की खेती पानी पर सबसे अधिक निर्भर होती है, क्योंकि यह एक ऐसी फसल है जिसे पर्याप्त नमी की जरूरत होती है। लेकिन जहां सिंचाई की व्यवस्था नहीं है, वहां किसानों को “पानी का जुगाड़” करना पड़ता है। इसके लिए किसान बारिश के पानी को संचित करने के देसी तरीके अपनाते हैं जैसे – खेत के किनारों पर मेड़ बनाना, पोखर या टांका बनाना, जिससे पानी लंबे समय तक जमा रहे और जरूरत के समय काम आ सके।
कई किसान आजकल ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रयोग भी करने लगे हैं, जिससे कम पानी में भी अधिक क्षेत्र की सिंचाई हो जाती है। इसके अलावा, सामूहिक प्रयासों से तालाब गहरीकरण, नलकूप या सोलर पंप जैसी योजनाओं का लाभ लेकर किसान पानी का बेहतर प्रबंध कर सकते हैं। सही समय पर पानी देना और उसका संरक्षण करना ही धान की सफल खेती की कुंजी है।
- पहली सिंचाई: रोपाई के तुरंत बाद।
- नियमित: हर 7-10 दिन में हल्की सिंचाई।
- खास वक्त: फूल और दूध अवस्था में पानी की कमी न होने देना।
- चेतावनी: कटाई से 10 दिन पहले सिंचाई रोक दो, नहीं तो दाने खराब हो सकते हैं।
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कीट और रोग से बचाव
6444 गोल्ड रोगों से लड़ने में मजबूत है, लेकिन सावधानी बरतनी जरूरी है:
रोग:
- ब्लास्ट: पत्तियों पर भूरे धब्बे।
इलाज: ट्राइसाइक्लाजोल (6 ग्राम/15 लीटर पानी) का छिड़काव। - झुलसा (BLB): पत्तियाँ जलकर सूखने लगती हैं।
इलाज: स्ट्रेप्टोसाइक्लिन + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (1 ग्राम + 2 ग्राम/लीटर) का स्प्रे। - ब्राउन स्पॉट: छोटे भूरे धब्बे।
इलाज: मैनकोजेब (2 ग्राम/लीटर) का छिड़काव।
कीट:
- तना छेदक: पौधे को अंदर से खा जाता है।
इलाज: क्विनालफॉस (1.5 मिली/लीटर) का छिड़काव। - गंधी कीट: दानों को खराब करता है।
इलाज: नीम आधारित कीटनाशक (5 मिली/लीटर पानी)।
देसी नुस्खा: नीम का अर्क या गोमूत्र का छिड़काव छोटे कीटों को भगाने में कारगर है।
खरपतवार का कंट्रोल
- निंदाई-गुड़ाई: रोपाई के 20-25 दिन बाद पहली बार करो।
- केमिकल: Butachlor (1.5 लीटर/हेक्टेयर) या Pretilachlor का इस्तेमाल कर सकते हो।
- देसी टिप: खेत में पानी का लेवल सही रखो, इससे खरपतवार अपने आप कम हो जाते हैं।
कटाई और भंडारण
धान की कटाई उस समय करनी चाहिए जब पौधों की अधिकांश बालियाँ पीली पड़ जाएं और दाने सख्त हो जाएं। यदि कटाई देर से की जाए, तो दानों का झड़ना शुरू हो सकता है, जिससे उपज में नुकसान होता है। कटाई के बाद फसल को कुछ दिनों तक धूप में अच्छी तरह सुखाना चाहिए ताकि अनाज में नमी न रहे। आधुनिक किसान हार्वेस्टर मशीनों का भी उपयोग करते हैं, जिससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है।
भंडारण के लिए सबसे जरूरी है कि धान के दानों को अच्छी तरह सुखाया गया हो। यदि दानों में नमी बची रही तो भंडारण के दौरान फफूंदी और कीड़े लगने का खतरा बढ़ जाता है। सुखाने के बाद धान को बोरियों या स्टील के ड्रम में भरकर हवादार, सूखे और साफ स्थान पर रखें। साथ ही भंडारण स्थल पर कीटरोधी दवाओं का छिड़काव और समय-समय पर निरीक्षण करना भी आवश्यक है, ताकि धान की गुणवत्ता बनी रहे और बिक्री के समय अच्छा दाम मिल सके।
- कब काटें?: जब 80-85% बालियाँ पीली हो जाएँ और दाना कठोर हो (110-115 दिन में)।
- सुखाना: कटाई के बाद धान को अच्छी धूप में सुखाओ, ताकि नमी 14% से कम हो।
- भंडारण:
- धान को साफ करके बोरों या ड्रम में भरकर सूखी, हवादार जगह पर रखो।
- कीटों से बचाने के लिए नीम की पत्तियाँ या भुनी राख डाल दो।

बाजार और मुनाफा
6444 गोल्ड का दाना लंबा और चमकदार होता है, जो मिलर्स और व्यापारियों को खूब भाता है।
- MSP (2024-25): ₹2183/क्विंटल (अनुमानित, बदलाव संभव)।
- मुनाफा: 1 हेक्टेयर में 70 क्विंटल की पैदावार पर करीब ₹1,32,000+ का मुनाफा (खर्च ₹20,000 घटाकर)।
- टिप: अगर खुद चावल बनाकर बाजार में बेचो, तो मुनाफा दोगुना हो सकता है।
खर्च का हिसाब (1 हेक्टेयर):
- बीज: ₹2500
- खाद/उर्वरक: ₹5000
- सिंचाई: ₹2500
- कीटनाशक/दवा: ₹2000
- मजदूरी व अन्य: ₹8000
- कुल खर्च: ₹20,000
- कमाई (70 क्विंटल): ₹1,52,810 (MSP पर)
- मुनाफा: ₹1,32,000+
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किसानों के लिए देसी सुझाव
- मिट्टी टेस्ट: खाद डालने से पहले मिट्टी टेस्ट करवाओ, फालतू खर्च बचेगा।
- जैविक उपाय: पंचगव्य, नीम का अर्क या गोमूत्र का छिड़काव रोग-कीट कम करता है।
- बीमा: सरकार की फसल बीमा योजना का फायदा जरूर लो।
- बिक्री: मंडी के अलावा ई-NAM या किसान ऐप से बेचने की कोशिश करो, ज्यादा दाम मिलेगा।
निष्कर्ष: 6444 गोल्ड धान की खेती – मुनाफे का धमाका, देसी अंदाज में।
6444 गोल्ड धान की खेती किसानों के लिए सोने जैसी है। कम समय, कम जोखिम, और मोटी कमाई – यही है इसका फंडा। ये किस्म न सिर्फ ज्यादा पैदावार देती है, बल्कि रोगों से भी बचाती है। तो देर न करो, खेत तैयार करो, 6444 गोल्ड बोओ, और मुनाफे की फसल काटो।
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