Hello किसान भाइयों, अगर आप भी गांव में खेती करते हो या खेती में दिलचस्पी रखते हो, तो आपने जरूर सुना होगा – इस बार बारिश सही हुई तो फसल अच्छी होगी। अब सोचिए, जब फसल की किस्मत बारिश पर टिकी हो, तो यह जानना बहुत जरूरी है कि वर्षा आधारित फसलें कौन सी हैं? आखिर होती कौन सी हैं? कौन-कौन सी फसलें सिर्फ बरसात के भरोसे होती हैं? और इन्हें उगाने में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
तो चलिए, आज हम इस टॉपिक को बिलकुल आसान और बोलचाल की भाषा में समझते हैं, ताकि आपको सब कुछ साफ-साफ समझ आ जाए।
वर्षा आधारित फसलें क्या होती हैं?
वर्षा आधारित फसलें यानी वो फसलें जो सिंचाई की बजाय पूरी तरह से या अधिकतर बारिश के पानी पर निर्भर होती हैं। इन्हें Rainfed Crops भी कहा जाता है।

- इन फसलों की बुवाई मानसून के मौसम में की जाती है।
- अगर बारिश अच्छी हो जाए, तो फसल लाजवाब होती है।
- लेकिन अगर बारिश कम या देर से हो, तो फसल को नुकसान हो सकता है।
वर्षा आधारित मुख्य फसलें – पॉइंट वाइज लिस्ट।
अब बात करते हैं उन फसलों की, जिन्हें आमतौर पर किसान बारिश के भरोसे ही उगाते हैं:
1. ज्वार (Sorghum)
- कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है।
- सूखा सहन करने वाली फसल है।
- ज़्यादातर मराठवाड़ा, विदर्भ, राजस्थान में बोई जाती है।
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2. बाजरा (Pearl Millet)।
- बहुत ही कम पानी में भी उग जाती है।
- गर्म इलाकों और सूखे क्षेत्रों के लिए परफेक्ट है।
- शरीर को ठंडक देने वाला अनाज।
3. मक्का (Maize)।
- मानसून की शुरुआत के साथ इसकी बुवाई की जाती है।
- भरपूर बारिश से उपज में इजाफा होता है।
- इसका इस्तेमाल दाना, चारा और तेल उत्पादन में होता है।
4. उड़द और मूंग (Pulses – Urad & Moong)।
- यह दलहन फसलें भी वर्षा आधारित क्षेत्र में बोई जाती हैं।
- कम समय में पकने वाली होती हैं (60–70 दिन)।
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती हैं क्योंकि ये नाइट्रोजन फिक्स करती हैं।
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5. सोयाबीन (Soybean)।
- बारिश शुरू होते ही बोई जाती है।
- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में बड़े स्तर पर होती है।
- तिलहन फसल है इसमें से तेल निकाला जाता है।

6. तिल और मूंगफली (Til & Groundnut)।
- दोनों फसलें मानसून की शुरुआत में बोई जाती हैं।
- पानी की ज़रूरत सीमित होती है।
- तेल उत्पादन के लिए प्रमुख फसलें।
7. धान (Paddy – सिर्फ बारिश पर आधारित क्षेत्र में)।
- हालांकि धान को काफी पानी चाहिए, लेकिन कई इलाके ऐसे हैं जहां सिर्फ बारिश से ही धान की खेती की जाती है।
इन फसलों की खेती में ध्यान रखने वाली बातें।
- सही समय पर बुवाई करें – बारिश की पहली अच्छी बारिश के बाद बीज बोना शुरू करें।
- बीज उपचार करें – बीज को फफूंदनाशक और कीटनाशक से उपचारित करें ताकि अंकुरण अच्छा हो।
- नमी बचाएं – खेत में मल्चिंग या ढाल पर हल जोतने से मिट्टी में नमी बनी रहती है।
- कम लागत, ज़्यादा मुनाफा – सिंचाई नहीं करनी पड़ती, तो लागत कम आती है।
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वर्षा आधारित खेती के फायदे।
- सिंचाई पर खर्च नहीं – न ट्यूबवेल का झंझट, न बिजली बिल।
- पर्यावरण के अनुकूल – मिट्टी की प्राकृतिक नमी और बारिश का पानी इस्तेमाल होता है।
- कम संसाधन में मुनाफा – अगर समय और तरीका सही हो, तो अच्छी कमाई हो जाती है।
कुछ सावधानियाँ भी जरूरी हैं:
- बारिश समय पर न हो तो फसल खराब हो सकती है।
- कीट व बीमारियाँ ज्यादा बारिश में बढ़ जाती हैं, खासतौर पर तिलहन और दलहन फसलों में।
- जल संरक्षण तकनीकों का प्रयोग जरूरी है, जैसे खेत तालाब, वाटर हार्वेस्टिंग, आदि।
आखिरी बात – ये खेती किसके लिए है?
अगर आपके पास सिंचाई की सुविधा नहीं है, या आप कम लागत में खेती करना चाहते हैं, तो वर्षा आधारित फसलें आपके लिए एक बढ़िया विकल्प हैं। बस सही समय, अच्छी किस्म और थोड़ा सा ध्यान और फसल हाथों हाथ।
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