धान की खेती में उर्वरक का सही इस्तेमाल पूरी जानकारी जरूर लें

नमस्कार किसान भाइयों भारत में धान की खेती किसानों की रीढ़ है। चावल हमारी थाली का हिस्सा ही नहीं, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका का आधार भी है। लेकिन अच्छी फसल के लिए सिर्फ मेहनत और अच्छे बीज काफी नहीं, बल्कि उर्वरकों का सही इस्तेमाल भी उतना ही जरूरी है। अगर सही समय पर सही मात्रा में उर्वरक डाला जाए, तो पैदावार कई गुना बढ़ सकती है। 

तो चलिए, आज बात करते हैं कि धान की खेती में उर्वरक कैसे, कब और कितना डालना चाहिए, और इससे क्या फायदे मिलते हैं।

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उर्वरक होता क्या है?

सीधे-सादे शब्दों में, उर्वरक वो चीज है जो खेत की मिट्टी को ताकत देता है, ताकि फसल को वो सारे पोषक तत्व मिलें, जिनकी उसे जरूरत होती है। उर्वरक दो तरह के होते हैं:

  1. प्राकृतिक (जैविक) उर्वरक: जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद (धैंचा, सन आदि)।
  2. रासायनिक उर्वरक: जैसे यूरिया, डीएपी, म्यूरेट ऑफ पोटाश आदि।
धान की खेती में उर्वरक का सही इस्तेमाल पूरी जानकारी होती है

धान को चाहिए कौन-कौन से पोषक तत्व?

धान की फसल को हरा-भरा और मजबूत बनाने के लिए कुछ खास पोषक तत्व चाहिए। इनमें से तीन सबसे जरूरी हैं:। 

पोषक तत्वकाम क्या करता है?
नाइट्रोजन (N)पत्तियों को हरा-भरा रखता है, पौधे की बढ़ोतरी तेज करता है।
फास्फोरस (P)जड़ों को मजबूत बनाता है, ताकि पौधा अच्छे से जमे।
पोटाश (K)पौधे को बीमारियों और कीटों से लड़ने की ताकत देता है।

इनके अलावा जिंक, गंधक, मैग्नीशियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी धान के लिए जरूरी हैं, जो फसल को पूरी तरह स्वस्थ रखते हैं।  

धान की खेती में उर्वरक डालने का सही तरीका

अच्छी पैदावार के लिए उर्वरक डालने का सही समय और तरीका जानना बहुत जरूरी है। चलिए, इसे चरणबद्ध तरीके से समझते हैं:

1. खेत तैयार करते वक्त

  1. गोबर की खाद या कम्पोस्ट को खेत में रोपाई से 20-25 दिन पहले अच्छे से मिला दें।
  2. ये जैविक खाद मिट्टी को उपजाऊ बनाती है और उसकी बनावट को सुधारती है।
  3. प्रति हेक्टेयर 8-10 टन गोबर खाद या कम्पोस्ट डालना ठीक रहता है।

2. रोपाई के 7-10 दिन बाद

  1. इस समय यूरिया (नाइट्रोजन) का पहला छिड़काव करें।
  2. इससे पौधे तेजी से बढ़ते हैं और उनकी पत्तियां हरी-भरी रहती हैं।
  3. प्रति हेक्टेयर 30-40 किलो यूरिया डालें।

3. कल्ले निकलने के समय (20-25 दिन बाद)

  1. इस स्टेज पर यूरिया और म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाकर डालें।
  2. इससे पौधों में ज्यादा कल्ले निकलते हैं, जो ज्यादा दाने देने में मदद करते हैं।
  3. यूरिया 30-40 किलो और पोटाश 15-20 किलो प्रति हेक्टेयर डालें।

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4. बालियां बनने के समय (40-50 दिन बाद)

  1. इस समय डीएपी (फास्फोरस) और पोटाश डालें।
  2. ये दानों को मोटा और मजबूत बनाने में मदद करते हैं।
  3. प्रति हेक्टेयर 50-60 किलो डीएपी और 20-25 किलो पोटाश डालें।

1 हेक्टेयर खेत में उर्वरक की अनुमानित मात्रा

उर्वरकमात्रा (किलोग्राम)
यूरिया100-120 किलो
डीएपी50-60 किलो
म्यूरेट ऑफ पोटाश40-50 किलो
गोबर खाद / कम्पोस्ट8-10 टन

खास बात: ये मात्रा मिट्टी की जांच पर निर्भर करती है। हर खेत की मिट्टी अलग होती है, इसलिए मृदा परीक्षण करवाना सबसे अच्छा है। इससे पता चलता है कि आपके खेत को कितने और कौन से उर्वरक की जरूरत है।

जैविक उर्वरकों का जादू

आजकल किसान रासायनिक खाद के साथ-साथ जैविक उर्वरकों की तरफ भी बढ़ रहे हैं, और इसके कई फायदे हैं:

  1. मिट्टी की सेहत लंबे समय तक बनी रहती है।
  2. पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं।
  3. खेती की लागत कम होती है।
  4. चावल की क्वालिटी बेहतर होती है, जो बाजार में अच्छा दाम दिलाती है।

कुछ लोकप्रिय जैविक उर्वरक:

  1. गोबर की खाद: पुराना और भरोसेमंद तरीका।
  2. वर्मी कम्पोस्ट: केंचुओं से बनी खाद, जो मिट्टी के लिए बहुत अच्छी होती है।
  3. हरी खाद: धैंचा, सन, या लोबिया जैसी फसलों को खेत में उगाकर जोत देना।
  4. नीम की खली: कीटों से बचाव के साथ पोषण भी देती है।

मिट्टी की जांच क्यों जरूरी?

हर खेत की मिट्टी का मिजाज अलग होता है। कहीं नाइट्रोजन कम होता है, तो कहीं फास्फोरस की कमी। मृदा परीक्षण से ये पता चलता है कि मिट्टी में कौन सा पोषक तत्व कम है और कितना उर्वरक डालना चाहिए। इसके फायदे:

  1. उर्वरक की बर्बादी रुकती है।
  2. खेती की लागत कम होती है।
  3. फसल की पैदावार बढ़ती है।

आप नजदीकी कृषि केंद्र या मृदा परीक्षण लैब में मिट्टी की जांच करवा सकते हैं।

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उर्वरक डालते समय रखें ये सावधानियां

  1. ज्यादा यूरिया न डालें: इससे पौधे जल सकते हैं या पत्तियां पीली पड़ सकती हैं।
  2. बारिश में उर्वरक न डालें: बारिश उर्वरक को बहा ले जाती है, जिससे नुकसान होता है।
  3. सही तरीके से मिलाएं: उर्वरक डालने के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि वो मिट्टी में अच्छे से मिल जाए।
  4. सुरक्षा का ध्यान रखें: रासायनिक उर्वरक छिड़कते समय मास्क और दस्ताने पहनें।

उर्वरक से मिलने वाले फायदे

  1. पैदावार में इजाफा: सही उर्वरक सही समय पर डालने से चावल की पैदावार 20-30% तक बढ़ सकती है।
  2. दाने की क्वालिटी: दाने मोटे, चमकदार और बाजार में अच्छा दाम देने वाले बनते हैं।
  3. बीमारियों से सुरक्षा: पोटाश और जिंक जैसे तत्व पौधों को कीटों और रोगों से बचाते हैं।
  4. मिट्टी का संतुलन: जैविक और रासायनिक उर्वरकों का सही मिश्रण मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ रखता है।

ज्यादा उर्वरक का नुकसान

ज्यादा उर्वरक डालना भी ठीक नहीं। इसके कुछ दुष्परिणाम हैं:

  1. मिट्टी की उर्वरता कम होना: ज्यादा रासायनिक खाद मिट्टी को बंजर बना सकती है।
  2. पर्यावरण को नुकसान: पानी में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ने से नदियां और तालाब प्रदूषित होते हैं।
  3. फसल में रसायन: ज्यादा रासायनिक खाद से चावल में हानिकारक तत्व पहुंच सकते हैं।

इसलिए हमेशा संतुलित मात्रा में और सही समय पर उर्वरक डालें।

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सरकार की मदद से उर्वरक आसानी से

किसानों की मदद के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है:

  1. e-उर्वरक पोर्टल: यहां से उर्वरकों की कीमत और उपलब्धता की जानकारी मिलती है।
  2. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: मुफ्त या कम खर्च में मिट्टी की जांच करवाएं।
  3. सहकारी समितियां और CSC केंद्र: यहां से सस्ते दाम पर उर्वरक मिलते हैं।

 निष्कर्ष:धान की खेती में उर्वरक का सही इस्तेमाल पूरी जानकारी जरूर लें

धान की खेती में उर्वरक वो जादुई चीज है, जो मेहनत को दोगुना फल दे सकती है। लेकिन इसका इस्तेमाल दिमाग से करना चाहिए। सही मात्रा, सही समय और सही तरीके से उर्वरक डालें, तो न सिर्फ पैदावार बढ़ेगी, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। जैविक खाद को अपनाएं, मृदा परीक्षण करवाएं, और सरकारी योजनाओं का फायदा उठाएं।

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