नमस्कार किसान भाई, जब भी हेल्दी स्नैक्स की बात होती है, तो मखाना का नाम सबसे ऊपर आता है। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि ये मखाना आखिर होता कहां है? इसे उगाया कैसे जाता है? और किस राज्य में सबसे ज़्यादा होता है? मखाना क्या है और ये इतना खास क्यों है?
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मखाना यानी फॉक्स नट, असल में एक जल-जंतु पौधे (Euryale ferox) का बीज होता है। ये तालाबों, पोखरों और गहरे पानी वाले इलाकों में उगता है। ये बीज सफेद, हल्के और कुरकुरे होते हैं, जिन्हें तलकर हम स्नैक के तौर पर खाते हैं। मखाना का इस्तेमाल पूजा से लेकर डायबिटीज डाइट तक में होता है।
मखाना खास इसलिए है क्योंकि:
- ये पूरी तरह नेचुरल होता है।
- कम कैलोरी और हाई प्रोटीन वाला होता है।
- इसे उगाने के लिए रासायनिक खादों या कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं होती।

1. भारत में मखाना कहां उगाया जाता है? – राज्यों की पूरी लिस्ट
अगर आप मखाना की खेती की बात करें, तो भारत में इसका सबसे ज़्यादा उत्पादन बिहार राज्य में होता है। खासकर मिथिलांचल क्षेत्र जैसे दरभंगा, मधुबनी, और सुपौल जिले मखाना उत्पादन के बड़े केंद्र माने जाते हैं। यहां की जलवायु और मिट्टी मखाना की फसल के लिए एकदम अनुकूल होती है। इसके अलावा मखाना की पारंपरिक खेती से जुड़े कई किसान अब इसे वैज्ञानिक तरीकों से भी उगा रहे हैं, जिससे उत्पादन और मुनाफा दोनों बढ़ रहा है।
बिहार के बाद मखाना की खेती कुछ और राज्यों में भी होने लगी है। पश्चिम बंगाल, असम, मणिपुर, त्रिपुरा, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी अब मखाना की खेती शुरू हो चुकी है, खासकर उन इलाकों में जहां पानी से भरे तालाब, पोखर या दलदली ज़मीन उपलब्ध है। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की मदद से अब यह खेती धीरे-धीरे और राज्यों में भी फैल रही है, जिससे किसानों को एक नया विकल्प और बेहतर आय का स्रोत मिल रहा है।
राज्य | प्रमुख जिले | विशेषता |
बिहार | दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, सुपौल | भारत का 80% मखाना यहीं होता है |
असम | नगांव, शिवसागर | पारंपरिक खेती, प्राकृतिक जल स्रोत |
त्रिपुरा | खोवाई, धलाई | पूर्वोत्तर में तेजी से बढ़ रही खेती |
उत्तर प्रदेश | देवरिया, कुशीनगर | हाल ही में शुरुआत हुई है |
झारखंड | कोडरमा, गिरिडीह | दलदली क्षेत्र और तालाबों में उगाई जाती है |
इन राज्यों में खासकर बिहार का मिथिलांचल क्षेत्र (दरभंगा, मधुबनी) तो मखाना का गढ़ माना जाता है। यहां की मखाना को GI टैग भी मिला हुआ है।
2. मखाना उगाने के लिए कौन-सी जगह और मौसम चाहिए?
मखाना की खेती मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में होती है जहाँ जलभराव वाले तालाब, डुबाई वाले खेत या दलदली जमीन मौजूद हो। बिहार का मिथिलांचल क्षेत्र जैसे दरभंगा, मधुबनी, सहरसा और सुपौल जिले मखाना उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं, क्योंकि यहां की जमीन और जलवायु इसकी खेती के लिए आदर्श है। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, असम और मणिपुर जैसे राज्य भी मखाना उत्पादन में आगे हैं। अगर आपके इलाके में प्राकृतिक या कृत्रिम तालाब हैं तो आप भी मखाना की खेती कर सकते हैं।
मौसम की बात करें तो मखाना उगाने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे ज्यादा अनुकूल होती है। इसकी बुवाई गर्मियों में की जाती है, यानी मार्च से अप्रैल के बीच, और कटाई सितंबर से अक्टूबर तक होती है। इस दौरान तापमान 25°C से 35°C के बीच होना चाहिए और हल्की वर्षा या सिंचाई की सुविधा जरूरी है। ध्यान रहे, मखाना को ठंडी या बहुत सूखी जलवायु पसंद नहीं है, इसलिए खेती के समय सही मौसम का चुनाव बहुत जरूरी होता है।
- स्थान: जहां साल भर पानी बना रहे – जैसे कि पुराना तालाब।
- गहराई: तालाब की गहराई 1.5 से 2 फीट होनी चाहिए।
- मिट्टी: चिकनी और थोड़ी भारी मिट्टी अच्छी रहती है।
- मौसम: मार्च से जून के बीच बुवाई होती है, और अक्टूबर तक कटाई।
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3. मखाना की खेती कैसे होती है? – आसान भाषा में प्रोसेस
मखाना की खेती खासतौर पर पानी से भरे तालाबों में होती है, जहां इसका पौधा कमल की तरह पानी में तैरता है। सबसे पहले किसान पुराने बीजों को तैयार करके मई-जून में बुवाई करते हैं। ये बीज 2-3 दिन पानी में भिगोकर फिर तालाब में डाल दिए जाते हैं। जब पौधा बढ़ने लगता है, तो इसकी पत्तियां पानी की सतह पर फैल जाती हैं और लगभग 2-3 महीने में फल आने लगता है।
इसके बाद अगस्त-सितंबर में मखाने के फल पानी के नीचे गिरते हैं, जिन्हें गोताखोर या किसान पानी में उतरकर इकट्ठा करते हैं। इन फलों को सुखाया जाता है, फिर आग पर भूना जाता है और एक लकड़ी के हथौड़े से फोड़कर सफेद मखाने निकाले जाते हैं। ये पूरी प्रक्रिया मेहनत भरी होती है, लेकिन अगर सही तकनीक अपनाई जाए तो मखाना की खेती काफी मुनाफा दे सकती है।
- बीज की बुवाई: मार्च-अप्रैल में बीजों को तालाब में डाला जाता है।
- पौधे का फैलाव: कुछ हफ्तों में पत्ते पानी की सतह पर फैल जाते हैं।
- फूल और फल: मई-जून में फूल आते हैं, और उसके बाद बीज बनने लगते हैं।
- कटाई: अगस्त-सितंबर में बीजों को पानी से निकालकर इकट्ठा किया जाता है।
- सुखाना और तलना: बीजों को सुखाकर भूना या तला जाता है, जिससे कुरकुरा मखाना तैयार होता है।
4. किसान को इससे कितना मुनाफा हो सकता है?
अगर किसान वैज्ञानिक तरीके और सही समय पर खेती की सभी जरूरी प्रक्रिया अपनाए, तो मुनाफा काफी अच्छा हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर वह उन्नत बीज का इस्तेमाल करे, समय पर सिंचाई और खाद डाले और फसल सुरक्षा उपाय अपनाए, तो उत्पादन बढ़ जाता है। अधिक उत्पादन का मतलब है कि किसान मंडी में ज्यादा अनाज बेच सकता है, जिससे आमदनी में सीधा इज़ाफा होता है।
इसके अलावा, अगर किसान अपनी फसल को सीधे बाजार, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या एफपीओ (FPO) के ज़रिए बेचे, तो बिचौलियों से बच सकता है और सही दाम पा सकता है। इससे मुनाफा और बढ़ जाता है। कुल मिलाकर, अगर एक एकड़ में पहले जहां 8–10 क्विंटल फसल होती थी, वही अब 15–18 क्विंटल तक जा सकती है, तो समझ लीजिए कि आमदनी भी दोगुनी के करीब हो सकती है। बस सही तकनीक, समय और जागरूकता जरूरी है।
लागत (1 हेक्टेयर में) | उत्पादन | बाजार मूल्य | संभावित लाभ |
₹30,000 – ₹50,000 | 1.5 – 2 टन मखाना | ₹500 – ₹700/kg | ₹1.5 लाख तक |
मतलब अगर सही से किया जाए, तो मखाना की खेती से धान या गेहूं से कई गुना ज़्यादा कमाई हो सकती है।
5. मखाना को GI टैग क्यों मिला?
GI टैग यानी Geographical Indication – ये टैग तब मिलता है जब किसी उत्पाद की खास पहचान किसी क्षेत्र से जुड़ी हो।मखाना को GI (Geographical Indication) टैग इसलिए मिला क्योंकि यह एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र — खासकर बिहार के मिथिलांचल — में उगाया जाता है और इसकी गुणवत्ता, स्वाद व उत्पादन पद्धति उसी इलाके से जुड़ी हुई है। दरअसल, दरभंगा, मधुबनी, सहरसा जैसे जिलों में मखाने की पारंपरिक खेती की जाती है और यह वहां की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। यही कारण है कि इसे एक “भौगोलिक पहचान” देने के लिए GI टैग दिया गया, जिससे उसकी मौलिकता और ब्रांड वैल्यू सुरक्षित रह सके।
GI टैग मिलने से न सिर्फ मखाना किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पहचान मिली, बल्कि इससे उनके उत्पाद की कीमत भी बढ़ी है। अब कोई और राज्य या देश मिथिला के मखाने को अपने नाम से बेच नहीं सकता। यह टैग उपभोक्ताओं को भी यह भरोसा देता है कि जो मखाना वे खरीद रहे हैं, वह असली और पारंपरिक तकनीक से उत्पादित है।
बिहार के मिथिला मखाना को 2022 में GI टैग मिला है क्योंकि:
- इसकी गुणवत्ता बेहतरीन है।
- इसका स्वाद और कुरकुरापन अलग होता है।
- ये पारंपरिक और जैविक तरीके से उगाया जाता है।
इससे किसान को एक्सपोर्ट का मौका मिलता है और दाम भी अच्छे मिलते हैं।
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6. मखाना को बेचने के लिए कहां जाएं?
आजकल किसान मखाना बेचने के लिए मंडी ही नहीं, बल्कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का भी इस्तेमाल कर रहे हैं:
बिक्री प्लेटफॉर्म | लाभ |
स्थानीय मंडी | तुरंत नकद भुगतान मिलता है |
eNAM पोर्टल | देशभर से खरीदार मिलते हैं |
AgriBazaar, DeHaat | डिजिटल पेमेंट और ट्रैकिंग सुविधा |
FPO और किसान समूह | थोक में बिक्री और मार्केटिंग आसान |
7. मखाना का प्रसंस्करण कैसे होता है?
कच्चा मखाना खाने लायक नहीं होता। इसे प्रोसेस करके कुरकुरा बनाया जाता है। इस प्रोसेस में कई स्टेप होते हैं:
- बीज को उबालना
- छाया में सुखाना
- तलना या भूना जाना
- छिलका हटाना
- साइज के हिसाब से छंटाई
प्रोसेसिंग के बाद ही यह बाजार में बिकता है।

8. मखाना खेती को बढ़ावा देने वाली सरकारी योजनाएं
सरकार भी अब मखाना खेती को प्रोमोट कर रही है। खासकर बिहार, असम और यूपी में:
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) के तहत सब्सिडी
- प्रशिक्षण कार्यक्रम और डेमो प्रोजेक्ट्स
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के ज़रिए मार्गदर्शन
इसके अलावा महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) भी मखाना प्रोसेसिंग में जुड़ रही हैं।
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मखाना से जुड़े 10 रोचक फैक्ट्स
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा मखाना उत्पादक देश है।
- बिहार का मिथिला इलाका “मखाना राजधानी” कहा जाता है।
- एक किलो मखाना तैयार करने के लिए लगभग 5 किलो बीज लगते हैं।
- मखाना की खेती में रासायनिक खाद या कीटनाशक की जरूरत नहीं होती।
- GI टैग मिलने के बाद बिहार का मखाना इंटरनेशनल मार्केट में भी फेमस हो गया है।
- मखाना में एंटीऑक्सीडेंट, कैल्शियम और फाइबर भरपूर होता है।
- डायबिटीज और हार्ट पेशेंट के लिए यह सुपरफूड माना जाता है।
- मखाना की खेती से कई गांवों में महिला रोजगार बढ़ा है।
- मखाना को पूजा-पाठ में भी शुभ माना जाता है।
- बिहार सरकार मखाना एक्सपोर्ट के लिए प्रोसेसिंग हब भी बना रही है।
निष्कर्ष: मखाना कहां होता है? – एक देसी अंदाज़ में पूरी जानकारी।
तो भाई, अब जब तुमने ये आर्टिकल पूरा पढ़ लिया है, तो समझ ही गए होगे कि मखाना सिर्फ खाने का हेल्दी ऑप्शन नहीं, बल्कि किसानों के लिए कमाई का बेहतरीन जरिया भी है। सही जानकारी, थोड़ा तकनीकी सपोर्ट और सरकार की मदद से कोई भी किसान मखाना की खेती करके अपने गांव में अच्छा नाम और दाम कमा सकता है।
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