नमस्कार किसान भाइयों जब बात बासमती चावल की हो, तो 1121 धान का नाम तो सबसे ऊपर आता है! ये वो किस्म है जो खेत में लहलहाती है और बाजार में धूम मचाती है। इसके लंबे-लंबे दाने, जबरदस्त खुशबू और विदेशों में भारी डिमांड इसे किसानों का फेवरेट बनाती है।
तो चलो, आज हम देसी अंदाज में 1121 धान की खेती का पूरा फंडा समझते हैं, ताकि तुम भी इसे उगाकर मोटा मुनाफा कमा सको।
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1121 बासमती: ये है क्या?
1121 बासमती धान की एक उन्नत और अत्यधिक लोकप्रिय किस्म है, जिसे विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में उगाया जाता है। यह किस्म अपनी लंबी दानेदारी, सुगंध और पकने के बाद दाने के लचीलापन (fluffiness) के लिए प्रसिद्ध है। 1121 बासमती का दाना पकने के बाद लगभग दोगुना लंबा हो जाता है, जो इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग वाला बनाता है। यह किस्म मुख्य रूप से निर्यात के लिए उपयोग में लाई जाती है और किसानों को अन्य किस्मों की तुलना में अधिक लाभ देती है।
इस किस्म की सबसे खास बात है इसकी कम पानी की आवश्यकता और रोगों के प्रति बेहतर प्रतिरोधक क्षमता। 1121 बासमती की फसल लगभग 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है और अच्छी उपज (लगभग 18-20 क्विंटल प्रति एकड़) देती है। अगर सही तकनीक और समय पर देखभाल की जाए, तो यह किस्म किसानों के लिए काफी मुनाफेदार साबित हो सकती है।
- दाने की लंबाई: कच्चा दाना 8.4-8.6 मिमी, पकने के बाद 20-22 मिमी तक फैलता है।
- खुशबू: ऐसी कि रसोई में बनते ही पड़ोसियों का पेट गड़गड़ाने लगे।
- लुक: सफेद, चमकदार, पतला दाना, जो देखते ही दिल जीत ले।
ये भारत से सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट होने वाली बासमती किस्म है। सऊदी अरब, ईरान, अमेरिका जैसे देश इसके दीवाने हैं।

कब और कैसे बोएँ?
धान की बुआई का सही समय और तरीका फसल की उपज को सीधा प्रभावित करता है। सामान्यतः धान की बुवाई का समय क्षेत्र और किस्म पर निर्भर करता है, लेकिन अधिकतर जगहों पर इसकी बुआई जून के मध्य से जुलाई के अंत तक की जाती है, जब मानसून की शुरुआत हो चुकी होती है। समय पर बुआई करने से पौधों को भरपूर नमी मिलती है और पौध अच्छी तरह से विकसित होती है।
कैसे बोएँ:
धान की बुआई के दो प्रमुख तरीके होते हैं – नर्सरी तैयार करके रोपाई (रोपण विधि) और सीधी बुआई (डायरेक्ट सीडिंग)। रोपाई विधि में पहले नर्सरी में बीज बोकर 20-25 दिन बाद उन्हें मुख्य खेत में रोप दिया जाता है। वहीं, सीधी बुआई में बीज को सीधे खेत में बोया जाता है, जिसमें पानी की कम जरूरत होती है। अच्छी उपज के लिए खेत की जुताई अच्छे से करनी चाहिए, और जैविक खाद या गोबर की खाद मिलाकर मिट्टी को उपजाऊ बनाना जरूरी है। बीज बोते समय उचित दूरी और गहराई का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है।
- बुआई का टाइम: जून-जुलाई, जब बारिश की बूँदें खेत को भिगोने लगें।
- कटाई का टाइम: अक्टूबर-नवंबर, यानी 135-145 दिन में फसल तैयार।
हाँ, थोड़ा वक्त लगता है, लेकिन भाई, सब्र का फल मीठा होता है!
मौसम और मिट्टी का जुगाड़
मौसम:
खेती में अच्छी पैदावार के लिए मौसम और मिट्टी का मेल बहुत जरूरी होता है। अगर मौसम सही हो और मिट्टी उपजाऊ, तो किसान की आधी मेहनत बच जाती है। जैसे धान की खेती के लिए गरम और आद्र्र मौसम चाहिए होता है, वहीं गेहूं ठंडी जलवायु में बेहतर उगता है। किसान मौसम की चाल को समझकर ही फसल की बुआई करता है, तभी समय पर बरसात और तापमान का फायदा उठा पाता है।
मिट्टी का जुगाड़ भी उतना ही जरूरी है। हर फसल की अपनी मिट्टी होती है – धान के लिए दोमट और जलजमाव वाली मिट्टी अच्छी होती है, जबकि चना या अरहर जैसी दालों के लिए हल्की और बलुई मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। किसान अक्सर गोबर की खाद या जैविक खाद डालकर अपनी मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। सही मौसम और मिट्टी का जुगाड़ अगर समय से कर लिया जाए, तो खेती में मुनाफा तय है।
मिट्टी:
- दोमट, बलुई दोमट या चिकनी मिट्टी इसके लिए बेस्ट।
- मिट्टी का pH 6 से 8 के बीच हो, तो फसल झूम उठेगी।
- अगर मिट्टी टेस्ट करवाने का टाइम नहीं, तो बस इतना देख लो कि पानी रुके, पर खेत में कीचड़ का ढेर न बने।
बीज का चयन और तैयारी
धान की खेती में अच्छी उपज के लिए सही बीज का चयन और उसकी तैयारी सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है। किसान भाइयों को चाहिए कि वे प्रमाणित और उन्नत किस्मों के बीजों का ही चयन करें, जो रोग-प्रतिरोधक हों और उनके क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त हों। जैसे – IR-64, MTU-1010, या स्वर्णा जैसी किस्में अनेक क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं।
बीज की तैयारी में सबसे पहले उन्हें अच्छी तरह से छान लेना चाहिए ताकि टूटे हुए या खराब दानों को अलग किया जा सके। फिर बीजों को 24 घंटे तक पानी में भिगोकर, उसके बाद 24 घंटे तक किसी सूती बोरी में रखकर अंकुरित किया जाता है। यह प्रक्रिया बीजों की उगने की क्षमता बढ़ाती है और बुवाई के बाद अच्छे अंकुरण को सुनिश्चित करती है। कुछ किसान बीजों को फफूंदनाशक दवाओं में उपचारित भी करते हैं ताकि शुरुआती रोगों से बचाव हो सके।
- प्रमाणित बीज लो: किसी ठग के चक्कर में नकली बीज मत खरीद लेना।
- मात्रा: प्रति हेक्टेयर 8-10 किलो बीज काफी।
- ट्रीटमेंट: बुआई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो बीज) या ट्राइकोडर्मा (4 ग्राम/किलो) से ट्रीट कर लो, ताकि रोगों से बचाव हो।
- देसी नुस्खा: बीज को नमक वाले पानी में डालो। जो तैरें, वो फेंक दो। जो डूब जाएँ, वही बोने लायक हैं।
नर्सरी का इंतजाम
धान की खेती में नर्सरी तैयार करना एक बेहद जरूरी और पहला कदम होता है। नर्सरी का सही ढंग से इंतजाम करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है और आगे चलकर अच्छी पैदावार मिलती है। नर्सरी के लिए खेत को समतल, खरपतवार मुक्त और अच्छी जल निकासी वाली जगह पर चुना जाता है। आमतौर पर 1 एकड़ खेत में धान की रोपाई के लिए 10-12 किलो बीज की नर्सरी पर्याप्त होती है।
नर्सरी तैयार करते समय पहले खेत की गहरी जुताई कर ली जाती है, फिर उसमें गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट मिलाकर मिट्टी को भुरभुरी बनाया जाता है। बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोकर अंकुरित किया जाता है और फिर उन्हें नमी वाली क्यारी में बोया जाता है। नर्सरी को रोगों और कीटों से बचाने के लिए समय-समय पर जैविक या आवश्यक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है। यदि नर्सरी का इंतजाम सही से किया जाए, तो धान के पौधे मजबूत, स्वस्थ और रोपाई के लिए तैयार मिलते हैं।
- साइज: 1 हेक्टेयर के लिए 20-25 वर्ग मीटर की नर्सरी काफी।
- तरीका: खेत में गोबर की खाद डालकर मिट्टी तैयार करो। बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर बो दो।
- रोपाई का टाइम: 25-30 दिन में पौधे तैयार हो जाएँगे।
- टिप: नर्सरी में पानी 2-3 सेमी रखो। ज्यादा गहरा पानी पौधों को डुबो देगा।
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खेत की तैयारी
खेत को ऐसा तैयार करो कि पौधे मजे से पनपें:
- 2-3 बार जुताई करो, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
- 20-25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर डालो।
- खेत को समतल करके पलेवा (हल्की सिंचाई) कर लो।
- पानी भरकर 7-10 दिन तक छोड़ दो, ताकि खरपतवार मर जाए।
रोपाई का ढंग
- पौधे की उम्र: 25-30 दिन के पौधे रोपो।
- दूरी: कतार से कतार 20 सेमी, पौधे से पौधा 15 सेमी।
- संख्या: एक जगह 1-2 पौधे ही रोपो, ज्यादा भीड़ मत करो।
- देसी मस्ती: गाँव में औरतें रोपाई के वक्त गीत गाती हैं। अगर मौका हो, तो ये परंपरा निभाओ, मेहनत मजेदार लगेगी!
पानी का हिसाब
पानी हमारे जीवन की सबसे जरूरी जरूरतों में से एक है। लेकिन आज के समय में पानी की बर्बादी और अनियमित उपयोग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। चाहे घर हो, खेत या फैक्ट्री – हर जगह पानी का सही हिसाब रखना ज़रूरी हो गया है। जब हम नाप-तौल कर पानी का इस्तेमाल करते हैं, तो ना सिर्फ पानी बचता है, बल्कि फसल, घर और उद्योगों में उसकी गुणवत्ता और उपलब्धता भी बनी रहती है।
खेती के क्षेत्र में “पानी का हिसाब” रखना मतलब है – कब, कितना और कैसे पानी देना है, इसका पूरा प्लान बनाना। इससे न केवल फसल की उपज बेहतर होती है, बल्कि भूजल स्तर भी संतुलित रहता है। ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करके किसान भाई कम पानी में ज्यादा फायदा उठा सकते हैं। इस तरह पानी का सही हिसाब हमें पर्यावरण संरक्षण और भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल संरक्षण में मदद करता है।
- रोपाई के बाद: 2-3 दिन में पहली सिंचाई।
- नियमित: खेत में 2-5 सेमी पानी बनाए रखो।
- खास वक्त: फूल आने और दाना बनने के समय पानी की कमी न होने देना।
- चेतावनी: ज्यादा पानी डूबा रखने से झुलसा रोग या जड़ सड़न का खतरा।
खाद और उर्वरक का फंडा
खेती की असली ताकत मिट्टी में छुपी होती है, और इस ताकत को बनाए रखने का सबसे आसान तरीका है – खाद और उर्वरक का सही इस्तेमाल। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या हरी खाद से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, जिससे फसल को लंबे समय तक पोषण मिलता है। ये न सिर्फ मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, बल्कि जलधारण क्षमता भी बढ़ाते हैं।
दूसरी ओर, रासायनिक उर्वरक जैसे यूरिया, डीएपी और पोटाश फसलों को जल्दी बढ़ाने में मदद करते हैं, लेकिन इनका संतुलित इस्तेमाल जरूरी है। ज्यादा प्रयोग से मिट्टी की सेहत बिगड़ सकती है। इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही खाद और उर्वरक का उपयोग करें, ताकि पैदावार भी अच्छी हो और ज़मीन भी सालों तक उपजाऊ बनी रहे।
उर्वरक | मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) | कब डालें? |
नाइट्रोजन (N) | 100-120 | 3 हिस्सों में (रोपाई, कल्ले बनना, फूल आना) |
फॉस्फोरस (P) | 40-50 | खेत तैयार करते वक्त |
पोटाश (K) | 30-40 | फूल आने से पहले |
देसी टिप: गोमूत्र, नीम की खली या वर्मी कम्पोस्ट डालने से मिट्टी की सेहत बनी रहती है। केमिकल कम करना हो, तो इनका इस्तेमाल जरूर करो।
कीट और रोग से बचाव
धान की खेती में कीट और रोग एक बड़ी समस्या बन सकते हैं, जो फसल की पैदावार को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। इससे बचाव के लिए सबसे पहले खेत की नियमित निगरानी बहुत जरूरी है। जैसे ही किसी कीट या रोग के लक्षण दिखें, तुरंत उपाय करना चाहिए। बुआई से पहले बीजों को रोगरोधी दवाओं से उपचारित करें, ताकि फसल की शुरुआती अवस्था में सुरक्षा बनी रहे।
साथ ही, खेत में जल निकासी का सही प्रबंध करें, क्योंकि रुका हुआ पानी रोग फैलाने वाले फफूंद को बढ़ावा देता है। जैविक उपायों जैसे नीम की खली, ट्राइकोडर्मा वर्मी कम्पोस्ट आदि का प्रयोग भी रोग और कीट नियंत्रण में सहायक होता है। आवश्यकता पड़ने पर कृषि विशेषज्ञ की सलाह से उपयुक्त कीटनाशक या फफूंदनाशक का सीमित मात्रा में छिड़काव करें, जिससे फसल सुरक्षित और स्वस्थ बनी रहे।
रोग:
- झुलसा रोग (Blast): पत्तियों पर भूरे धब्बे।
इलाज: ट्राइसाइक्लाजोल (0.6 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव। - बैक्टीरियल ब्लाइट: पत्तियाँ जलकर सूखने लगती हैं।
इलाज: स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (0.1 ग्राम/लीटर) का स्प्रे।
कीट:
- तना छेदक: पौधे को अंदर से खा जाता है।
इलाज: इंडोक्साकार्ब (0.5 मिली/लीटर) का छिड़काव। - गंधी बग: दानों को खराब कर देता है।
इलाज: क्विनालफॉस (1 मिली/लीटर) का स्प्रे।
देसी नुस्खा: नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) छोटे-मोटे कीटों को भगाने में कारगर है।
कटाई और पैदावार
- कब काटें?: जब 80-85% बालियाँ पीली हो जाएँ (135-145 दिन में)।
- पैदावार: सही देखभाल से 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
- टिप: कटाई के बाद धान को अच्छे से सुखाओ, ताकि भंडारण में खराब न हो।
भंडारण का तरीका
- धान को साफ करके 12-14% नमी पर सुखाओ।
- बोरों या ड्रम में भरकर सूखी, हवादार जगह पर रखो।
- कीटों से बचाने के लिए नीम की पत्तियाँ या भुनी राख डाल दो।
कमाई का मौका
1121 बासमती की डिमांड दुनियाभर में है:
- निर्यात: सऊदी अरब, ईरान, यूएई, अमेरिका में खूब बिकता है।
- बाजार भाव: एक्सपोर्ट क्वालिटी का चावल ₹80-150/किलो तक जाता है।
- टिप: मंडी के बजाय सीधे एक्सपोर्टर को बेचो, मुनाफा डबल हो सकता है।
सरकार का साथ
किसान भाई हो या कोई भी आम नागरिक, जब सरकार का सही साथ मिलता है तो जीवन आसान बन जाता है। सरकार का साथ मतलब सिर्फ योजनाएं चलाना नहीं, बल्कि ज़मीन तक उन योजनाओं को पहुंचाना भी है। किसानों के लिए सिंचाई, बीज, खाद, फसल बीमा, सब्सिडी जैसी योजनाएं सरकार चलाती है, ताकि खेती की लागत कम हो और आमदनी बढ़े।
आज की सरकार डिजिटल इंडिया, किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं के जरिए किसानों को सीधा लाभ पहुंचा रही है। लेकिन असली फायदा तभी मिलता है जब जनता जागरूक हो और सरकारी योजनाओं की पूरी जानकारी रखे। इसीलिए कहा जाता है — “अगर सरकार का साथ हो और किसान का आत्मविश्वास, तो देश को कोई पीछे नहीं कर सकता।”
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: फसल खराब होने पर बीमा।
- क्लस्टर बेस्ड खेती: बासमती के लिए खास अनुदान।
- बीज पर सब्सिडी: प्रमाणित बीज पर 50% तक छूट।
नजदीकी कृषि केंद्र से इनकी जानकारी ले लो।

1121 धान के फायदे
1121 बासमती धान को “बासमती का बादशाह” कहा जाता है क्योंकि इसमें कई अनोखे फायदे होते हैं। सबसे पहला फायदा है इसका लंबा और पतला दाना, जो पकने के बाद और भी लंबा हो जाता है। इसकी सुगंधित खुशबू इसे खास बनाती है, जिससे यह भारतीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी बहुत पसंद किया जाता है। इस किस्म की मांग निर्यात के लिए बहुत ज़्यादा है, जिससे किसानों को अच्छा दाम मिलता है।
दूसरा बड़ा फायदा है इसकी अधिक पैदावार और लंबा भंडारण जीवन। सही तकनीक से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 45-50 क्विंटल तक उत्पादन मिल सकता है। यह धान रोगों के प्रति अपेक्षाकृत सहनशील भी होता है और इसमें कम टूट-फूट होती है, जिससे बाजार में बेहतर ग्रेडिंग मिलती है। कुल मिलाकर, 1121 धान किसानों के लिए मुनाफे वाली फसल है, खासकर जब इसे निर्यात केंद्रित सोच के साथ उगाया जाए।
- देश-विदेश में भारी डिमांड।
- दूसरी बासमती किस्मों से कम पानी चाहिए।
- लंबे दाने और शानदार खुशबू।
- मोटा मुनाफा।
यह भी जानें – PR-1401 धान की खेती पूरी जानकारी जरूर लें
सावधानियाँ
- ज्यादा नाइट्रोजन डालने से दाने झड़ सकते हैं।
- फूल आने के समय पानी की कमी न होने देना।
- बेचने से पहले मॉइस्चर और ग्रेडिंग चेक करो।
निष्कर्ष: 1121 धान की खेती – बासमती का बादशाह
1121 धान की खेती सिर्फ फसल नहीं, पैसा उगाने का मौका है। सही बीज, सही समय और थोड़ा ध्यान, बस यही चाहिए। ये फसल न सिर्फ तुम्हारी जेब भरेगी, बल्कि भारत की बासमती को दुनिया भर में मशहूर भी करेगी। तो देर न करो, खेत में उतरो, 1121 बोओ और मुनाफा कमाओ।
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