पहले समझ लो, GPS और GIS होता क्या है?
GPS यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम। आसान भाषा में कहें तो ये सैटेलाइट से चलने वाली एक ऐसी तकनीक है, जो आपको बता देती हैखेती में GPS और GIS तकनीक – स्मार्ट खेती की ओर बढ़ता कदम कि आप धरती पर कहाँ खड़े हो। फोन में जो लोकेशन ऑन करते हो न, वही GPS है। अब खेती में इसका कमाल देखो – इससे खेत की सही जगह, उसकी सीमा, और यहाँ तक कि ट्रैक्टर को सही दिशा में चलाने का काम हो जाता है।
GIS का मतलब है भौगोलिक सूचना प्रणाली। ये एक तरह का डिजिटल नक्शा है, जिसमें खेत से जुड़ी सारी जानकारी स्टोर होती है – जैसे मिट्टी कैसी है, बारिश कितनी हुई, खेत ऊँचा-नीचा है या नहीं, पानी की व्यवस्था कैसी है। ये सारी बातें जानकर आप तय कर सकते हो कि कहाँ क्या बोना है।
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खेती में GPS और GIS का इस्तेमाल कैसे हो रहा है?
1. खेत की मैपिंग कर लो
GPS से आप अपने खेत का पूरा नक्शा बना सकते हो। कितना बड़ा खेत है, उसकी सही सीमाएं कहाँ हैं – सब पता चल जाएगा। इससे फसल की प्लानिंग आसान हो जाती है। जैसे, इस हिस्से में धान बो देंगे, उस हिस्से में गेहूँ।

2. बीज बोने और छिड़काव में सटीकता
अब ट्रैक्टर या ड्रोन में GPS लगाकर बीज बोने या खाद-कीटनाशक छिड़कने का काम कर सकते हो। ये तकनीक इतनी सटीक है कि हर जगह एक बराबर मात्रा में सब होगा – न ज्यादा, न कम। इससे पैसे की भी बचत होती है।
3. मिट्टी को समझो
GIS की मदद से मिट्टी का टेस्ट कर सकते हो। हर खेत की मिट्टी अलग होती है न – कहीं ज्यादा पोषक तत्व हैं, कहीं कम। GIS बताएगा कि इस खेत में क्या बोना सही रहेगा और कितनी खाद चाहिए।
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4. पानी का सही इस्तेमाल
GIS से बारिश, नमी और पानी की जरूरत का हिसाब लगाया जा सकता है। इससे पता चल जाएगा कि खेत में कब और कितना पानी देना है। पानी की बर्बादी रुकती है और फसल को सही समय पर पानी मिलता है।
5. फसल की निगरानी और बीमारी पकड़ो
GIS सैटेलाइट से डाटा लेकर फसल की ग्रोथ चेक करता है। अगर कहीं फसल पीली पड़ रही है या कोई बीमारी लगी है, तो तुरंत पता चल जाता है। फिर उस हिस्से को ठीक कर सकते हो, बाकी फसल बच जाएगी।
इनसे किसानों को क्या फायदा?
- पैसा और मेहनत की बचत: जब खाद, पानी, बीज सही मात्रा में डालोगे, तो बर्बादी कम होगी। मतलब लागत कम, मुनाफा ज्यादा।
- समय बचाओ: GPS वाले ट्रैक्टर और ड्रोन तेजी से काम करते हैं। जो काम पहले कई दिन लेता था, वो अब चंद घंटों में हो जाता है।
- पैदावार बढ़ाओ: सही जगह, सही फसल और सही खाद डालने से फसल ज्यादा होगी।
- सारा रिकॉर्ड डिजिटल: GIS से खेत का सारा डाटा आपके मोबाइल में होगा। अगली बार खेती की प्लानिंग में आसानी होगी।
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भारत में ये तकनीक कहाँ तक पहुंची?
भारत में अभी GPS और GIS का चलन शुरूआती दौर में है। बड़े-बड़े किसान, जो ड्रोन और मशीनों का इस्तेमाल करते हैं, वो इसे ज्यादा यूज कर रहे हैं। कई राज्य सरकारें, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), और प्राइवेट कंपनियाँ किसानों को इसके बारे में सिखा रही हैं। खासकर पंजाब, हरियाणा, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है। कुछ कृषि स्टार्टअप्स भी इस तकनीक को गाँव-गाँव तक ले जा रहे हैं।

किन किसानों को ज्यादा फायदा?
- जिनके पास बड़े खेत हैं।
- जो ड्रोन या आधुनिक मशीनें यूज करते हैं।
- जो वैज्ञानिक तरीके से या जैविक खेती करते हैं।
- कृषि स्टार्टअप्स और फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स चलाने वाले।
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इसे कैसे शुरू करें
- कृषि विभाग से बात करो: अपने नजदीकी KVK या ब्लॉक ऑफिस में जाकर इसके बारे में पूछो। वो लोग ट्रेनिंग और गाइडलाइन दे सकते हैं।
- ड्रोन और GPS यंत्रों की ट्रेनिंग लो: कई कंपनियाँ ड्रोन सर्विस देती हैं, उनके साथ जुड़कर सीख सकते हो।
- GIS मैपिंग करवाओ: कुछ मोबाइल ऐप्स और कंपनियाँ GIS मैपिंग की सर्विस देती हैं। उनके जरिए अपने खेत का डाटा जमा कर लो।
निष्कर्ष:खेती में GPS और GIS तकनीक – स्मार्ट खेती की ओर बढ़ता कदम
GPS और GIS तकनीकें खेती को स्मार्ट बना रही हैं। ये वो टूल्स हैं, जो आने वाले वक्त में हर किसान के लिए जरूरी हो जाएंगे। अगर इन्हें सही से यूज कर लिया, तो खेती न सिर्फ फायदे की बनेगी, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा।
तो देर किस बात की? स्मार्ट किसान बनो, स्मार्ट खेती करो – तकनीक के साथ खेती को आसान और मुनाफे का धंधा बनाओ।
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