सोपानी कृषि कहाँ प्रचलित है? | सोपानी कृषि का क्षेत्र: 

नमस्कार किसान भाइयों आज हम बात करने वाले हैं सोपानी कृषि के बारे में। दोस्तों पहले भी हमने आपको अपने कई आर्टिकल्स में सोपानी खेती से संबंधित जानकारी दी है। और इस पोस्ट में हम आपको सोपानी कृषि प्रचलित कहां कहां पर है ये जानकारी देने वाले हैं। 

जैविक खेती कैसे की जाती है ?

सोपानी कृषि, जिसे सीढ़ीदार खेती (Terrace Farming) भी कहा जाता है, एक पारंपरिक कृषि तकनीक है जिसका उपयोग खासतौर पर पहाड़ी और ढलान वाले इलाकों में किया जाता है। इस विधि में पहाड़ों की ढलानों को सीढ़ियों के रूप में काटकर खेत बनाए जाते हैं, जिससे मिट्टी का कटाव कम होता है और जल संरक्षण बेहतर तरीके से किया जा सकता है। यह विधि दुनिया के कई देशों में प्रचलित है और सदियों से किसानों के लिए एक प्रभावी तरीका रही है।

सोपानी कृषि कहाँ प्रचलित है?
सोपानी कृषि कहाँ प्रचलित है?

अब सवाल यह उठता है कि सोपानी कृषि कहाँ प्रचलित है और किन जगहों पर इसका सबसे ज्यादा उपयोग होता है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

भारत में सोपानी कृषि के प्रमुख क्षेत्र कौन कौन से हैं? 

भारत के कई पहाड़ी राज्यों और कुछ अन्य क्षेत्रों में सोपानी कृषि का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

1. उत्तर भारत में:

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश – इन राज्यों में मुख्य रूप से चावल, गेहूं, मक्का, और आलू जैसी फसलें उगाने के लिए सीढ़ीदार खेती का उपयोग किया जाता है। पहाड़ी ढलानों पर खेत बनाए जाने से जल संरक्षण होता है और मिट्टी बहने से बचती है।

जम्मू-कश्मीर – यहाँ के पहाड़ी इलाकों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से बागवानी और सेब के बागानों में।

2. पूर्वोत्तर भारत में सोपानी कृषि: 

अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर और मिजोरम, इन राज्यों में झूम खेती (Shifting Cultivation) के साथ-साथ सोपानी कृषि भी अपनाई जाती है। यहाँ धान, मक्का, अदरक, और हल्दी जैसी फसलें उगाई जाती हैं।

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3. दक्षिण भारत में :

केरल और तमिलनाडु (पश्चिमी घाट) – यहाँ चाय, कॉफी, मसाले, और रबर की खेती के लिए सोपानी कृषि का इस्तेमाल होता है। केरल के मुन्नार और तमिलनाडु के ऊटी में इसकी बेहतरीन मिसालें देखी जा सकती हैं।

4. मध्य और पूर्वी भारत में:

छत्तीसगढ़ और ओडिशा के पहाड़ी क्षेत्र – यहाँ के आदिवासी समुदाय पारंपरिक रूप से इस पद्धति का उपयोग धान और मोटे अनाजों की खेती के लिए करते हैं।

दुनिया के अन्य देशों में सोपानी कृषि?

1. एशिया में: 

चीन – दक्षिणी चीन के युन्नान प्रांत में प्रसिद्ध “ड्रैगन-बैक” (Dragon’s Backbone) टेरेस फार्मिंग मौजूद है, जहाँ सीढ़ीदार खेती मुख्य रूप से धान के लिए की जाती है।

इंडोनेशिया और फिलीपींस – इन देशों में सीढ़ीदार खेती का उपयोग चावल की खेती के लिए किया जाता है। फिलीपींस में बनौए राइस टैरेस (Banaue Rice Terraces) बहुत प्रसिद्ध हैं।

नेपाल और भूटान – हिमालयी क्षेत्रों में भी सीढ़ीदार खेती का बहुत अधिक उपयोग होता है।

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2. दक्षिण अमेरिका में:

पेरू – यहाँ इंका सभ्यता के समय से ही माचू पिचू और आसपास के इलाकों में सोपानी कृषि की जाती रही है।

सोपानी कृषि कहाँ प्रचलित है?

3. अफ्रीका में:

इथियोपिया और केन्या – इन देशों में कॉफी और अन्य फसलों की खेती के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं।

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सोपानी कृषि क्यों जरूरी है?

1. मृदा अपरदन रोकती है

सीढ़ीदार खेत ढलानों पर बहते पानी की गति को कम करते हैं, जिससे मिट्टी का कटाव कम होता है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि को संरक्षित करने में मदद करता है।

2. जल संरक्षण में मददगार

बारिश का पानी बिना बहकर धीरे-धीरे जमीन में अवशोषित होता है, जिससे नमी बनी रहती है और सूखे की समस्या कम होती है।

3. अधिक उपज देती है

सीढ़ीदार खेतों की समतल सतह फसलों के लिए अधिक उपजाऊ बनती है, जिससे पैदावार बढ़ती है।

4. पर्यावरण संरक्षण

यह विधि पहाड़ियों पर हरियाली बनाए रखने में मदद करती है, जिससे जलवायु संतुलन बेहतर होता है और वनों की कटाई कम होती है।

सोपानी कृषि से जुड़ी कुछ चुनौतियाँ

1. निर्माण और रखरखाव में अधिक लागत

पहाड़ों की ढलानों को सीढ़ियों में बदलने के लिए काफी मेहनत और संसाधन लगते हैं।

2. प्राकृतिक आपदाओं का खतरा

भारी बारिश, भूस्खलन और भूकंप जैसी आपदाओं के कारण सीढ़ीदार खेतों को नुकसान हो सकता है।

3. आधुनिक तकनीक की कमी

मशीनों और आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग पहाड़ी क्षेत्रों में सीमित होता है, जिससे किसानों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है।

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निष्कर्ष : सोपानी कृषि कहाँ प्रचलित है?

सोपानी कृषि एक पारंपरिक और प्रभावी कृषि पद्धति है, जो खासकर पहाड़ी इलाकों में अपनाई जाती है। यह न केवल मिट्टी और पानी के संरक्षण में मदद करती है, बल्कि खेती की पैदावार भी बढ़ाती है।

भारत के हिमालयी राज्यों से लेकर चीन, पेरू और इंडोनेशिया तक यह पद्धति सदियों से चली आ रही है। हालाँकि, इसके कुछ तकनीकी और आर्थिक चुनौतियाँ भी हैं, लेकिन टिकाऊ कृषि के लिए यह एक बेहतरीन तरीका साबित होता है।

अगर आपको पहाड़ी क्षेत्रों में खेती से जुड़ी और जानकारी चाहिए तो कमेंट में बताएं।

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