2025 मे मक्का की खेती का सही तरीका: मुनाफा कमाने का देसी फंडा

नमस्ते किसान भाइयों, मैं आपका अपना साथी, आज फिर हाज़िर हूँ।  एक ऐसी फसल की बात करने, जो हमारे खेतों का असली सितारा है अपना देसी मक्का, जिसे हम ‘कॉर्न’ भी कहते हैं। इसकी खासियत ये है कि ये किसी एक मौसम का मोहताज नहीं, चाहे खरीफ हो, रबी हो या जायद, मक्का हर बार हमें अच्छा मुनाफा देता है। सोचो, ये सिर्फ हमारी थाली में भुट्टे के रूप में ही नहीं आता, बल्कि पशुओं के लिए पौष्टिक चारा, स्टार्च और यहाँ तक कि शराब बनाने में भी इसका खूब इस्तेमाल होता है।

मक्का की खेती का सही तरीका:

मुनाफा कमाने का देसी फंडाकम लागत में ज़्यादा मुनाफा, यही तो मक्का की खेती का सबसे बड़ा फायदा है। तो चलो, आज मैं तुम्हें मक्का की खेती का पूरा ‘फंडा’ एकदम आसान और देसी अंदाज़ में समझाता हूँ, जैसे कोई पुराना किसान भाई तुम्हें खेत पर ही बता रहा हो।

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1. जलवायु और मिट्टी कहाँ उगाएँ?

अब बात करते हैं कि मक्का को कहाँ और कैसे उगाएँ, यानी इसके लिए कैसी जलवायु और मिट्टी चाहिए।

जलवायु:

देखो, मक्का को न तो बहुत ज़्यादा गर्मी पसंद है और न ही कड़ाके की ठंड। इसे तो बस हल्की गर्मी और थोड़ा ठंडा मौसम भाता है। जब बीज बोने का समय हो, तब तापमान 18-25 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो सबसे बढ़िया रहता है । और जब दाने पकने लगें, तो मौसम सूखा और गर्म हो, ये इसके लिए एकदम परफेक्ट है । ज़्यादा गर्मी या ठंड में ये थोड़ा नखरे दिखा सकता है, इसलिए सही तापमान का ध्यान रखना ज़रूरी है । मक्का को अच्छी धूप भी खूब पसंद है, इसलिए ऐसी जगह चुनें जहाँ सूरज की रोशनी भरपूर मिले ।

मक्का की खेती का सही तरीका: मुनाफा कमाने का देसी फंडा

मिट्टी:

वैसे तो मक्का भाई, लगभग हर तरह की मिट्टी में उग जाता है, लेकिन अगर दोमट, बलुई दोमट या हल्की काली मिट्टी हो, तो ये इसके लिए सोने पे सुहागा है । मिट्टी का pH मान 5.5 से 7.5 के बीच हो, और सबसे ज़रूरी बात , खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए। अगर पानी जमा हुआ, तो समझो फसल खराब हो सकती है, इसलिए पानी की निकासी का बढ़िया इंतज़ाम होना चाहिए ।

2. सही किस्म चुनो मौसम और जरूरत के हिसाब से?

मक्का की खेती में सही किस्म चुनना, समझो आधा खेल जीतने जैसा है। इसकी कई किस्में हैं, जो अलग-अलग मौसम और ज़रूरतों के हिसाब से बनी हैं:

  • खरीफ के लिए: प्रताप मक्का 3, एचएम-4, या फिर गंगा 5, शक्तिमान, पूसा एचएम 9, पीएमएच 6 जैसे अच्छे देसी हाइब्रिड ।
  • रबी के लिए: विवेक मक्का-27, माहीकांती, या फिर गंगा 11, डेक्कन 101, 103, 105 जैसी देर से पकने वाली किस्में ।
  • चारे के लिए: जीएनयू मक्का चारा-1, या चारा ज्वार की किस्म पंत चारी 12 (यूटीएफएस 79) ।

अपने इलाके की जलवायु और अपनी ज़रूरत (अनाज चाहिए या चारा) के हिसाब से किस्म चुनना सबसे समझदारी का काम है। अगर कोई दुविधा हो, तो अपने स्थानीय कृषि केंद्र या कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेना कभी मत भूलना ।

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3. खेत की तैयारी मजबूत नींव डालो

किसी भी इमारत की नींव मज़बूत होनी चाहिए, वैसे ही फसल के लिए खेत की तैयारी भी दमदार होनी चाहिए।

जुताई:

सबसे पहले तो मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई कर दो । फिर 2-3 बार देशी हल या रोटावेटर चलाकर मिट्टी को एकदम भुरभुरी बना लो । अगर गोबर की खाद डालनी हो, तो आखिरी जुताई के समय पूरी तरह सड़ी हुई खाद मिट्टी में अच्छे से मिला दो ।

समतल करना:

जुताई के बाद खेत को अच्छे से समतल (चपटा) करना बहुत ज़रूरी है, ताकि पानी कहीं जमा न हो और जल निकासी का पक्का इंतज़ाम रहे ।

खाद:

खेत की तैयारी के दौरान, प्रति एकड़ 8-10 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद डालना न भूलना । ये मक्के को शुरुआती ताकत देगा और मिट्टी की सेहत भी सुधारेगा ।

4. बुवाई सही समय और सही तरीका?

बुवाई का सही समय और तरीका जानना बहुत ज़रूरी है, तभी फसल अच्छी होगी।

कब बोएँ?

  • खरीफ: जून-जुलाई का महीना सबसे बढ़िया है, जब मानसून की पहली बारिश हो जाए । अगर सिंचाई का साधन है, तो मानसून से 10-15 दिन पहले भी बो सकते हो, इससे पैदावार बढ़ सकती है ।
  • रबी: अक्टूबर-नवंबर में बुवाई कर सकते हो।
  • जायद: फरवरी-मार्च का समय जायद के लिए ठीक है। मार्च के दूसरे सप्ताह में बुवाई करने पर अप्रैल के तीसरे सप्ताह में सबसे ज़्यादा उपज मिल सकती है ।

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कैसे बोएँ?

  • बीज दर: एक एकड़ के लिए 8-10 किलो बीज काफी होता है ।
  • दूरी: पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20-30 सेमी रखनी चाहिए ।
  • उपचार: बीज बोने से पहले उसे उपचारित करना बेहद ज़रूरी है, ताकि फसल में बीमारी न लगे और उत्पादन न घटे । इसके लिए थायमेथोक्सम 19.8% या साइनट्रेनिलिप्रोल 19.8% का 6 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से इस्तेमाल कर सकते हो । या फिर क्लोरोपायरीफॉस पाउडर 6-8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई से पहले मिट्टी में मिला सकते हो ।
  • तरीका: बीज को 3-5 सेमी गहराई पर बोओ और हल्की मिट्टी से ढक दो । मेड़ों पर बुवाई करनी हो तो मेड़ों को पूरब से पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए ।

5. खाद का इंतजाम पौधों को पोषण दो?

मक्का की फसल को अच्छी पैदावार देने के लिए भरपूर पोषण चाहिए, इसलिए खाद का सही इंतज़ाम करना बहुत ज़रूरी है।

गोबर की खाद:

बुवाई से पहले खेत में 10-15 टन प्रति हेक्टेयर (लगभग 4-6 टन प्रति एकड़) अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिला देनी चाहिए । अगर केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट है, तो 12-15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिला सकते हो ।

रासायनिक खाद:

  • नाइट्रोजन (N): 80-120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (लगभग 32-48 किलोग्राम प्रति एकड़) ।
  • फॉस्फोरस (P): 40 किलोग्राम प्रति एकड़।
  • पोटाश (K): 20 किलोग्राम प्रति एकड़।

खाद डालने का तरीका:

  • बुवाई के समय: फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा के साथ नाइट्रोजन की आधी मात्रा डाल दो ।
  • 20-25 दिन बाद: नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा का पहला हिस्सा (लगभग 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालो ।
  • 40-45 दिन बाद: बाकी बचा नाइट्रोजन (लगभग 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) डाल दो ।

अगर खेत में जिंक की कमी हो, तो आखिरी जुताई के समय 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का छिड़काव कर सकते हो, लेकिन इसे फॉस्फेटिक उर्वरकों के साथ मत मिलाना । सही मात्रा में खाद डालने से पौधे में कीट और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है, और दाने की चमक व आकार भी बेहतर होता है ।

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6. सिंचाई पानी का सही हिसाब रखो

मक्का की फसल को पानी की सही मात्रा मिलना बहुत ज़रूरी है, न कम न ज़्यादा।

  • खरीफ में: इस मौसम में बारिश काफी होती है, इसलिए सबसे ज़रूरी है कि खेत में पानी जमा न हो, जल निकासी का पूरा ध्यान रखो । अगर लंबे समय तक सूखा रहे, तो ज़रूरत पड़ने पर 1-2 हल्की सिंचाई कर सकते हो ।
  • रबी और जायद में: इन मौसमों में 7-8 सिंचाइयों की ज़रूरत पड़ सकती है । खासकर जब बालियाँ निकलें (पुष्पन अवस्था) और दाने भरने लगें, तब पानी देना बहुत ज़रूरी होता है, ये मक्का के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवस्थाएँ हैं ।

पूरे फसल चक्र में मक्का को लगभग 400-600 मिमी पानी की ज़रूरत होती है । ध्यान रहे, ज़्यादा पानी मत देना, वरना जड़ें सड़ सकती हैं और फसल को नुकसान हो सकता है । रेतीली मिट्टी को ज़्यादा पानी की ज़रूरत हो सकती है, जबकि भारी मिट्टी में जल निकासी का खास ध्यान रखना पड़ता है ।

7. खरपतवार – इनसे छुटकारा पाओ

खरपतवार हमारी फसल के दुश्मन होते हैं, ये मक्के की सारी ताकत और पोषण चुरा लेते हैं। इनसे छुटकारा पाना बहुत ज़रूरी है।

निराई-गुड़ाई: बुवाई के 15-20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई ज़रूर करो । फिर 35-40 दिन बाद एक बार और निराई-गुड़ाई करनी चाहिए । इससे खरपतवार निकल जाते हैं और मिट्टी में हवा का संचार भी अच्छा होता है ।

रासायनिक नियंत्रण: अगर हाथ से निराई-गुड़ाई करने का समय या साधन नहीं है, तो रासायनिक खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल कर सकते हो। बुवाई के बाद 48 घंटे के अंदर पेंडिमेथालिन 38.7% सीएस (जैसे BASF स्टॉम्प एक्स्ट्रा) का 600 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हो । या फिर अंकुरण से पहले एट्राजीन 600-800 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हो । मक्के की फसल में सभी प्रकार के खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए बायर लॉडिस (टेम्बोट्रियोन 42% एससी), BASF टाइनज़र (टोप्रामेज़ोन 33.6% एससी), या सिंजेन्टा कैलारिस एक्स्ट्रा (मेसोट्रिओन 2.27% + एट्राज़ीन 22.7% एससी) जैसे खरपतवारनाशकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है ।

अन्य तरीके: खेत की अच्छी तरह जुताई और समतल करना भी खरपतवार नियंत्रण का पहला कदम है । मक्का की समय पर बुवाई करने और मल्चिंग (जैसे भूसे या प्लास्टिक शीट का उपयोग) से भी खरपतवारों का दबाव कम किया जा सकता है ।

8. कीट और रोग – फसल को बचाओ

अपनी फसल को कीटों और रोगों से बचाना भी उतना ही ज़रूरी है, जितना उसे पोषण देना।

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रोग:

  • पत्ती झुलसा और रूट रॉट: अगर ऐसे रोग दिखें, तो तुरंत रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर जला दो। ज़रूरत पड़ने पर फफूंदनाशक (जैसे मैनकोजेब) का छिड़काव कर सकते हो।
  • सामान्य बचाव: कीट और रोगों से बचाव के लिए समय-समय पर फसल का निरीक्षण करते रहना चाहिए । खेत में पड़े पुराने खरपतवार और फसल के अवशेषों को नष्ट करना भी ज़रूरी है ।

कीट:

तना छेदक: इस कीट की सूँड़ियाँ तने को अंदर से खाती हैं, जिससे पौधा सूख जाता है । इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 6 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन कर सकते हो अगर प्रकोप ज़्यादा हो, तो फिप्रोनिल 0.3% जी.आर. (7-13 किलोग्राम प्रति एकड़) या डाइमेथोएट 30% ईसी (250-300 मिलीलीटर प्रति एकड़) का प्रयोग कर सकते हो ।

फॉल आर्मीवर्म: इस कीट को रोकने के लिए 10-12 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाओ । जैविक कीटनाशक के रूप में बेसिलस थुरिंजिएन्सिस (Bt) का उपयोग कर सकते हो । रासायनिक नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी (100 ग्राम प्रति एकड़) या स्पिनेटोरम 11.7% एससी (100 मिली प्रति एकड़) का 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हो । क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 9.3% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 4.6% जेडसी (सिंजेंटा एमप्लिगो) की 80 मिली मात्रा का छिड़काव भी प्रभावी है ।

माहू: इस कीट के नियंत्रण के लिए 4-6 स्टिकी ट्रैप लगाओ। रासायनिक रूप से थियामेथोक्सम 25% डब्ल्यू.जी. (40-80 ग्राम प्रति एकड़) या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी (100 ग्राम प्रति एकड़) का छिड़काव कर सकते हो ।

याद रखो, एक ही कीटनाशक का बार-बार उपयोग नहीं करना चाहिए । किसी भी कीटनाशक के प्रयोग से पहले कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है ।

9. कटाई और उत्पादन – मेहनत का फल

अब बात करते हैं आपकी मेहनत के फल की – कटाई और उत्पादन की।

कब काटें?

मक्का की कटाई तब करनी चाहिए जब बालियाँ सूखने लगें और दाने एकदम सख्त हो जाएँ । आमतौर पर, मक्का की ज़्यादातर किस्में बोने से लेकर कटाई तक 100-120 दिनों में तैयार हो जाती हैं । कटाई के समय दानों में नमी की मात्रा 30-35% या उससे कम हो तो सुखाने का खर्च कम आता है ।

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कैसे काटें?

बालियों को तोड़कर धूप में अच्छी तरह सुखा लो। फिर दानों को निकालकर अच्छे से साफ कर लो।

उत्पादन:

अगर हाइब्रिड किस्मों का चुनाव किया है और सही तरीके से देखभाल की है, तो 20-25 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन मिल सकता है। कुछ संकर किस्में तो 65-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (लगभग 26-28 क्विंटल प्रति एकड़) तक उपज दे सकती हैं । अच्छी देखभाल और वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने पर उत्पादन और भी ज़्यादा हो सकता है।

10. बेचो और मुनाफा कमाओ

अब जब फसल तैयार है, तो उसे बेचकर मुनाफा कमाने की बारी है।

मक्का की बाज़ार में हमेशा अच्छी माँग रहती है – चाहे अनाज के रूप में हो, पशुओं के चारे के लिए हो, या फिर स्टार्च और अन्य उद्योगों में।

कहाँ बेचें?

आप अपनी फसल को स्थानीय मंडी में बेच सकते हो, निजी खरीदारों से संपर्क कर सकते हो, या सीधे उद्योगों को भी बेच सकते हो।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का फायदा:

सरकार ने मक्का के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है । कई राज्यों में मंडियों में मक्का का भाव 2200 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक रहता है, और मुंबई जैसी कुछ मंडियों में तो यह 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक भी पहुँच जाता है । इसलिए, सरकार द्वारा तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा उठाना मत भूलो।

अगर चारा बेचना हो, तो सीधे पशुपालकों से संपर्क करना सबसे अच्छा रहेगा।

निष्कर्ष: मक्का की खेती का सही तरीका: मुनाफा कमाने का देसी फंडा

तो किसान भाइयों, जैसा कि हमने देखा, मक्का की खेती वाकई हमारे किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसकी सबसे बड़ी खासियतें हैं – कम लागत, कम पानी की ज़रूरत और हर मौसम में उगने की क्षमता। अगर आप वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते हो, सही समय पर खाद-पानी देते हो, और कीटों-रोगों से अपनी फसल को बचाते हो, तो यकीन मानो, मोटा मुनाफा कमाना पक्का है।

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