नमस्कार किसान भाइयों , अगर आप भी खेती-बाड़ी में कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के तरीके ढूंढ रहे हैं तो चना की खेती आपके लिए बढ़िया ऑप्शन है। चना एक ऐसी दाल है जिसकी मांग पूरे साल रहती है और इसमें ज्यादा खर्चा भी नहीं आता। सही जानकारी और थोड़ी सी देखभाल से कोई भी किसान इससे अच्छा उत्पादन ले सकता है। आज मैं आपको आसान भाषा में बताऊंगा कि चने की खेती कैसे की जाती है और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

मिट्टी और जलवायु का सही चुनाव:
आपको बता दें कि चना की खेती के लिए सही मिट्टी और मौसम बहुत जरूरी होते हैं। ज्यादा उपज के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे सही मानी जाती है और इसकी खेती ठंडे मौसम में अच्छे से होती है। खेत तैयार करने से लेकर बीज बोने तक कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए ताकि फसल अच्छी हो और बीमारी भी ना लगे।
- खेत की मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी और जल निकासी वाली होनी चाहिए ताकि पानी जमा ना हो।
- चना की खेती सर्दी के मौसम में करना फायदेमंद रहता है क्योंकि ज्यादा गर्मी में पौधे कमजोर पड़ सकते हैं।
- मिट्टी का PH 6 से 7.5 के बीच हो तो चना अच्छे से बढ़ता है।
- खेत को पहले अच्छी तरह जोत कर मिट्टी को समतल कर लें ताकि बीज सही गहराई तक जा सके।
- जरूरत हो तो मिट्टी की जांच करवा कर ही खाद और उर्वरक डालें।
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बीज का चुनाव और बुवाई की तैयारी:
अच्छा बीज ही अच्छी फसल की पहली शर्त है। हमेशा उन्नत किस्म के बीज ही चुनें ताकि उत्पादन ज्यादा हो और बीमारियों से भी बचाव हो सके। बीज को बोने से पहले कुछ सावधानियां जरूर बरतें।
- बीज हमेशा प्रमाणित दुकान या कृषि केंद्र से ही खरीदें।
- बीज को बोने से पहले फफूंदी रोधी दवा से उपचारित कर लें ताकि रोग न लगें।
- चना की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच करना सबसे सही रहता है।
- बीजों की दूरी करीब 25 से 30 सेंटीमीटर रखें ताकि पौधे अच्छे से फैल सकें।
- प्रति हेक्टेयर करीब 60 से 80 किलो बीज की जरूरत होती है।
उर्वरक और सिंचाई का सही तरीका:
आपको बता दें कि चना की खेती में ज्यादा खाद-पानी की जरूरत नहीं होती, फिर भी सही मात्रा में उर्वरक और सिंचाई फसल को मजबूत बनाते हैं। इस काम को सही तरीके से करना चाहिए ताकि पौधे में फूल और दाने ज्यादा बनें।
- चना में नाइट्रोजन की जरूरत कम होती है क्योंकि यह खुद मिट्टी से नाइट्रोजन ले लेता है।
- बोने से पहले खेत में गोबर की खाद डाल दें तो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है।
- पौधों को जरूरत के हिसाब से 2-3 बार ही सिंचाई करनी पड़ती है।
- पहली सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी सिंचाई दाने बनने के समय करें।
- पानी का ज्यादा भराव न हो वरना जड़ गल सकती है।
रोग और कीट नियंत्रण:
चना की खेती में कुछ रोग और कीट लग सकते हैं, जिनसे पौधे कमजोर पड़ सकते हैं। थोड़ी सी देखभाल और सही दवाइयों से इनका इलाज संभव है।
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- चने में उखटा रोग और चने की इल्ली सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
- खेत में साफ-सफाई रखें और फसल अवशेषों को जला दें।
- बीजोपचार जरूर करें ताकि फफूंद जनित बीमारियां न लगें।
- रोग दिखने पर तुरंत कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें और उचित दवाई का छिड़काव करें।
- जरूरत हो तो जैविक कीटनाशक भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

फसल की कटाई और भंडारण:
फसल तैयार होने पर सही समय पर कटाई और भंडारण करना जरूरी होता है ताकि दाने खराब न हों। अगर आप इस काम को सही से करेंगे तो नुकसान की संभावना कम होगी।
- जब चने के पौधे पूरी तरह सूख जाएं तो ही कटाई करें।
- कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह धूप में सुखा लें।
- दानों को अच्छे से साफ कर बोरियों में भरें।
- भंडारण वाली जगह सूखी और हवादार होनी चाहिए।
- दानों को नमी और कीड़ों से बचाने के लिए नीम की पत्तियां डाल सकते हैं।
निष्कर्ष:
तो दोस्तों, चना की खेती सही तरीके से की जाए तो ये कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सकती है। उम्मीद है यह जानकारी आपके काम आएगी और अगली बार आप भी अपने खेत में बढ़िया चना उगा पाएंगे। ऐसी ही खेती से जुड़ी आसान और सच्ची जानकारी पाने के लिए हमारी वेबसाइट पर दोबारा जरूर आइए और अपने किसान भाईयों के साथ भी शेयर कीजिए।