नमस्कार दोस्तों हम आपको पहले भी इसी तरह की जानकारी बताते आ रहे हैं आज हम आपके साथ कुछ नई जानकारी साझा करेंगे।
“अगर धान बोना है, तो ऐसा बोओ जो जल्दी कटे, कम खर्च में ज़्यादा उपज दे और मंडी में दाम भी अच्छा मिले।”
और ऐसे ही एक कमाल की किस्म है — 1718 धान, यानी PR-126।
अब आप सोच रहे होंगे — भाई ऐसा क्या खास है इस 1718 में? तो चलिए, आपको एकदम दोस्ताना अंदाज़ में पूरी बात समझाता हूँ — खेत की मिट्टी से लेकर मंडी के मुनाफे तक।
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1. सबसे पहले समझो – 1718 धान है क्या बला?
1718 धान असल में PR-126 किस्म का ही दूसरा नाम है। इसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने तैयार किया है। यह एक उन्नत किस्म (improved variety) है जो खासतौर पर उन किसानों के लिए है जो:
- जल्दी पकने वाली फसल चाहते हैं
- कम पानी में भी अच्छी उपज लेना चाहते हैं
- मुनाफा जल्दी और ज़्यादा चाहते हैं
इस किस्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसकी फसल 110 से 115 दिन में ही तैयार हो जाती है, यानी जल्दी बोओ, जल्दी काटो, और अगली फसल की तैयारी में लग जाओ।

2. इसकी खेती के लिए मिट्टी कैसी होनी चाहिए?
1718 बासमती धान एक उन्नत किस्म है, जिसे अच्छी उपज और गुणवत्ता के लिए खास मिट्टी की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए दोमट (loamy) या जलोढ़ (alluvial) मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि यह नमी को लंबे समय तक बनाए रखती है और पौधों को जरूरी पोषण देती है। मिट्टी अच्छी तरह से जलनिकासी वाली होनी चाहिए ताकि फसल को जलजमाव से बचाया जा सके, क्योंकि ज्यादा देर तक खड़ा पानी जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसके अलावा, मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए, जो तटस्थ से हल्की अम्लीय श्रेणी में आता है। खेती शुरू करने से पहले खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद या जैविक खाद मिलाना फायदेमंद होता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। मिट्टी की जांच करवाकर उसमें जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे ज़िंक और फॉस्फोरस की पूर्ति करने से 1718 बासमती धान की खेती में बेहतर परिणाम मिलते हैं।
1718 धान को चाहिए:
- दोमट या बलुई दोमट मिट्टी
- जिसमें जल निकासी सही हो
- pH स्तर करीब 6.5 से 7.5 हो
अगर मिट्टी ज्यादा रेतीली है, तो इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद और कंपोस्ट जरूर मिलाओ। इससे पानी रोकने की ताकत बढ़ती है।
3. बुवाई का सही समय और तरीका
अब आता है असली सवाल — बोएं कब और कैसे?
क्रिया | समय | टिप्स |
नर्सरी की बुवाई | 10 जून से 30 जून | प्रति एकड़ 8-10 किलो बीज |
रोपाई | 5 जुलाई से 15 जुलाई | 20-25 दिन पुरानी पौध लगाएं |
फसल कटाई | अक्टूबर के अंत तक | दानों का रंग देखकर तय करें |
बुवाई का तरीका:
- बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना जरूरी है।
- नर्सरी को हरा रखने के लिए जैविक घोल जैसे जीवामृत या गौमूत्र छिड़क सकते हैं।
4. बीज दर और पौधे की दूरी का गणित
धान की किस्म 1718 बासमती के अच्छे उत्पादन के लिए बीज की सही मात्रा और पौधों के बीच उचित दूरी रखना बहुत जरूरी होता है। आमतौर पर 1 एकड़ जमीन के लिए लगभग 5 से 6 किलोग्राम बीज पर्याप्त माना जाता है, बशर्ते बीज शुद्ध और अंकुरण की क्षमता अच्छी हो। अगर सीधे बुवाई की जाती है तो बीज दर थोड़ी अधिक हो सकती है, लेकिन नर्सरी से रोपाई करने की स्थिति में यह दर कम हो जाती है।
पौधों के बीच दूरी का भी उत्पादन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। 20 से 25 सेंटीमीटर की कतार से कतार की दूरी और 10 से 15 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी आदर्श मानी जाती है। इससे पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है और रोग फैलने की संभावना भी कम होती है। सही दूरी रखने से धूप, हवा और पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है, जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उपज ज्यादा होती है।
बिंदु | डिटेल |
बीज की मात्रा | 8-10 किलो प्रति एकड़ |
पौधे से पौधे की दूरी | 15 सेमी |
कतार से कतार की दूरी | 20 सेमी |
सही दूरी से न सिर्फ हवा और धूप की आवाजाही बढ़ती है, बल्कि कीट और रोग का खतरा भी कम हो जाता है।
5. खाद और उर्वरक का देसी फंडा
खेती का सबसे बड़ा मंत्र है — खाद सही, तो फसल दमदार।
उर्वरक | मात्रा (1 हेक्टेयर) | कब डालें |
यूरिया | 120-130 किग्रा | 3 बार में बाँटकर |
डीएपी | 100 किग्रा | खेत की तैयारी में |
पोटाश (MOP) | 50 किग्रा | शुरुआत में |
जिंक सल्फेट | 25 किग्रा | नर्सरी और खेत दोनों में |
देसी टिप:
- खेत में फसल से पहले नीम की खली और गोबर की खाद भी मिलाना बहुत फायदेमंद रहता है।
- पौधों में कल्ले आने के समय यूरिया देना जरूरी है।
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6. सिंचाई का सीक्रेट (कम पानी में ज्यादा फसल)
1718 धान की खेती को अक्सर पानी की फसल कहा जाता है, लेकिन आधुनिक खेती में यह जरूरी नहीं कि ज्यादा पानी ही ज्यादा पैदावार दे। आज का नया सीक्रेट है – स्मार्ट सिंचाई तकनीक, जिससे कम पानी में भी अच्छी फसल ली जा सकती है। उदाहरण के लिए, “अल्टरनेट वेटिंग एंड ड्रायिंग” (AWD) विधि अपनाकर किसान खेत को बार-बार पूरी तरह डुबाने की बजाय जरूरत के हिसाब से सूखने और भीगने देते हैं, जिससे पानी की बचत होती है और फसल की जड़ें मजबूत बनती हैं।
इसके अलावा, लेज़र लैंड लेवलिंग यानी खेत को समतल करना भी पानी की समान वितरण में मदद करता है, जिससे हर कोने तक नमी पहुंचती है और सिंचाई कम बार करनी पड़ती है। कुछ किसान ड्रिप सिंचाई या पाइप सिस्टम से सीधी जड़ों तक पानी पहुंचाते हैं। ये तरीके सिर्फ पानी बचाते ही नहीं, बल्कि उर्वरक और समय की भी बचत करते हैं। यही है सिंचाई का नया सीक्रेट – कम पानी में ज्यादा फसल, ज्यादा मुनाफा।
चरण | सिंचाई कब करें |
रोपाई के तुरंत बाद | पहली सिंचाई |
7-10 दिन बाद | दूसरी सिंचाई |
फूल बनने से पहले | सबसे जरूरी समय |
कटाई से 7 दिन पहले | सिंचाई रोक दें |
जल संरक्षण के लिए खेत में Alternate Wetting and Drying (AWD) पद्धति अपनाना आज के समय में जरूरी है।
7. रोग और कीट नियंत्रण: जल्दी पहचानो, जल्दी बचाओ
धान की फसल को सुरक्षित रखने के लिए सबसे जरूरी है – रोग और कीटों की समय रहते पहचान करना। अक्सर किसान तब ध्यान देते हैं जब नुकसान हो चुका होता है, लेकिन अगर पत्तियों पर धब्बे, पौधों में पीला रंग, या पत्तियां मुड़ती या सूखती दिखें, तो समझ जाना चाहिए कि बीमारी या कीट लग चुका है। तना छेदक, पत्ती लपेटक, गंधी कीट, ब्लास्ट और शीथ ब्लाइट जैसे रोग-कीट धान की फसल को बहुत तेजी से नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इनसे बचने के लिए जरूरी है कि फसल की नियमित निगरानी की जाए और शुरुआती लक्षण मिलते ही जैविक या रासायनिक उपाय अपनाए जाएं। जैसे नीम का अर्क या ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक उत्पाद, और ज़रूरत पड़ने पर विशेषज्ञ की सलाह से उपयुक्त कीटनाशक/फफूंदनाशक का छिड़काव किया जाए। याद रखें — जितनी जल्दी पहचान, उतनी जल्दी समाधान, तभी फसल बचेगी और उत्पादन भी बढ़ेगा।
मुख्य रोग:
रोग | लक्षण | दवा |
ब्लास्ट | पत्तों पर सफेद धब्बे | ट्राईसाइक्लाजोल 75 WP |
झुलसा | पत्ते पीले और सूखते हैं | स्ट्रेप्टोसाइक्लिन + कपर ऑक्सीक्लोराइड |
ब्राउन स्पॉट | भूरे रंग के गोल धब्बे | मैनकोजेब |
प्रमुख कीट:
कीट | लक्षण | नियंत्रण |
तना छेदक | पौधा बीच से कट जाए | क्लोरपायरीफॉस 20 EC |
गंधी कीट | बालियों में बदबू | नीम आधारित जैविक छिड़काव |
8. कटाई, सुखाई और भंडारण – मुनाफे की आखिरी सीढ़ी
धान की फसल में मेहनत तो बुआई से शुरू होती है, लेकिन असली मुनाफा कटाई, सुखाई और भंडारण की सही प्रक्रिया पर निर्भर करता है। जब धान की बालियां 80–90% तक पक जाएं और हल्का सुनहरा रंग आ जाए, तब उसकी कटाई करनी चाहिए। देरी करने पर दाने झड़ सकते हैं और जल्दी करने पर दाने अधपके रह जाते हैं। कटाई हाथ से या आधुनिक हार्वेस्टर मशीन से की जा सकती है।
कटाई के बाद धान को अच्छी तरह धूप में सुखाना जरूरी होता है, ताकि उसकी नमी 14% से कम रहे। अधिक नमी होने पर भंडारण के दौरान फफूंद और कीड़े लग सकते हैं। सुखाने के बाद धान को साफ-सुथरे और सूखे भंडार गृह में रखें, जहां नमी और कीटों से सुरक्षा के लिए जूट या प्लास्टिक की बोरी का प्रयोग किया जा सके। सही तरीके से किया गया भंडारण ही फसल को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है और बेहतर दाम दिलाकर किसान की मेहनत का असली लाभ देता है।
- कटाई के बाद धान को पूरी तरह सुखाएं
- नमी 14% से कम होनी चाहिए
- फिर साफ-सुथरी बोरियों में भरें
- हवा और नमी रहित जगह पर भंडारण करें
कटाई में देरी से दाने झड़ सकते हैं, जिससे सीधा नुकसान होता है।

9. खर्च और कमाई – सारा मुनाफे का हिसाब
धान की 1718 किस्म अपनी कम अवधि और अच्छी उपज के कारण किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसकी खेती में औसतन 20,000 से 25,000 रुपये प्रति एकड़ तक का खर्च आता है, जिसमें बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई और मजदूरी शामिल हैं। चूंकि यह किस्म 120 से 130 दिन में पक जाती है, इसलिए इसमें सिंचाई और दवा का खर्च भी थोड़ा कम आता है।
अब अगर पैदावार की बात करें, तो एक एकड़ से लगभग 22 से 25 क्विंटल धान की उपज हो जाती है। अगर बाजार में भाव ₹2000 प्रति क्विंटल चल रहा हो, तो किसान को ₹45,000 से ₹50,000 तक की आमदनी हो सकती है। यानी एक सीजन में 20,000 से 25,000 रुपये तक का मुनाफा संभव है। अगर किसान सही तकनीक और समय पर खेती करें, तो 1718 किस्म उन्हें कम समय में अच्छा रिटर्न देने में पूरी तरह सक्षम है
मद | अनुमानित खर्च (₹/हेक्टेयर) |
बीज | ₹2,000 |
खाद व उर्वरक | ₹5,000 |
दवा व कीटनाशक | ₹2,500 |
मजदूरी व सिंचाई | ₹10,000 |
कुल खर्च | ₹20,000 |
उत्पादन (65 क्विंटल) | ₹1,41,895 (MSP ₹2183/क्विंटल) |
लाभ | ₹1.2 लाख से ज्यादा |
अगर आप मंडी की जगह eNAM या सीधी बिक्री से बेचते हैं, तो मुनाफा और भी बढ़ सकता है।
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10. किसानों के लिए सलाह – मेरी तरह अपनाओ, सफलता पाओ
- हमेशा मिट्टी परीक्षण करवाकर खाद का इस्तेमाल करें
- नीम-कोटेड यूरिया का प्रयोग करें – कम खर्च, ज्यादा फायदा
- सरकारी योजनाओं जैसे बीमा और सब्सिडी का फायदा जरूर लें
- जैविक खेती के प्रयोग भी साथ में करते रहें
- मंडी रेट की जानकारी के लिए agmarknet.gov.in जैसे पोर्टल पर नज़र रखें
आखिर में – क्यों चुने 1718 धान की खेती?
1718 धान की किस्म को चुनना आज के समय में एक समझदारी भरा फैसला माना जाता है, खासकर उन किसानों के लिए जो उच्च गुणवत्ता वाली बासमती फसल के साथ अच्छी उपज भी चाहते हैं। यह किस्म 1121 की तुलना में कम समय में पक जाती है और रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता रखती है, जिससे खेती में जोखिम कम होता है। इसकी खेती से किसान पानी और कीटनाशकों की बचत कर सकते हैं, जो लागत घटाने में मदद करता है।
इसके अलावा, 1718 धान के दाने लंबे, पतले और सुगंधित होते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाते हैं। यह किस्म निर्यात के लिए भी काफी पसंद की जाती है, जिससे किसानों को वैश्विक बाजार से सीधा फायदा मिल सकता है। कम समय, कम खर्च और बेहतर मुनाफे के कारण 1718 धान आज बासमती किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है।
- जल्दी पकने वाली किस्म (110-115 दिन में तैयार)
- कम पानी की ज़रूरत
- उर्वरकों पर कम खर्च
- अच्छा बाजार भाव
- रोग-प्रतिरोधी और मजबूत पौधे
अगर आप एक सीजन में दो फसल लेना चाहते हैं (जैसे धान + गेहूं), तो 1718 एकदम परफेक्ट है।
10 रोचक तथ्य – 1718 धान के बारे में
- 1718 धान को PR-126 के नाम से जाना जाता है
- यह किस्म पहली बार 2017 में लॉन्च हुई थी
- इसकी पौध की ऊंचाई मात्र 100 सेमी तक होती है
- एक एकड़ में 8-10 किलो बीज ही काफी है
- यह 3 सिंचाई में ही फसल दे सकती है
- इस पर झुलसा और ब्लास्ट का असर बहुत कम होता है
- हर दाना चमकीला, पतला और लंबा होता है
- सरकार ने इसे MSP पर खरीदी के लिए मंजूरी दी है
- यह किस्म organic खाद के साथ भी खूब चलती है
- भारत के 12+ राज्यों में इसकी खेती की जा रही है
निष्कर्ष:1718 धान की खेती: कम समय, ज्यादा मुनाफा – देसी अंदाज़ में पूरी जानकारी
1718 धान की किस्म उन किसानों के लिए एक वरदान की तरह है जो कम समय में अधिक उत्पादन और मुनाफा चाहते हैं। यह किस्म सामान्य बासमती धान की तुलना में जल्दी पक जाती है और कम पानी में भी अच्छी उपज देती है। साथ ही, इसका दाना पतला, लंबा और सुगंधित होता है, जो बाजार में अच्छे दाम दिलवाता है। यही कारण है कि यह किस्म पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
देसी अंदाज़ में कहें तो 1718 धान “तेज़ रफ्तार की बासमती” है, जो किसानों को समय पर फसल काटने और अगली फसल लगाने का भी मौका देती है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होती है, जिससे कीटनाशक दवाओं पर खर्च भी कम होता है। अगर किसान सही समय पर बुआई, खाद और पानी का संतुलित प्रबंध करें, तो यह किस्म वाकई कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली साबित हो सकती है।