नमस्कार किसान भाइयों, क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी उगाई गई फसल को दुनिया भर में नाम मिल सकता है? जी हां, हम बात कर रहे हैं GI-टैग वाली फसलों की। ये वो खास फसलें होती हैं जो किसी एक खास जगह की पहचान बन जाती हैं। जैसे बनारस की साड़ी, वैसे ही नागपुर का संतरा, दरजीलिंग की चाय या फिर अल्फ़ांसो आम। GI-टैग वाली फसलों का निर्यात बाज़ार – किसानों के लिए सुनहरा मौका।
अब सवाल ये उठता है कि GI टैग से फायदा क्या होता है और इसका निर्यात बाजार (Export Market) कितना बड़ा है? तो चलिए, दोस्ताना अंदाज़ में सबकुछ विस्तार से समझते हैं।
GI-टैग क्या होता है?
GI का मतलब होता है Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत। ये एक तरह का टैग होता है जो किसी विशेष उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान के आधार पर दिया जाता है। मतलब, वो चीज़ सिर्फ उसी इलाके में सबसे अच्छी बनती है।

उदाहरण के लिए:
- बनारस की लाल चूंदरी साड़ी।
- झारखंड का कोदो बाजरा।
- महाराष्ट्र का अल्फांसो आम।
- कश्मीर की केसर।
इन सभी को GI टैग मिला हुआ है।
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GI टैग वाली फसलों के निर्यात का बाजार क्यों खास है?
1. क्वालिटी और पहचान।
GI टैग मिलने से उस फसल को गुणवत्ता की गारंटी मिल जाती है। इससे विदेशों में लोग भरोसे के साथ उस प्रोडक्ट को खरीदते हैं।
2. अंतरराष्ट्रीय डिमांड ज्यादा होती है।
आपको बता दें कि दार्जिलिंग टी या बासमती चावल ये दुनिया के कई देशों में पसंद किए जाते हैं क्योंकि इनका स्वाद और खुशबू बिल्कुल खास होती है।
3. कीमत अच्छी मिलती है।
GI टैग वाले प्रोडक्ट की कीमत आम प्रोडक्ट से ज्यादा मिलती है। इससे किसान को सीधा फायदा होता है।
4. ब्रांडिंग का फायदा।
GI टैग से किसान या उत्पादक अपने प्रोडक्ट को वैश्विक ब्रांड की तरह प्रमोट कर सकते हैं। ये सीधे एक्सपोर्ट में मदद करता है।
भारत की प्रमुख GI टैग वाली फसलें जो निर्यात होती हैं:
फसल का नाम | राज्य | विदेशी डिमांड |
बासमती चावल | पंजाब, हरियाणा | यूएसए, खाड़ी देश |
दार्जिलिंग टी | पश्चिम बंगाल | यूरोप, जापान |
अल्फांसो आम | महाराष्ट्र | खाड़ी देश, यूके |
कन्नौज का इत्र | उत्तर प्रदेश | फ्रांस, मिडिल ईस्ट |
कश्मीर केसर | जम्मू-कश्मीर | अमेरिका, दुबई |
GI-टैग वाली फसलों के निर्यात के फायदे।
- बाजार में एक्सक्लूसिव पहचान मिलती है।
- विदेशी मुद्रा कमाई का जरिया बनता है।
- देश की कृषि को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलती है।
- स्थानीय किसानों की आमदनी बढ़ती है।
- सस्टेनेबल खेती को बढ़ावा मिलता है।

भारत सरकार की मदद और स्कीमें।
सरकार GI टैग वाले उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रही है:
- APEDA (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority) GI-tagged कृषि उत्पादों के प्रमोशन के लिए फंडिंग और ट्रेनिंग देती है।
- ICAR और NABARD जैसी संस्थाएं किसानों को तकनीकी सहयोग देती हैं।
- Export Incentives और Brand India Campaign के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमोशन किया जाता है।
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GI टैग की फसलें उगाने के लिए किसान क्या करें?
1. अपनी मिट्टी और जलवायु के अनुसार GI फसलों की जानकारी लें।
2. किसी भी GI टैग यूनिट या क्लस्टर से जुड़ें।
3. सरकारी योजनाओं और ट्रेनिंग में भाग लें।
4. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रजिस्टर करें जैसे e-NAM, APEDA पोर्टल आदि।
5. फसल की क्वालिटी बनाए रखें ताकि एक्सपोर्ट के लिए स्वीकार्य हो।
भविष्य की संभावनाएं।
GI टैग वाली फसलों का निर्यात बाजार आने वाले समय में और भी तेजी से बढ़ेगा। आज जब पूरी दुनिया “स्पेशल और ओरिजिनल” प्रोडक्ट्स की तलाश में है, तो GI-tagged फसलें भारतीय किसानों के लिए बिल्कुल गोल्डन चांस की तरह हैं।
निष्कर्ष :
अगर आप किसान हैं और अब तक सिर्फ मंडी तक ही सोचते आए हैं, तो अब समय है अपनी फसल को विदेशी प्लेट पर पहुँचाने का। GI टैग केवल एक मार्क नहीं है, ये आपकी मेहनत और जमीन की खास पहचान है, जो आपको बाकी सबसे अलग बनाती है।
तो आज ही अपनी ज़मीन, अपनी फसल और अपनी मेहनत को GI टैग वाली खेती की ओर मोड़िए और भारत को कृषि निर्यात में नंबर वन बनाने में अपनी भागीदारी निभाइए।
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