नमस्कार किसान भाइयों, आज हम बात करेंगे एक ऐसे खेती के तरीके के बारे में जो पुराने जमाने से पूर्वोत्तर भारत में चल रहा है। इसे झूम खेती कहते हैं, जो आज भी पहाड़ी इलाकों और घने जंगलों में की जाती है। झूम खेती किसे कहते हैं इसमें किसान जंगल के छोटे हिस्से को काटकर, जलाकर और राख से खाद बनाकर खेती करते हैं। इस लेख में आप जानेंगे झूम खेती किसे कहते हैं, इसे कैसे करते हैं और इसके फायदे-नुकसान क्या हैं।
झूम खेती क्या है?
आपको बता दें कि झूम खेती एक पारंपरिक तरीका है जिसमें किसान जंगल या पहाड़ी जमीन को कुछ साल के लिए साफ करके फसल उगाते हैं। जब मिट्टी कमजोर हो जाती है तो किसान नई जगह चले जाते हैं और वही तरीका दोहराते हैं। यह खेती खासकर नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में आम है। इस खेती में मशीनों या रसायनिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता।

1. जंगल साफ करना:
किसान पहले एक इलाके में झाड़ियां और छोटे पेड़ काटते हैं ताकि खेत तैयार हो सके।
2. जलाकर राख बनाना:
कटे हुए पेड़-पौधे जला दिए जाते हैं जिससे मिट्टी में राख मिलती है और उर्वरक का काम करती है।
3. खेती करना:
किसान उस जमीन पर कुछ साल तक धान, मक्का या सब्जियां उगाते हैं जब तक मिट्टी उपजाऊ रहती है।
4. जगह बदलना:
मिट्टी की ताकत कम होने पर किसान नई जगह चुन लेते हैं और वही प्रक्रिया दोहराते हैं।
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झूम खेती के फायदे क्या हैं?
किसान भाइयों , अब सवाल आता है कि लोग आज भी झूम खेती क्यों करते हैं जबकि नई तकनीकें आ गई हैं। असल में यह तरीका कम खर्चीला और उनकी जीवनशैली से जुड़ा है। इसमें प्राकृतिक तरीका अपनाया जाता है और किसानों को बाजार पर कम निर्भर रहना पड़ता है। आइए इसके खास फायदे जानते हैं।
1. कम लागत में खेती:
झूम खेती में किसान को महंगे खाद, बीज या मशीनरी की जरूरत नहीं होती, जिससे खर्चा बहुत कम होता है।
2. प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल:
जली हुई लकड़ी की राख मिट्टी को उर्वरक बनाती है, जिससे रसायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती।
3. समुदाय की परंपरा बनी रहती है:
यह खेती उनके पूर्वजों से चली आ रही है, इसलिए लोग इसे अपनी संस्कृति से जोड़कर देखते हैं।
4. अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं:
किसान एक साथ कई तरह की फसलें उगाते हैं जिससे उन्हें अलग-अलग खाने का सामान मिल जाता है।

झूम खेती के नुकसान भी हैं?
जहां फायदे हैं वहीं इसके कुछ नुकसान भी हैं जिनका असर पर्यावरण और किसान दोनों पर पड़ता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे जंगलों की कटाई होती है। मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी धीरे-धीरे घट जाती है। इसके अलावा जंगली जानवरों का नुकसान भी होता है। चलिए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
1. जंगलों की कटाई बढ़ती है:
झूम खेती में हर बार नई जमीन के लिए जंगल काटे जाते हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है।
2. मिट्टी की गुणवत्ता घटती है:
बार-बार जलाने से मिट्टी की ऊपरी परत खराब हो जाती है, जिससे आगे उपज कम हो जाती है।
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3. जंगली जानवरों का घर उजड़ता है:
जंगल काटने से जंगली जानवरों को रहने की जगह नहीं मिलती जिससे मानव-पशु संघर्ष बढ़ता है।
4. फसल पर निर्भरता ज्यादा होती है:
अगर मौसम सही नहीं रहा तो सारी मेहनत खराब हो जाती है क्योंकि इसमें सिंचाई या अन्य सुविधा नहीं होती।
निष्कर्ष: झूम खेती से क्या सीखें?
झूम खेती किसे कहते हैं, यह अब आप अच्छे से समझ गए होंगे। यह तरीका आज भी कई जगह परंपरा और जरूरत के कारण जिंदा है। हालांकि नई तकनीकें आने से अब लोग धीरे-धीरे इससे दूर भी हो रहे हैं। आपको यह जानकारी कैसी लगी, कमेंट में बताना न भूलें। ऐसी ही और खेती से जुड़ी बातें जानने के लिए हमारी वेबसाइट पर दोबारा जरूर आइएगा।
धन्यवाद।