1010 धान की खेती – मुनाफे का धमाल, देसी अंदाज में पूरी बात। 

नमस्कार किसान भाइयों धान यानी चावल तो हमारी थाली का हीरो है, और जब बात अच्छी किस्म की हो, तो 1010 धान का नाम जरूर आता है। ये वो किस्म है, जो कम समय में अच्छी पैदावार देती है, रोगों से डटकर मुकाबला करती है, और बाजार में मोटा दाम दिलाती है।  

तो चलो, आज हम देसी स्टाइल में 1010 धान की खेती का पूरा फंडा समझते हैं, ताकि तुम भी इसे उगाकर जेब भर सको।

नमस्कार किसान भाइयों जब बात बासमती चावल की हो, तो 1121 धान का नाम तो सबसे ऊपर आता है! ये वो किस्म है जो खेत में लहलहाती है और बाजार में धूम मचाती है। इसके लंबे-लंबे दाने, जबरदस्त खुशबू और विदेशों में भारी डिमांड इसे किसानों का फेवरेट बनाती है।

 तो चलो, आज हम देसी अंदाज में 1121 धान की खेती का पूरा फंडा समझते हैं, ताकि तुम भी इसे उगाकर मोटा मुनाफा कमा सको।  

यह भी जानें – 1121 धान की खेती – बासमती का बादशाह

 1010 धान: ये है क्या?

1010 धान एक उन्नत किस्म का धान है, जिसे खासतौर पर ज्यादा उपज, कम अवधि और रोग प्रतिरोधक क्षमता को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है। यह किस्म मुख्यतः उत्तर भारत के किसानों में लोकप्रिय है क्योंकि इसमें सिंचाई की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम होती है और यह कम समय में तैयार हो जाती है। इसकी बाली मोटी और दाने चमकदार होते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाने में सहायक होते हैं।

1010 धान की खेती के लिए मध्यम उपजाऊ दोमट मिट्टी और उचित जल निकासी व्यवस्था सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह किस्म लगभग 120-135 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 45-55 क्विंटल तक उपज देती है। सही समय पर खाद, सिंचाई और कीट नियंत्रण से इस धान से किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। यही वजह है कि आज 1010 धान को कई किसान “उपज का भरोसा” भी मानते हैं।

खासियतें एक नजर में:

  • पकने का समय: 100-110 दिन।
  • पैदावार: 45-55 क्विंटल/हेक्टेयर।
  • दाना: मध्यम लंबाई, पतला, चमकदार।
  • रोग प्रतिरोधकता: झुलसा, ब्लास्ट, ब्राउन स्पॉट से अच्छा बचाव।
  • कहाँ उगाएँ?: यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बंगाल, झारखंड।

 मिट्टी और मौसम का जुगाड़

धान की अच्छी खेती के लिए सही मिट्टी और अनुकूल मौसम का चुनाव बहुत जरूरी होता है। धान की फसल को दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा पसंद होती है क्योंकि इसमें पानी को रोकने की क्षमता होती है, जो धान के लिए लाभदायक है। साथ ही, मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। खेत की तैयारी करते समय मिट्टी को अच्छे से जुताई करके समतल बना लें ताकि जलभराव एकसमान हो सके।

जहां तक मौसम की बात है, धान को गर्म और आर्द्र जलवायु की जरूरत होती है। बुवाई के समय हल्की गर्मी और रोपाई के बाद अच्छी बारिश या सिंचाई जरूरी है। 25°C से 35°C तापमान इसकी बढ़वार के लिए उपयुक्त माना जाता है। मानसून का सही अनुमान और मौसम के हिसाब से खेती करना, किसान को अधिक उपज और कम जोखिम की ओर ले जाता है। यही है असली “मिट्टी और मौसम का जुगाड़”, जो सफल धान की खेती की नींव है।

  • दोमट या बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए बेस्ट।
  • मिट्टी का pH 5.5 से 7.5 के बीच हो, तो फसल लहलहाएगी।
  • पानी रुकने की अच्छी व्यवस्था हो, लेकिन जलभराव न हो, ये ध्यान रखो।
1010 धान की खेती – मुनाफे का धमाल, देसी अंदाज में पूरी बात।

 मौसम:

  • तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस इसके लिए परफेक्ट।
  • बारिश 1000-1500 मिमी हो, और धूप-नमी का अच्छा मेल हो।

कब बोएँ?

1010 धान खरीफ की फसल है, यानी मानसून इसका दोस्त है। बुआई का समय जगह के हिसाब से थोड़ा बदलता है:

  • उत्तर प्रदेश: जून आखिरी हफ्ता से जुलाई, रोपाई जुलाई मध्य से अगस्त।
  • बिहार: जून आखिरी हफ्ता, रोपाई जुलाई पहले हफ्ते।
  • ओडिशा/बंगाल: जून में बुआई, जुलाई में रोपाई।

 बीज का चयन और तैयारी

धान की अच्छी फसल पाने के लिए सबसे जरूरी कदम होता है — सही बीज का चयन। बीज हमेशा प्रमाणित और उच्च गुणवत्ता वाला होना चाहिए, जो रोग प्रतिरोधी और आपके क्षेत्र की जलवायु के अनुसार अनुकूल हो। उदाहरण के लिए, यदि आप बासमती की खेती कर रहे हैं तो 1121 या PUSA बासमती जैसी उन्नत किस्मों का चयन करें। बीज की खरीद विश्वसनीय स्रोत से करें ताकि उत्पादन में स्थिरता और गुणवत्ता बनी रहे।

बीज की तैयारी में उपचार एक जरूरी प्रक्रिया है, जिससे फसल की शुरुआती अवस्था में रोग और कीटों से सुरक्षा मिलती है। बीजों को बोने से पहले फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या थाइरम से उपचारित करना चाहिए। साथ ही, बीजों को 12 से 24 घंटे तक पानी में भिगोकर फिर छाया में सुखाना चाहिए, जिससे अंकुरण बेहतर होता है और पौधे जल्दी विकसित होते हैं। यह प्रक्रिया खेती की नींव मजबूत बनाती है।

  • मात्रा: 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर (रोपाई के लिए)।
  • उपचार:
    • बीज को ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम (2.5 ग्राम/किलो बीज) से ट्रीट करो।
    • ट्रीटमेंट के बाद बीज को छाँव में सुखाकर बोने के लिए तैयार कर लो।
  • देसी टिप: बीज को नमक वाले पानी में डालकर चेक करो। जो तैरें, वो फेंक दो। जो डूब जाएँ, वही काम के हैं।
  •  नर्सरी का इंतजाम

11010 धान की खेती में नर्सरी बनाना ज1रूरी है,धान की खेती में नर्सरी की तैयारी एक महत्वपूर्ण चरण होता है, जो आगे चलकर फसल की गुणवत्ता और पैदावार दोनों को प्रभावित करता है। नर्सरी के लिए सबसे पहले अच्छी तरह से तैयार की गई जमीन का चयन करें, जो समतल और जलनिकासी की सुविधा से युक्त हो। बीजों को बोने से पहले 24 घंटे पानी में भिगोकर फिर छाया में सुखा लें और फिर उपचारित करके नर्सरी में बोएं। इससे अंकुरण अच्छा होता है और रोगों की संभावना भी कम हो जाती है।

नर्सरी की सिंचाई हल्के पानी से करें और खरपतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखें। नर्सरी में बीजों को अधिक घनत्व में न बोएं ताकि पौधों को पर्याप्त पोषण और जगह मिल सके। लगभग 25-30 दिन में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। अगर नर्सरी मजबूत, रोगमुक्त और हरी-भरी होगी, तो मुख्य खेत में रोपाई के बाद फसल की मजबूती और उत्पादन अपने आप बेहतर होगा।

  • साइज: 1 हेक्टेयर के लिए 800 वर्ग मीटर नर्सरी काफी।
  • तरीका:
    • नर्सरी में गोबर की खाद डालकर मिट्टी तैयार करो।
    • बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर बो दो।
    • 20-25 दिन में पौधे 4-5 इंच के हो जाएँ, तो रोपाई के लिए तैयार।
  • टिप: नर्सरी में पानी 2-3 सेमी रखो, ज्यादा गहरा पानी पौधों को नुकसान दे सकता है।

यह भी जानें – सन 1692 में धान की खेती – उस जमाने की बात 

 खेत की तैयारी

1010 धान की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी सबसे पहला और जरूरी कदम है। खेत को सबसे पहले गहरी जुताई करके उसमें मौजूद पुराने खरपतवार, कीट और रोगाणुओं को नष्ट किया जाता है। इसके बाद दो-तीन बार हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा और समतल बनाया जाता है, जिससे पानी का बहाव और रोपाई सुचारू रूप से हो सके।

खेत की तैयारी के दौरान खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या जैविक खाद मिला देना चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़े और पौधों की जड़ें मजबूत हों। साथ ही, खेत की मेड़ों की मरम्मत कर लेनी चाहिए ताकि सिंचाई का पानी रुके और खेत में जलभराव न हो। अच्छी तरह से तैयार खेत ही अच्छी उपज की गारंटी देता है।

  • पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करो।
  • फिर 2-3 बार देशी हल या रोटावेटर से जुताई करके पाटा चला दो।
  • खेत में पानी रोकने की व्यवस्था पक्की करो, ताकि फसल को जरूरत भर पानी मिले।

 खाद और उर्वरक का फंडा

अच्छी फसल के लिए मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है, और यही काम करते हैं खाद और उर्वरक। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या हरी खाद मिट्टी की बनावट सुधारने के साथ-साथ उसमें सूक्ष्मजीवों की संख्या भी बढ़ाते हैं। ये लंबे समय तक पोषण देते हैं और मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखते हैं।

वहीं, रासायनिक उर्वरक जैसे यूरिया, डीएपी और पोटाश त्वरित प्रभाव देते हैं और फसल को जल्दी पोषण पहुंचाते हैं। लेकिन इनका संतुलित मात्रा में उपयोग जरूरी है, वरना मिट्टी की सेहत बिगड़ सकती है। सबसे बेहतर तरीका यह है कि किसान मिट्टी की जांच कराकर जरूरत के अनुसार ही उर्वरक डालें, ताकि पैदावार भी बढ़े और जमीन भी स्वस्थ बनी रहे।

उर्वरकमात्रा (किग्रा/हेक्टेयर)कब डालें?
नाइट्रोजन (N)100-1203 हिस्सों में (25% रोपाई, 50% कल्ले, 25% बालियाँ)
फॉस्फोरस (P)40-50खेत तैयार करते वक्त
पोटाश (K)40-50फूल आने से पहले

देसी टिप: गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या नीम की खली डालने से मिट्टी की ताकत बढ़ती है। केमिकल कम करना हो, तो इनका इस्तेमाल जरूर करो।

पानी का जुगाड़

धान की खेती में पानी की सबसे अहम भूमिका होती है, क्योंकि यह एक अर्ध-जलीय फसल है जो अच्छी पैदावार के लिए लगातार नमी की मांग करती है। लेकिन बारिश पर पूरी तरह निर्भर रहना जोखिम भरा होता है, खासकर जब मौसम अनियमित हो। ऐसे में पानी का स्थानीय जुगाड़ करना जरूरी हो जाता है। किसान भाई अपने खेतों में तालाब, नलकूप, बोरवेल या सिंचाई नहरों की व्यवस्था कर सकते हैं।

पानी बचाने के लिए धान की “सीधी बुवाई विधि” (Direct Seeding of Rice – DSR) भी आजकल लोकप्रिय हो रही है, जिससे 30-35% तक पानी की बचत होती है। साथ ही, खेतों की लेवलिंग और मेडबंदी करने से भी पानी के बहाव को रोका जा सकता है और सिंचाई में किफायत होती है। समय पर सिंचाई और समझदारी से पानी का उपयोग कर के किसान कम पानी में भी बेहतर उत्पादन ले सकते हैं।

  • पहली सिंचाई: रोपाई के तुरंत बाद।
  • नियमित: हर 7-10 दिन में हल्की सिंचाई।
  • खास वक्त: बालियाँ निकलने और दूध अवस्था में पानी की कमी न होने देना।
  • चेतावनी: ज्यादा पानी डूबा रखने से जड़ सड़न का खतरा रहता है।

 कीट और रोग से बचाव

धान की फसल में कीट और रोग सबसे बड़े खतरे होते हैं, जो समय पर नियंत्रण न करने पर भारी नुकसान कर सकते हैं। धान में तना छेदक, पत्ती लपेटक, भूरे धब्बे और ब्लास्ट जैसे रोग आम हैं। इनसे बचाव के लिए सबसे पहला कदम होता है – स्वस्थ और रोगमुक्त बीजों का चयन और बीजोपचार। बीज बोने से पहले उन्हें फफूंदनाशक दवाओं जैसे कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा से उपचारित करना चाहिए। इससे रोग की शुरुआत ही नहीं होती।

खेत में जल निकासी का सही प्रबंध होना जरूरी है क्योंकि रुका हुआ पानी फफूंद और बैक्टीरिया को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, जैविक तरीकों से बचाव के लिए नीम का तेल, गोमूत्र आधारित घोल और ट्राइकोडर्मा मिश्रित वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग कारगर होता है। यदि संक्रमण ज्यादा हो जाए तो कृषि विशेषज्ञ की सलाह से संतुलित मात्रा में कीटनाशक या फफूंदनाशक का छिड़काव करना चाहिए, ताकि फसल को सुरक्षित रखा जा सके और उत्पादन पर असर न पड़े।

 रोग:

  • झुलसा रोग (BLB): पत्तियों पर पीले धब्बे।
    इलाज: स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (1 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव।
  • ब्लास्ट रोग: पत्तियों पर भूरे धब्बे।
    इलाज: ट्राइसाइक्लाजोल (6 ग्राम/10 लीटर पानी) का स्प्रे।

 कीट:

  • तना छेदक: पौधे को अंदर से खा जाता है।
    इलाज: क्लोरपायरीफॉस या क्विनालफॉस (1 मिली/लीटर) का छिड़काव।
  • देसी नुस्खा: नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) छोटे कीटों को भगाने में कारगर है।

खरपतवार का कंट्रोल 

धान की खेती में खरपतवार (जंगली घास) एक गंभीर समस्या होती है, जो पौधों से पोषक तत्व, पानी और जगह की प्रतिस्पर्धा करती हैं। अगर समय पर खरपतवार पर नियंत्रण न किया जाए, तो यह पैदावार को 25-40% तक घटा सकती है। इसलिए खेत की निरंतर निगरानी जरूरी है, खासकर बुवाई के 15 से 40 दिन के बीच। इस दौरान खरपतवार सबसे तेजी से उगते हैं।

खरपतवार नियंत्रण के लिए दो तरीके अपनाए जाते हैं — यांत्रिक और रासायनिक। यांत्रिक विधि में हाथ से निराई या खरपतवार हटाने वाली मशीनों का उपयोग किया जाता है। वहीं रासायनिक नियंत्रण में बुआई के 3-5 दिन के भीतर प्री-इमर्जेंस हर्बीसाइड जैसे बुटाच्लोर या प्रीटिलाच्लोर का प्रयोग करें। ध्यान रहे, रासायनिक दवाओं का उपयोग कृषि विशेषज्ञ की सलाह से ही करें, ताकि फसल को कोई नुकसान न हो और खेत साफ-सुथरा बना रहे।

  • निंदाई-गुड़ाई: रोपाई के 20 दिन बाद पहली बार करो।
  • केमिकल: प्री-इमरजेंस हर्बीसाइड जैसे Butachlor (1.25 लीटर/हेक्टेयर) का इस्तेमाल कर सकते हो।
  • देसी टिप: खेत में पानी का लेवल सही रखो, इससे खरपतवार अपने आप कम हो जाते हैं।

कटाई और मड़ाई

  • कब काटें?: जब 80-85% बालियाँ पीली हो जाएँ और दाना कठोर हो (100-110 दिन में)।
  • सुखाना: कटाई के बाद धान को अच्छी धूप में सुखाओ, ताकि नमी 14% से कम हो।
  • पैदावार: सही देखभाल से 45-55 क्विंटल/हेक्टेयर।

भंडारण का तरीका

  • धान को साफ करके 12-14% नमी पर सुखाओ।
  • बोरों या ड्रम में भरकर सूखी, हवादार जगह पर रखो।
  • कीटों से बचाने के लिए नीम की पत्तियाँ या भुनी राख डाल दो।

 बाजार और मुनाफा

1010 धान का दाना पतला और चमकदार होता है, जो मिलर्स और व्यापारियों को खूब भाता है।

  • MSP (2024-25): ₹2183/क्विंटल (अनुमानित, बदलाव संभव)।
  • मुनाफा: 1 हेक्टेयर में 50 क्विंटल की पैदावार पर करीब ₹92,000+ का मुनाफा (खर्च ₹17,000 घटाकर)।

खर्च का हिसाब (1 हेक्टेयर):

  • बीज: ₹1000
  • खाद/उर्वरक: ₹4000
  • कीटनाशक: ₹1500
  • सिंचाई: ₹2500
  • मजदूरी: ₹6000
  • अन्य: ₹2000
  • कुल खर्च: ₹17,000
  • कमाई (50 क्विंटल): ₹1,09,150 (MSP पर)
  • मुनाफा: ₹92,000

यह भी जानें – धान की खेती में लगने वाले रोग – पहचान, रोकथाम और इलाज

 1010 धान के फायदे

धान न केवल हमारे भोजन का मुख्य आधार है, बल्कि किसानों के लिए आय का एक मजबूत साधन भी है। 1010 धान की किस्म विशेष रूप से अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में मानी जाती है। इसमें पकने की अवधि कम होती है और यह सूखे या जलभराव जैसी स्थितियों में भी अच्छी उपज देती है। इसके दाने मजबूत, मोटे और चमकदार होते हैं, जो बाज़ार में अच्छी कीमत दिलाते हैं।

इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी बेहतर होती है, जिससे किसान को कम खर्च में ज्यादा फायदा होता है। 1010 धान की खेती करने से न केवल पैदावार अच्छी होती है, बल्कि यह घरेलू खपत और स्थानीय मंडियों दोनों के लिए उपयुक्त रहती है। इसलिए यह किस्म छोटे और बड़े दोनों किसानों के लिए लाभकारी मानी जाती है।

  • कम समय (100-110 दिन) में तैयार।
  • ज्यादा पैदावार और रोग प्रतिरोधक।
  • बाजार में अच्छा भाव।
  • कम पानी और देखभाल की जरूरत।

 सावधानियाँ

 1010 खेती करते समय कुछ महत्वपूर्ण सावधानियाँ बरतनी बेहद जरूरी होती हैं। सबसे पहले, उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीज का ही चयन करें ताकि फसल की शुद्धता और उत्पादन में वृद्धि हो। रोपाई के समय पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें, जिससे पौधे पूरी तरह विकसित हो सकें और रोग फैलने की संभावना कम हो।

खरपतवार और जलभराव की समस्या से समय पर निपटना भी आवश्यक है। अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का प्रयोग करने से बचें और जैविक विकल्पों को प्राथमिकता दें। साथ ही, मौसम की जानकारी पर नजर रखें, ताकि तूफान, भारी वर्षा या सूखे से पहले सुरक्षा के उपाय किए जा सकें। इन सावधानियों का पालन करने से न केवल अच्छी उपज मिलती है, बल्कि मुनाफा भी अधिक होता है।

  • ज्यादा नाइट्रोजन से पौधे लंबे होकर गिर सकते हैं।
  • फूल और दूध अवस्था में पानी की कमी न हो।
  • बेचने से पहले मॉइस्चर और ग्रेडिंग चेक कर लो।

यह भी जानें – PR-1401 धान की खेती पूरी जानकारी जरूर लें

 देसी सुझाव

  • गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालकर मिट्टी को ताकत दो।
  • नीम तेल का छिड़काव छोटे कीटों से बचाने में काम आएगा।
  • मिट्टी टेस्ट करवाकर उर्वरक डालो, फालतू खर्चा बचेगा।

निष्कर्ष:  1010 धान की खेती – मुनाफे का धमाल, देसी अंदाज में पूरी बात। 

1010 धान की खेती किसानों के लिए वरदान है। कम समय, कम मेहनत, और मोटा मुनाफा – ये है इसका फंडा। चाहे यूपी हो, बिहार हो या ओडिशा, ये किस्म हर जगह कमाल करती है। तो देर न करो, खेत तैयार करो, 1010 बोओ, और मुनाफा कमाओ। 

अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो आप हमे कॉमेंट बॉक्स मे जरूर बताए और अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top