आलू की पछेती झूलसा रोग क्या है ? कारण, लक्षण एवं बचाव | Late blight of potato in hindi

Late blight of potato in hindi : सब्जियों का राजा कहा जाने वाला आलू रबी की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक हैं। इसकी खेती हमारे देश मे बड़े पैमाने पर की जाती है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सूचना क्रांति के इस युग में भी हमारे देश के अधिकतर किसान इसके उत्पादन क्षमता के अनुरूप उत्पादन प्राप्त नहीं कर पाते। जिसका एक प्रमुख कारण है आलू की फसलों में लगने वाले विभिन्न प्रकार के रोग है। आलू की फसल में लगने वाले इन्हीं लोगों में से एक महत्वपूर्ण रोग है आलू का पछेती झुलसा रोग (late blight of potato in hindi)।

आखिर क्या है आलू की पछेती झूलसा रोग ( late blight of potato in hindi) इसी से सम्बंधित है हमारा आज का यह आर्टिकल। तो चलिए विस्तार से जानते है आलू की इस महत्वपूर्ण रोग को।

आलू की पछेती झुलसा रोग क्या है ? | what is late blight of potato in hindi ? :

आलू का पछेती झुलसा रोग (late blight of potato in hindi) जिसे ‘आलू की आयरिश अंगमारी‘ के नाम से भी जाना जाता है आलू की फसल में लगने वाला एक महत्वपूर्ण एवं अत्यंत विनाशकारी रोग है। यह संसार की उन सभी क्षेत्रों में पाया जाता है जहां पर आलू की खेती की जाती है। इस रोग की जन्म स्थान दक्षिण अमेरिका के उत्तरी ऐन्डेस को माना जाता हैं। ऐन्डेस से ही यह रोग भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों में फैला। भारत मे सर्वप्रथम यह रोग सन् 1870-1880 के बीच मे प्रवेश किया था जो सम्भवतः यूरोप से मंगाये गये आलू के बीजों के साथ भारत में किया था।

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आलू का पछेती झुलसा रोग का कारण | late blight of potato is caused by in hindi :

सब्जियों का राजा आलू की फसल में लगने वाला यह विनाशकारी रोग (late blight of potato in hindi) ‘फाइटाफ्थोरा इनफेस्टैन्स‘ नामक कवक की वजह से होता है जो कवको की एक विशेष श्रेणी ‘मैस्टिगोमाइकोटीना‘ से सम्बंधित होता है।
इस रोग के रोगजनक के जीवन चक्र के विभिन्न अवस्थाओं पर मुख्यतः आद्रता एवं तापमान काफी प्रभावित करता है। रोगजनक के वृद्धि व संक्रमण के लिए 16 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान से लेकर 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के बीच उपयुक्त माना जाता है इससे अधिक यानि के 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान आलू की पछेती झूलसा रोग की वृद्धि को रोके देता है।

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आलू का पछेती झुलसा रोग का लक्षण | late blight of potato symptoms in hindi :

इस रोग (late blight of potato in hindi) का सर्वप्रथम लक्षण भूमि के समीप वाली पत्तियों पर पौधों में फूल आने के समय अथवा अनुकूल वातावरण मिलने पर कभी भी प्रकट हो सकते है। यदि रोग के लक्षण कि बात की जाये तो प्रभावित पत्तियों पर वृत्ताकार अथवा अनियमित आकार के हल्के पीले या हरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते है। यह धब्बे पत्तियों के ऊपरी सिरो या किनारों से बनना आरंभ होते हुए पत्तियों के मध्य भाग की ओर बढ़ते हुए बनते है। नम मौसम मिलने पर यह शीघ्रता से फैल कर भूरे रंग के मृत धब्बों के रूप में विकसित हो जाते हैं और पत्तियों सहित पूरे के पूरे पौधों को अपने गिरफ्त मे ले लेते हैं।

यदि मौसम लगातार नम बना रहता है और वातावरण में बदली एवं हल्की बूंदाबांदी होती रहती है तो पौधे के सभी कोमल भाग एक से चार दिनों के अन्दर ही सड़ कर मर जाते हैं। इसके साथ ही साथ उनमें से एक विशेष प्रकार का दुर्गंध भी आने लगता है। मौसम शुष्क होने की दशा मे यह रोग प्रभावित पत्तियों पर थोड़े से कत्थई रंग के धब्बे ही बन कर रह जाते है तथा यह क्षेत्र कुछ कडे़ हो कर सिकुड़ जाते है।

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आलू का पछेती झुलसा रोग का नियंत्रण | control of late blight of potato disease in hindi :

आलू की पछेती झुलसा रोग (late blight of potato in hindi) के नियंत्रण के निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए 

(A). आलू की बुआई के लिए सदैव ही स्वस्थ्य, रोग मुक्त तथा प्रमाणित बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए।

(B). आलू की खुदाई के बाद रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों एवं कन्दो को नष्ट कर देना चाहिए।

(C). खेत में या उसके आसपास कोई भी खरपतवार को नहीं उगने देना चाहिए क्योंकि यह खरपतवार इस रोग के मृतजीवी के रूप में उत्तरदायित्व होते हैं।

(D). फसल की खुदाई पूर्ण रुप से पक जाने के बाद ही करने चाहिए और पौधों को खेत में ही सूखने देनी चाहिए।

(E). आलू की फसल में अत्यधिक नाइट्रोजनिक उर्वरकों एवं सिंचाई से बचना चाहिए क्योंकि यह दोनों ही इस रोग के प्रकोप को बढ़ा देते हैं अतः फसल में निर्धारित मात्रा में उर्वरक एवं सिंचाई का प्रयोग नही करना चाहिए।

(F). बुवाई के पूर्व आलू के बीजों को एक मिनट के लिए किसी अच्छे कवकनाशी के साथ उपचारित करना चाहिए।

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