नमस्कार किसान भाइयों धान की खेती तो हमारी रीढ़ है, लेकिन अच्छी फसल चाहिए तो सिर्फ बीज बोना काफी नहीं। उर्वरकों का सही इस्तेमाल वो जादू की छड़ी है, जो खेत को सोना उगलने वाली मशीन बना देती है। सही खाद, सही समय और सही मात्रा में डालो, तो न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि दाने भी चमकदार और भारी होंगे।
तो चलो, आज धान की खेती में उर्वरकों का पूरा हिसाब-किताब समझते हैं, देसी स्टाइल में।
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धान को चाहिए क्या?
धान एक ऐसी फसल है जो अच्छे उत्पादन के लिए कुछ खास चीजों की मांग करती है। सबसे पहले बात करें मौसम की, तो धान को गर्म और नम जलवायु चाहिए होती है। इसे उगाने के लिए औसतन 25-35°C तापमान और अच्छी बारिश या सिंचाई व्यवस्था जरूरी होती है। धान की फसल को भरपूर धूप और लंबे समय तक नमी चाहिए होती है, ताकि पौधे अच्छे से बढ़ सकें।
इसके अलावा, धान को उपजाऊ, दोमट या बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है, जिसमें जल निकासी की व्यवस्था हो लेकिन नमी बनी रहे। साथ ही, संतुलित उर्वरक जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश भी धान को अच्छे दाने और भरपूर उपज के लिए चाहिए। यानी धान को चाहिए – सही मौसम, भरपूर पानी, उपजाऊ मिट्टी और संतुलित पोषण। जब ये सब मिल जाते हैं, तब ही खेत में लहराता है सोने जैसा धान।
- नाइट्रोजन (N): पत्तियाँ हरी-भरी, कल्ले ज्यादा और दाने की संख्या बढ़ाने के लिए।
- फास्फोरस (P): जड़ों को ताकत देता है और फूल अच्छे लाता है।
- पोटाश (K): रोगों से बचाता है और दानों को चमकदार बनाता है।
इसके अलावा जिंक, सल्फर, और मैग्नीशियम जैसे छोटे-मोटे पोषक भी जरूरी हैं, ताकि पौधा तंदुरुस्त रहे।
मिट्टी टेस्ट: पहला कदम
खाद डालने से पहले मिट्टी की जाँच करवाना ऐसा है जैसे डॉक्टर के पास चेकअप करवाना। इससे पता चलता है कि मिट्टी में क्या कमी है और क्या फालतू है।
- कैसे करवाएँ?: नजदीकी कृषि केंद्र पर मिट्टी का सैंपल जमा करो।
- कब करवाएँ?: हर 3 साल में एक बार।
- फायदा: सही खाद डालोगे, फालतू खर्चा बचेगा, और फसल भी लहलहाएगी।

उर्वरक कब और कैसे डालें?
धान की फसल में उर्वरक का सही समय पर और सही तरीके से प्रयोग करना बहुत जरूरी होता है, ताकि पौधे मजबूत बनें और अच्छी पैदावार मिल सके। सामान्यतः धान की खेती में नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) और पोटाश (K) जैसे मुख्य पोषक तत्वों की जरूरत होती है। बुवाई या रोपाई से पहले खेत की आखिरी जुताई के समय बेसल डोज के रूप में फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का एक भाग देना चाहिए।
शेष नाइट्रोजन को दो से तीन हिस्सों में बाँटकर डालना चाहिए — पहली बार रोपाई के 20-25 दिन बाद, दूसरी बार कल्ले निकलने के समय और तीसरी बार फूल आने से पहले। उर्वरक हमेशा मिट्टी की जांच के आधार पर ही दें और जरूरत से ज्यादा न डालें, क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान और खर्च की बर्बादी होती है। साथ ही, जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट और नीम की खली का भी सहायक रूप में प्रयोग करें, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे।
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1. खेत तैयार करते वक्त।
धान की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी एक बहुत ही अहम प्रक्रिया होती है। जब किसान खेत तैयार करते हैं, तो सबसे पहले उसे गहराई से जुताई करना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाए। इससे न सिर्फ पुराने खरपतवार नष्ट होते हैं, बल्कि मिट्टी में हवा और नमी का संचार भी अच्छा होता है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद की जुताई देशी हल या ट्रैक्टर से की जाती है।
खेत की तैयारी करते वक्त जल निकासी और पानी रोकने की व्यवस्था पर खास ध्यान देना चाहिए। मेड़बंदी करके पानी को रोकने का इंतजाम करना चाहिए ताकि खेत में नमी बनी रहे। इसके साथ ही, गोबर की सड़ी हुई खाद या जैविक खाद खेत में मिला देनी चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़े और फसल को शुरुआती पोषण मिल सके। एक अच्छा तैयार किया गया खेत ही एक सफल और सेहतमंद फसल की नींव होता है।
उर्वरक | मात्रा (हेक्टेयर) | कब डालें? |
डीएपी (DAP) | 100 किग्रा | आखिरी जुताई पर |
म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) | 50 किग्रा | आखिरी जुताई पर |
जिंक सल्फेट | 25 किग्रा | मिट्टी में मिलाकर |
टिप: इन खादों को अच्छे से मिट्टी में मिलाओ, ताकि पौधे की जड़ें शुरू से ताकत पकड़ें।
2. कल्ले निकलने का टाइम (Tillering Stage)
धान की फसल में कल्ले निकलने का समय यानी टिलरिंग स्टेज फसल की वृद्धि का सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। यह अवस्था आमतौर पर रोपाई के 25-35 दिन बाद आती है, जब एक पौधे से कई नई शाखाएं (कल्ले) निकलने लगती हैं। जितने ज्यादा स्वस्थ कल्ले निकलते हैं, उतनी ही ज्यादा बालियां बनती हैं, और अंततः उत्पादन बढ़ता है। इस समय पौधों को उचित मात्रा में पानी और पोषण की आवश्यकता होती है ताकि कल्ले सही ढंग से विकसित हो सकें।
टिलरिंग स्टेज पर नाइट्रोजन (यूरिया) की खुराक देना बहुत फायदेमंद होता है। इसके साथ ही, खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखना जरूरी है। इस समय यदि खरपतवारों की सफाई और जल निकासी का ध्यान नहीं रखा गया, तो कल्ले कमजोर और कम संख्या में बनते हैं। इसलिए यह समय किसान के लिए सावधानी से देखभाल का होता है, जिससे धान की फसल मजबूत नींव पर खड़ी हो सके और अधिक उत्पादन दे सके।
उर्वरक | मात्रा (हेक्टेयर) |
यूरिया | 50 किग्रा |
- कैसे डालें?: यूरिया को मिट्टी में नीचे डालो या छिड़ककर हल्की सिंचाई कर दो।
3. फूल आने से पहले (Panicle Initiation)
इस वक्त खाद डालने से दाने ज्यादा और भारी बनते हैं।
उर्वरक | मात्रा (हेक्टेयर) |
यूरिया | 50 किग्रा |
सल्फर | 10 किग्रा |
देसी टिप: यूरिया के साथ थोड़ा सल्फर (गंधक) मिलाओ, तो दाने मोटे और चमकदार बनेंगे।
धीरे-धीरे घुलने वाली खाद (Slow Release Fertilizer)
धीरे-धीरे घुलने वाली खाद (Slow Release Fertilizer) एक ऐसी उर्वरक तकनीक है जो पौधों को लंबे समय तक पोषक तत्व देती है। इसे इस तरह तैयार किया जाता है कि इसमें मौजूद पोषक तत्व मिट्टी में तुरंत घुलने की बजाय धीरे-धीरे घुलते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि फसल को लंबे समय तक लगातार पोषण मिलता है और बार-बार खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे श्रम और लागत दोनों में बचत होती है।
धान की खेती में धीरे-धीरे घुलने वाली खाद जैसे नीम-कोटेड यूरिया, सल्फर कोटेड यूरिया या जिंक-युक्त उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने और पैदावार सुधारने में कारगर होता है। ये खादें मिट्टी में धीरे-धीरे घुलती हैं, जिससे नाइट्रोजन की बर्बादी कम होती है और पर्यावरण पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। यह तकनीक खासकर उन क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है जहां सिंचाई सीमित हो और बार-बार खाद डालना संभव न हो।
- नीम कोटेड यूरिया (NCU): ये यूरिया को बर्बाद होने से बचाता है।
- बायो-उर्वरक: जैसे एजोटोबैक्टर, PSB (फॉस्फेट सोल्युबिलाइजिंग बैक्टीरिया)।
फायदा: ये मिट्टी को उपजाऊ रखते हैं और पैदावार भी बढ़ाते हैं।
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जैविक खाद: देसी जुगाड़
आज के समय में रासायनिक खादों के बढ़ते उपयोग से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति घट रही है। ऐसे में जैविक खाद एक देसी और सस्ता जुगाड़ बनकर उभरी है। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और जीवामृत मिट्टी को जरूरी पोषक तत्व प्रदान करती हैं और साथ ही मिट्टी के जीवाणुओं को भी सक्रिय रखती हैं। किसान अपने ही खेत या पशुओं से निकले गोबर, गोमूत्र, छाछ और गुड़ जैसे सामान से यह खाद तैयार कर सकते हैं।
गांवों में किसान कई देसी जुगाड़ अपनाते हैं – जैसे मिट्टी के गड्ढों में गोबर, पराली और रसोई का जैविक कचरा डालकर कुछ हफ्तों में खाद तैयार करना। इसके अलावा, वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद भी एक बेहतरीन विकल्प है, जिसे खेत के कोने में आसानी से तैयार किया जा सकता है। जैविक खाद न केवल लागत कम करती है, बल्कि फसल को प्राकृतिक रूप से मजबूत और स्वादिष्ट बनाती है। यही नहीं, यह खेती को टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल भी बनाती है।
- गोबर की खाद: 10-12 टन प्रति हेक्टेयर।
- वर्मी कम्पोस्ट: 2-3 टन प्रति हेक्टेयर।
- नीम खली: कीटों से बचाव और पोषण दोनों।
- पंचगव्य/जीवामृत: मिट्टी में जीवाणु बढ़ाने का देसी नुस्खा।
टिप: जैविक खाद मिट्टी को लंबे समय तक तंदुरुस्त रखती है और रासायनिक खाद की जरूरत कम करती है।
सिंचाई के साथ खाद (Fertigation)
आज के समय में रासायनिक खादों के बढ़ते उपयोग से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति घट रही है। ऐसे में जैविक खाद एक देसी और सस्ता जुगाड़ बनकर उभरी है। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और जीवामृत मिट्टी को जरूरी पोषक तत्व प्रदान करती हैं और साथ ही मिट्टी के जीवाणुओं को भी सक्रिय रखती हैं। किसान अपने ही खेत या पशुओं से निकले गोबर, गोमूत्र, छाछ और गुड़ जैसे सामान से यह खाद तैयार कर सकते हैं।
गांवों में किसान कई देसी जुगाड़ अपनाते हैं – जैसे मिट्टी के गड्ढों में गोबर, पराली और रसोई का जैविक कचरा डालकर कुछ हफ्तों में खाद तैयार करना। इसके अलावा, वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद भी एक बेहतरीन विकल्प है, जिसे खेत के कोने में आसानी से तैयार किया जा सकता है। जैविक खाद न केवल लागत कम करती है, बल्कि फसल को प्राकृतिक रूप से मजबूत और स्वादिष्ट बनाती है। यही नहीं, यह खेती को टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल भी बनाती है।
- खाद की बचत होती है।
- पौधों को सीधा पोषण मिलता है।
- खेत में नमी बनी रहती है।

उर्वरकों की सही मात्रा (1 हेक्टेयर)
धान की अच्छी उपज के लिए सही मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग बहुत जरूरी होता है। यदि खेत में पोषक तत्वों की कमी हो, तो फसल की बढ़त और उत्पादन दोनों पर असर पड़ता है। आमतौर पर 1 हेक्टेयर धान की खेती के लिए लगभग 100 किलोग्राम नाइट्रोजन (N), 50 किलोग्राम फास्फोरस (P), और 50 किलोग्राम पोटाश (K) की जरूरत होती है। इसे किसान यूरिया, डीएपी और एमओपी जैसे उर्वरकों के माध्यम से दे सकते हैं।
नाइट्रोजन को तीन भागों में बांटकर देना बेहतर होता है – पहला भाग रोपाई के 10 दिन बाद, दूसरा भाग कल्ले बनने के समय और तीसरा भाग फूल आने के समय देना चाहिए। इसके साथ ही जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट और हरी खाद का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता दोनों बढ़ती है। मिट्टी की जांच करवाकर ही उर्वरकों की मात्रा तय करना सबसे अच्छा तरीका है, जिससे फसल को जरूरत अनुसार पोषण मिले और खर्च भी कम हो।
पोषक तत्व | मात्रा (किग्रा) | कौन सा उर्वरक? |
नाइट्रोजन (N) | 120-150 | यूरिया |
फास्फोरस (P) | 50-60 | डीएपी |
पोटाश (K) | 50-60 | म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) |
जिंक | 25 | जिंक सल्फेट |
सल्फर | 10-20 | बेंटोनाइट सल्फर |
गलतियाँ और बचाव
धान की खेती करते समय कई बार किसान अनजाने में ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं जो फसल को नुकसान पहुंचा सकती हैं। जैसे – समय पर बुवाई न करना, अधिक या कम पानी देना, खाद का असंतुलित प्रयोग करना, और रोग-कीटों को नजरअंदाज करना। ये सभी गलतियाँ फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर असर डालती हैं। खासकर अगर बुवाई देर से होती है तो पौधे कमजोर होते हैं और रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
इन गलतियों से बचने के लिए किसानों को वैज्ञानिक तरीकों का पालन करना चाहिए। बुवाई से पहले मिट्टी परीक्षण करवाएं, समय पर बीज उपचार करें और सिंचाई का संतुलित प्रबंध रखें। जैविक खाद और उन्नत किस्मों का प्रयोग करें, और रोग-कीटों की पहचान कर तुरंत उपचार करें। कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर खेती करना और समय-समय पर प्रशिक्षण लेना भी बचाव का अच्छा तरीका है। सतर्क और समझदारी से की गई खेती ही अच्छे उत्पादन की कुंजी है।
गलती | बचाव का तरीका |
ढेर सारा यूरिया डाल देना | सही मात्रा और समय पर डालो, 3 हिस्सों में बाँटकर। |
फास्फोरस एक ही बार डालना | लंबी फसल हो तो 2 बार में डालो। |
बिना सिंचाई खाद डालना | खाद के बाद हल्की सिंचाई जरूर करो। |
बिना टेस्ट खाद डालना | मिट्टी टेस्ट करवाकर सही खाद चुनो। |
किसानों के लिए देसी सुझाव
- हर फसल के हिसाब से खाद बदलो, एक जैसा फॉर्मूला हर बार मत अपनाओ।
- जैविक और रासायनिक खाद का बैलेंस बनाओ, मिट्टी की सेहत बनी रहेगी।
- बारिश के टाइम खाद डालने से बचो, नहीं तो बह जाएगी।
- मल्टीन्यूट्रिएंट्स स्प्रे (जैसे माइक्रोमिक्स) का छिड़काव करो, सूक्ष्म पोषक मिलेंगे।
- खाद की पैकिंग पर लिखे निर्देश अच्छे से पढ़ो।
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खाद का कमाल: पैदावार में फर्क
धान की खेती में खाद का सही इस्तेमाल पैदावार को कई गुना बढ़ा सकता है। जब खेत को संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे प्रमुख पोषक तत्व मिलते हैं, तो पौधे न सिर्फ तेजी से बढ़ते हैं बल्कि रोगों का सामना भी बेहतर तरीके से कर पाते हैं। गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और जैविक खादें मिट्टी की बनावट सुधारती हैं और उसमें सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाकर खेत को उपजाऊ बनाती हैं।
जहां रासायनिक खादों का सावधानी से इस्तेमाल जरूरी है, वहीं जैविक खाद फसल की गुणवत्ता और मिट्टी की सेहत को बनाए रखने में मदद करती है। उर्वरकों को फसल की जरूरत और मिट्टी की जांच के आधार पर ही देना चाहिए। अगर खाद सही समय और मात्रा में दी जाए तो किसान को कम मेहनत में ज्यादा उत्पादन मिल सकता है – यही है “खाद का कमाल”।
स्थिति | उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) |
बिना खाद | 30-35 |
सिर्फ यूरिया | 40-45 |
संतुलित खाद | 60-70 |
जैविक + रासायनिक | 70+ |
नोट: सही खाद से उपज दोगुनी हो सकती है, वो भी कम खर्चे में।
धान की खेती में उर्वरकों का फंडा – मुनाफे का सीक्रेट, देसी अंदाज में
खेती का चरण | उर्वरक | मात्रा (किग्रा/हेक्टेयर) | कब डालें? | कैसे डालें? |
---|---|---|---|---|
खेत तैयार करते वक्त (Basal Dose) | डीएपी (DAP) | 100 | आखिरी जुताई पर | मिट्टी में अच्छे से मिलाएँ |
म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) | 50 | आखिरी जुताई पर | मिट्टी में अच्छे से मिलाएँ | |
जिंक सल्फेट | 25 | आखिरी जुताई पर | मिट्टी में मिलाकर | |
कल्ले निकलने का टाइम (Tillering Stage) | यूरिया | 50 | रोपाई के 20-25 दिन बाद | मिट्टी में डालकर हल्की सिंचाई करें |
फूल आने से पहले (Panicle Initiation) | यूरिया | 50 | फूल आने से पहले | मिट्टी में डालकर हल्की सिंचाई करें |
सल्फर | 10 | फूल आने से पहले | यूरिया के साथ मिलाकर छिड़कें | |
जैविक खाद (वैकल्पिक) | गोबर की खाद | 10,000-12,000 | खेत तैयार करते वक्त | मिट्टी में अच्छे से मिलाएँ |
वर्मी कम्पोस्ट | 2,000-3,000 | खेत तैयार करते वक्त | मिट्टी में मिलाएँ | |
नीम खली | 500-1,000 | खेत तैयार करते वक्त | मिट्टी में मिलाकर या छिड़काव | |
सूक्ष्म पोषक (वैकल्पिक) | मल्टीन्यूट्रिएंट्स स्प्रे (माइक्रोमिक्स) | 2-3 मिली/लीटर पानी | फूल और दूध अवस्था में | पत्तियों पर छिड़काव |
देसी टिप:
- मिट्टी टेस्ट करवाकर खाद डालो, फालतू खर्चा बचेगा।
- नीम कोटेड यूरिया (NCU) इस्तेमाल करो, खाद बर्बाद नहीं होगी।
- जैविक खाद जैसे पंचगव्य या जीवामृत डालने से मिट्टी की ताकत बढ़ती है।
- बारिश के समय खाद डालने से बचो, वरना बह जाएगी।
निष्कर्ष: धान की खेती में उर्वरकों का फंडा – मुनाफे का सीक्रेट, देसी अंदाज में।
धान की खेती में उर्वरक वो चाबी है, जो तुम्हारे खेत का खजाना खोल सकती है। ज्यादा खाद = ज्यादा फसल ये गलतफहमी छोड़ दो। सही मात्रा, सही समय और सही तरीके से खाद डालो, तो न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि मिट्टी भी सालों-साल उपजाऊ रहेगी। तो देर न करो, मिट्टी टेस्ट करवाओ, खाद का हिसाब लगाओ, और धान की फसल से मोटा मुनाफा कमाओ।
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