भू परिष्करण क्या है, भू परिष्करण का अर्थ, परिभाषा एवं महत्व | tillage meaning in hindi
Tillage in hindi : जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पौधा भूमि पर ही उगता हैं। वह भूमि के माध्यम द्वारा अपनी वृद्धि एवं विकास के लिए समस्त आवश्यकता जैसे- जल, वायु एवं पोषक तत्वो आदि को ग्रहण करता है और अपने सहारा के लिए इसका प्रयोग भी मृदा से ही करता है। पौधों के स्वभाव के अनुसार आवश्यक रूप से मृदा का भुरभुरा होना अति आवश्यक है जिससे पौधे की जड़ आसानी से अधिक से अधिक गहराई तक जा सके तथा अपनी वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व नमी तथा वायु को मृदा से ग्रहण कर सके। अतः इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर पौधे की वृद्धि एवं विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए मृदा पर की जाने वाली समस्त कर्षण क्रियाओं को भू परिष्करण (Tillage) कहते हैं। भू परिष्करण में खेतों को जोतना, हैरो या कल्टीवेटर चलाना, पाटा चलाना, भूमि को समतल करना एवं निराई गुड़ाई आदि समस्त क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।
भू परिष्करण की परिभाषा | definition of tillage in hindi :
भू परिष्करण को हम निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते है
(A). पौधो के अंकुरण तथा वृद्धि के लिए मृदा को उचित अवस्था प्रदान करने को भू परिष्करण कहते हैं।
(B). भू परिष्करण फसल उगाने के लिए भूमि को तैयार करने की वह प्रणाली है जिसके द्वारा भूमि में पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए सभी अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण होता है।
(C). फसल उगाने के लिए भूमि को तैयार करने की वह पद्धति जिसके द्वारा मृदा में पौधे की वृद्धि एवं विकास के लिए सभी अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण होता है, भू परिष्करण कहलाता हैं।
भू परिष्करण के प्रकार | types of tillage in hindi :
भू परिष्करण को क्रियाओं के आधार पर दो भागों में विभक्त किया जाता है
(A). प्राथमिक भू परिष्करण
(B). द्वितीय भू परिष्करण
तो आइये भू परिष्करण के विभिन्न प्रकार को विस्तार से जानते है
(A). प्राथमिक भू परिष्करण | primary tillage in hindi :
प्राथमिक भू परिष्करण वह क्रियाएं हैं, जो फसलों की बुआई के लिए खेत की तैयारी से लेकर बीजो की बुआई तक जितने भी कृषि कार्य किए जाते हैं जैसे- खेतों की जुताई करना, हैरो या कल्टीवेटर चलाना, पाटा चलाना, ढेरों को तोड़ना, भूमि को समतल करना, खाद एवं उर्वरक को मृदा में मिलाना आदि समस्त कृषि क्रियाएं प्राथमिक भू परिष्करण क्रियाएं कहलाती हैं।
(B). द्वितीय भू परिष्कार | secondary tillage in hindi :
खेतों में बीज बोने के बाद से फसल की कटाई तक जितने भी कृषि क्रियाएं की जाती है वह सभी क्रियाये द्वितीय भू परिष्करण कहलाते हैं। आवश्यकतानुसार वर्षा या सिंचाई के बाद खेत की ऊपरी सतह पर बनी सख्त पपड़ी को तोड़ने के लिए हैरो चलाना, खुरपी, कुदाल एवं विभिन्न प्रकार के हो से निराई गुड़ाई करना, फावड़ा या मिट्टी पलटने वाले हल से फसलों पर मिट्टी चढ़ाना आदि कृषि क्रियाएं द्वितीय भू परिष्करण कहलाती हैं।
भू परिष्करण के उद्देश्य | purpose of tillage in hindi :
भू परिष्करण के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य है
(A). मृदा जल-धारण क्षमता को बढ़ाना (Increasing soil water holding capacity) : जुताई के बाद मिट्टी को ढीला एवं महीन बनाएं बनाया जाता है तथा पाटा चलाकर नमी को सुरक्षित किया जाता है। महीन कणो वाली मृदाए अधिक जल धारण कर सकती है और अधिक समय तक अपने अंदर नामी को रोकते रखती हैं। वहीं मृदा कणो के संपर्क में बीज आसानी से आ जाते हैं और अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी प्राप्त कर लेते हैं।
(B). मृदा मे वायू संचार को बढाना (Increasing voice communication in soil) : मृदा मे उचित वायु संचार बनाए रखना भू परिष्करण क्रियाओं पर निर्भर करता है। मृदा में वायू रंध्रावकाश में पाया जाता है इन्हीं रंध्रावकाशो में मृदा जल भी होता है। खेतों की जुताई करने एवं पाटा लगाने से मृदा कण आपस में इस प्रकार मिल जाते हैं कि मृदा में पर्याप्त रंध्रावकाश बन जाता है जिससे इन मृदा मे अधिक से अधिक वायू एवं जल संचय होता है। मृदा में पर्याप्त मात्रा में वायू उपस्थित होने से मृदा में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणु की क्रियाशीलता बढ़ जाती है जिससे कार्बनिक पदार्थों का विघटन तथा वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण अधिक होता है। साथ ही साथ मृदा मे पर्याप्त मात्रा में वायू उपस्थित होने से बीजों के अंकुरण तथा श्वसन की क्रिया बढ़ जाने से फसलों के उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती हैं।
(C). मृदा कटान मे कमी (Soil erosion reduction) : जिन मृदा की जुताई होती रहती है उसमे मृदा कणो के झुंड बन जाते हैं जिससे मृदा में जल का अवशोषण एवं रिसाव की क्षमता बढ़ जाती है अतः वर्षा जल का अधिक भाग भूमि की ऊपरी सतह द्वारा सोख ली जाती है तथा शेष जल मृदा के नीचे गहराई में चले जाते हैं। जिसके कारण जल का बहाव मृदा के सतह पर बहुत कम होता है और मृदा जल कटाव से बच जाती है।
(D). मृदा में जैविक पदार्थों को मिलाना (Addition of organic matter to the soil) : फसलों की बुवाई से पूर्व खेत में कार्बनिक खाद जैसे- गोबर की खाद, कंपोस्ट, हरि खाद आदि को खेत की जुताई करके अच्छी तरह से मिला दिया जाता है। कार्बनिक खादों को भूमि में जुताई करके अच्छी तरह से मिला देने से इसका विघटन हो कर कार्बनिक अम्ल का निर्माण होता है जिससे ये फसलों को आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त यदि इन खादो को मृदा मे न मिलाए जाए तो इन खादो का विघटन न होने से इन कार्बनिक खादों में पोषक तत्वों की बहुत अधिक हानि हो जाती है।
(E). खरपतवार को नष्ट करना (Weed blasting) : फसल उत्पादन के दौरान खरपतवार किसानों के सम्मुख एक प्रमुख समस्याएं है। भू परिष्करण क्रिया के द्वारा खेतों में उपस्थित सभी प्रकार के खरपतवारओं को जुताई द्वारा उखार देने से यह खरपतवार सीधे धूप के संपर्क में आने से तथा मृदा से संपर्क टूटने की वजह से सूख जाते हैं जिससे इन खरपतवारओं का नियंत्रण आसानी से हो जाता है। अतः इस क्रिया में मृदा की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने से भूमि पर उगे खरपतवार मिट्टी के अंदर दब जाते है और वही पर सड़-गड़ जाते हैं।
(F). पौधों को कीटो एवं रोगों से बचाव (Protection of plants from insects and diseases) : भू परिष्करण द्वारा अनेको प्रकार के कीट-पतंगे एवं उनके बच्चे आदि मृदा के सतह पर आ जाते हैं जिससे या तो वे पक्षियों द्वारा खा लिए जाते हैं या वे तेज धूप एवं हवा के संपर्क में आने से नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही साथ फसलों में विभिन्न उपाय के हानिकारक जीवाणु व कवक आदि जो फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग फैलाते हैं वह भी भू परिष्करण के द्वारा मृदा के सतह पर आ जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
(G). पौधों को गिरने से बचाना (Saving plants from falling) : फसलों में मिट्टी चढ़ा देने से पौधों को गिरने से बचाया जा सकता हैं। गन्ने आदि की फसलो में मिट्टी चढ़ा देने से फसलों की वृद्धि व विकास अधिक होती है तथा फसल गिरने से बच जाते हैं। इसी प्रकार आलू की फसल में भी मिट्टी चढ़ा देने से आलू के कन्दो का आकार तथा उपज बढ़ जाता हैं। यह सभी क्रियाएं भू परिष्करण की वजह से ही संभव है।
भू परिष्करण के लाभ | benefits of tillage in hindi :
(A). भू परिष्करण क्रिया जैसे- जुताई आदि करने से भूमि ढीली तथा भूर- भूरी बन जाती है जिससे बीजों की बुवाई आसानी हो जाती है तथा बीजों का जमाव भी अच्छा हो जाता हैं।
(B). भू परिष्करण द्वारा ही जैविक खाद जैसे- गोबर की खाद, हरि खाद आदि को भूमि मे अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है जिससे कि यह खाद शीघ्र विघटन होकर अधिक से अधिक पोषक तत्वो पौधों को उपलब्ध करा पाते हैं।
(C). भू परिष्करण से मृदा में वायु तथा जल आदि की संचार मे वृद्धि होने की वजह से फसलों की वृद्धि और विकास अच्छा होता है जिसे उपज में वृद्धि हो जाती हैं।
(D). भू परिष्करण क्रिया के द्वारा मृदा में जल शोषण करने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है जिससे फसलों को बार-बार सिचाई करने मे कमी आती हैं।
(E). भू परिष्करण क्रिया द्वारा मृदा क्षरण को नियंत्रित किया जा सकता हैं।
(F). भू परिष्करण क्रिया द्वारा खरपतवारओं को आसानी से नियंत्रण किया जा सकता हैं।
(G). भू परिष्करण से मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती हैं।
(H). भू परिष्करण के द्वारा कृषि मे उपयोग होने वाले विभिन्न प्रकार के रसायनों व उर्वरको के प्रयोग के कारण उत्पन्न होने वाली विषाक्तता के प्रभाव को कम किया जा सकता हैं।
(I). हमारे देश में आज भी बहुत बडी मात्रा मे समस्या ग्रस्त कृषि भूमि जैसे- अम्लीय एवं क्षारीय मौजूद है जिसे भू परिष्करण के द्वारा ही सुधारा जा सकता हैं।
(J). भू परिष्करण से पौधों के लिए आवश्यक मृदा दशा को तैयार किया जा सकता है जिससे कि पौधे की जड़े आसानी से मृदा में प्रवेश कर सके वह अपने लिए आवश्यक पोषक तत्व तथा पानी को ग्रहण कर सके।
(K). भू परिष्करण क्रिया करने से भूमि में ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप मृदा में लाभदायक जीवाणु की संख्या में वृद्धि हो जाती हैं।
(L). भू परिष्करण द्वारा फसलो को हानि पहुंचाने वाले विभिन्न प्रकार के कीटो व रोगों फसलों को बचाया जा सकता हैं।
भू परिष्करण की हानि | disadvantages of tillage in hindi :
(A). बार-बार भू परिष्करण (tillage) की क्रिया करने से मृदा के कण एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। जिससे कि इन मृदा कणो को वायु तथा पानी आसानी से बहा ले जाते हैं।
(B). अधिक समय तक लगातार भू परिष्करण करते रहने से मृदा की संरचना बिगड़ जाती है जिससे मृदा ऊसर हो जाती हैं।
(C). बार-बार ट्रैक्टर जुताई करने से मृदा अधिक दब जाते हैं जिसके कारण मृदा की जल धारण क्षमता तथा वायु संचार कम हो जाते हैं।
(D). भू परिष्करण उचित नमी मे ना करने से मिट्टी ढेरों मे बदल जाने के कारण भूमि की उर्वरता शक्ति कम हो जाती हैं।
(E). फसल की कटाई के बाद भू परिष्करण की क्रिया करने की वजह से खरपतवारो के बीज भूमि की निचली सतह पर चले जाते हैं जो अनुकूल मौसम में वह उग आते हैं जिसके कारण फसल में खरपतवार की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं।
(F). भू परिष्करण क्रिया के द्वारा खरपतवार कृषि यंत्रों में फंस कर एक खेत से दूसरे खेत में पहुंच जाते हैं इस प्रकार भू परिष्करण की क्रिया द्वारा खरपतवार के प्रकीर्णन में सहायता प्रदान होता हैं।
Very well article sir