किसान भाई, मक्का की फसल तो आप जानते ही हो – ये अनाज, चारा और उद्योगों तीनों में काम आता है। लेकिन मक्का से असली मुनाफा तब ही मिलेगा जब आप इसे सही तरीके से खाद और पानी दो। मक्का की फसल थोड़ी नाजुक भी होती हैमक्का की फसल में खाद और पानी: देसी अंदाज़ में पूरी जानकारी और थोड़ी मेहनती भी। अगर खाद-पानी संतुलित हो गया, तो उत्पादन ऐसा बढ़ेगा कि मंडी में खुद व्यापारी बुलाने आएंगे।
तो चलो, एक-एक करके बात करते हैं कि मक्का में किस समय कितनी खाद देनी है, सिंचाई कब करनी है, और किस मौसम में क्या ध्यान रखना है।
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1. मक्का को कितनी और कौन-कौन सी खाद चाहिए?
मक्का की फसल को बढ़ने और अच्छा दाना बनने के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (NPK) की ज़रूरत होती है। इसके अलावा जिंक, सल्फर और बायोफर्टिलाइज़र का इस्तेमाल भी फायदेमंद होता है।
ज़रूरी खादों का तालिका
खाद का नाम | मात्रा (प्रति हेक्टेयर) | इस्तेमाल का समय |
नाइट्रोजन (Urea) | 120-150 कि.ग्रा | तीन किस्तों में |
फॉस्फोरस (DAP) | 60 कि.ग्रा | बुवाई के समय |
पोटाश (MOP) | 40 कि.ग्रा | बुवाई के समय |
जिंक सल्फेट | 25 कि.ग्रा | खेत तैयारी या छिड़काव के रूप में |
वर्मी कम्पोस्ट | 5-10 टन | बुवाई से पहले खेत में |
बायोफर्टिलाइज़र (Azotobacter आदि) | 500 ग्राम | बीज उपचार के रूप में |
2. खाद देने का सही तरीका और समय
अब खाद का नाम तो जान गए, लेकिन इसे देना भी एक कला है। अगर गलत समय पर या एक बार में सारी खाद डाल दी, तो नुकसान हो सकता है।
खाद देने का देसी तरीका:
- बुवाई से पहले: जब आप खेत की अंतिम जुताई करते हो, उसी समय DAP, पोटाश और वर्मी कम्पोस्ट खेत में मिला दो।
- बुवाई के 20-25 दिन बाद: पहली सिंचाई के साथ नाइट्रोजन (Urea) की पहली खुराक डालो।
- बुवाई के 40-45 दिन बाद: दूसरी खुराक नाइट्रोजन की दो, जब पौधा तेजी से बढ़ रहा होता है।
- अगर मक्का में बालियां आ रही हों: हल्का सा फॉल्यर स्प्रे जिंक का कर सकते हो।
इस तरह धीरे-धीरे खाद देने से फसल पूरी तरह पोषण लेती है और जड़ें जलती नहीं।
3. मक्का की फसल में सिंचाई कब और कितनी करनी चाहिए?
किसान भाई, मक्का की फसल को भरपूर उत्पादन देने के लिए सही समय पर सिंचाई बहुत ज़रूरी होती है। खासतौर पर रबी और जायद सीजन में, जब बारिश नहीं होती, तब बिना सिंचाई के फसल कमजोर रह जाती है। मक्का की खेती में कुल 4-5 बार सिंचाई करना पर्याप्त होता है, लेकिन ये सिंचाई फसल के खास विकास चरणों पर होनी चाहिए, जैसे बीज अंकुरण, घुटना निकलने, फूल आने से पहले और दूध अवस्था में। अगर इन समयों पर पानी नहीं मिला, तो दानों का आकार और संख्या दोनों घट सकते हैं।
पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो जाए। दूसरी सिंचाई 20-25 दिन पर जब पौधे में घुटना निकलने लगे। तीसरी सिंचाई 45-50 दिन पर फूल आने से ठीक पहले करनी चाहिए, क्योंकि यही वह समय है जब पौधा सबसे ज्यादा पोषक तत्व लेता है। चौथी सिंचाई दूध अवस्था में करें यानी जब दानों में भराव शुरू हो रहा हो। अगर गर्मी बहुत ज्यादा हो और जमीन रेतिली हो, तो 5वीं सिंचाई भी करनी पड़ सकती है। ध्यान रहे, मक्का की जड़ों में पानी जमा न हो, इसलिए जल निकासी का भी सही इंतजाम जरूरी है।
सिंचाई का तालिका
फसल की अवस्था | सिंचाई का समय | विशेष ध्यान |
बुवाई के समय | हल्की सिंचाई | मिट्टी में नमी रहनी चाहिए |
अंकुरण के बाद | 10-12 दिन में | ज्यादा नमी न हो |
घुटना अवस्था | लगभग 30 दिन | सबसे ज़रूरी समय |
फूल अवस्था | 45-50 दिन | नमी की कमी से दाने कम बनते हैं |
दाना भरने की अवस्था | 60-70 दिन | अच्छी पैदावार के लिए ज़रूरी |
अंतिम सिंचाई | फसल पकने से 15 दिन पहले | बस हल्की सिंचाई करो |
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4. सिंचाई का देसी जुगाड़: खर्चा कम, फायदा ज़्यादा
कई बार किसान भाई सोचते हैं कि बार-बार सिंचाई करना महंगा पड़ेगा, लेकिन कुछ देसी तरीके अपनाओ तो खर्चा भी कम होगा:
- टपक सिंचाई (Drip Irrigation): एक बार लगाओ, सालों चलाओ। हर पौधे को सीधा पानी मिलता है।
- नाली विधि से बुवाई: इससे सिंचाई में पानी कम लगता है और पौधों को भरपूर नमी मिलती है।
- ग्लाइकोजेल या सुपर एब्ज़ॉर्बेंट जेल: मिट्टी में मिलाने से पानी ज्यादा समय तक बना रहता है।
5. खाद और पानी की गड़बड़ी से होने वाली दिक्कतें
खाद और पानी अगर संतुलित मात्रा में न दिए जाएं, तो मक्का की फसल पर बड़ा असर पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर नाइट्रोजन की कमी हो गई, तो पौधे पीले पड़ने लगते हैं और उनकी बढ़त रुक जाती है। वहीं अगर नाइट्रोजन जरूरत से ज्यादा दे दिया जाए, तो पौधे तो खूब हरे-भरे दिखेंगे, लेकिन दाने बहुत कम बनेंगे। फॉस्फोरस और पोटाश की कमी से जड़ें कमजोर हो जाती हैं और पौधे आसानी से गिर सकते हैं। इसलिए मिट्टी की जांच के आधार पर ही उर्वरक देना चाहिए।
पानी की बात करें, तो जरूरत से कम पानी देने पर पौधों में सूखापन और दानों में झुलस आ जाती है। दूसरी तरफ अगर खेत में पानी भर जाए या बार-बार सिंचाई हो जाए, तो जड़ें सड़ने लगती हैं और रोग बढ़ने लगते हैं। खासकर दूध अवस्था में पानी की कमी फसल के वजन और दाने की गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करती है। इसलिए खाद और पानी दोनों को समय पर और संतुलन से देना ही उन्नत खेती की असली कुंजी है।
- पौधा पीला पड़ेगा या मरझा जाएगा।
- दाने अधूरे रहेंगे या बालियां खाली रह जाएंगी।
- जड़ें जल सकती हैं अगर Urea ज्यादा पड़ जाए।
- फसल में रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
इसलिए खाद-पानी में संतुलन बहुत ज़रूरी है, जैसे घर की रसोई में नमक और मिर्च। ;
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6. मक्का में जैविक खादों का महत्व
अगर आप जैविक खेती कर रहे हो, तो घबराने की ज़रूरत नहीं है। मक्का जैविक खादों से भी बढ़िया पैदावार देता है।
- गोबर की खाद: 10-12 टन प्रति हेक्टेयर बुवाई से पहले।
- नीम की खली: कीटों से बचाव और पोषण दोनों।
- वर्मी कम्पोस्ट: मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर बनाता है।
- जैव उर्वरक (Biofertilizer): जैसे PSB, Azospirillum – जड़ों की ताकत बढ़ाते हैं।
7. बारिश के मौसम में सिंचाई और खाद देने की रणनीति
मानसून में खेत में पानी ज्यादा हो सकता है, ऐसे में क्या करें?
- खाद को छिड़काव (Foliar spray) के रूप में दो।
- खेत की नालियों को साफ रखो ताकि पानी रुके नहीं।
- यूरिया देने के बजाय नाइट्रोजन स्प्रे करो – खर्चा भी कम, असर भी ज्यादा।

8. खेत की मिट्टी के हिसाब से खाद-पानी का फर्क
हर खेत एक जैसा नहीं होता। बलुई, दोमट या चिकनी मिट्टी – सबकी ज़रूरतें अलग हैं।
मिट्टी का प्रकार | सिंचाई की जरूरत | खाद की रणनीति |
बलुई मिट्टी | बार-बार हल्की सिंचाई | खाद धीरे-धीरे दें |
दोमट मिट्टी | संतुलित सिंचाई | पूरा डोज दे सकते हैं |
भारी चिकनी मिट्टी | कम सिंचाई | नमी बनाए रखने के उपाय करें |
9. खेत की जांच: खाद की मात्रा का सही फैसला
मक्का की उन्नत खेती करने से पहले सबसे जरूरी काम है – अपने खेत की मिट्टी की जांच कराना। बिना जांच के अगर आप खाद डालोगे, तो या तो ज़रूरत से ज्यादा खर्च होगा या फिर पौधों को पूरी खुराक नहीं मिलेगी। मिट्टी जांच से यह पता चलता है कि खेत में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक जैसे पोषक तत्व कितनी मात्रा में मौजूद हैं और कौन-से कम हैं।
जांच के बाद जो मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) मिलता है, उसमें साफ लिखा होता है कि किस पोषक तत्व की कितनी मात्रा देनी है। जैसे अगर खेत में पहले से फॉस्फोरस पर्याप्त है, तो उसे कम करना चाहिए और नाइट्रोजन या जिंक की कमी है तो उसकी पूर्ति करनी चाहिए। इससे खाद की बर्बादी भी रुकती है, लागत भी घटती है और पैदावार में जबरदस्त बढ़ोतरी होती है। इसलिए उन्नत खेती की पहली सीढ़ी है – खेत की मिट्टी की जांच कराना।
- कौन सी खाद की कमी है?
- मिट्टी का पीएच क्या है?
- कितनी मात्रा में खाद देनी चाहिए?
इससे आप पैसे भी बचाओगे और फसल भी खुश रहेगी।
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10. मक्का में ड्रिप फर्टिगेशन का नया तरीका
नए जमाने के किसान अब ड्रिप फर्टिगेशन (खाद+पानी साथ-साथ) का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें समय बचता है और खाद सीधा जड़ में जाती है।
- हफ्ते में 1-2 बार ड्रिप से सिंचाई करो
- खाद को पानी में घोलकर सीधे पाइप से दो
- उत्पादन 15-20% तक बढ़ सकता है
10 रोचक फैक्ट्स: मक्का की खाद और पानी से जुड़े
- मक्का को सबसे ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत होती है – कुल उर्वरकों में 50% हिस्सा।
- अगर फूल आते वक्त पानी कम हुआ, तो उत्पादन आधा भी रह सकता है।
- नाइट्रोजन का ज्यादा डोज पौधे को तो हरा बनाता है, पर दाना नहीं बनता।
- DAP में फॉस्फोरस के साथ थोड़ा नाइट्रोजन भी होता है – दो फायदे एक साथ।
- जिंक की कमी से पत्ते सफेद पड़ने लगते हैं, इसीलिए जिंक जरूरी है।
- फसल के 30-35 दिन बाद पानी नहीं देने से बालियां कम बनती हैं।
- वर्मी कम्पोस्ट से मिट्टी की हवा पकड़ने की ताकत बढ़ती है।
- टपक सिंचाई से पानी की 40-50% बचत होती है।
- मानसून में छिड़काव (Spray) वाली खाद ज़्यादा असरदार होती है।
- खेत की मिट्टी में अगर नमक ज़्यादा है, तो पोटाश की मात्रा बढ़ानी पड़ती है।
निष्कर्ष: मक्का की फसल में खाद और पानी: देसी अंदाज़ में पूरी जानकारी
तो भाई, बात साफ है – मक्का की फसल में अगर सही मात्रा में, सही समय पर खाद और पानी दे दिए, तो फसल ना सिर्फ हरी-भरी होगी बल्कि मंडी में झंडे गाड़ देगी। देसी जुगाड़, मौसम के हिसाब से रणनीति और थोड़़ी जानकारी – बस इतना ही चाहिए मक्का की उन्नत खेती के लिए।
नमस्कार किसान भाइयों आप लोगों को यह आर्टिकल पढ़ाकर कैसा लगा है अगर अच्छा लगा हो तो दोस्तों के पास शेयर करो