जीरा की खेती कैसे करें | cumin seeds farming in india in hindi

जीरा की खेती : जीरा मसालों की एक महत्वपूर्ण फसल है। इसका उपयोग हमारे देश के सभी घरों में होता है। साल भर देश तथा विदेशों में इसकी खूब मांग बनी रहतीं है। ऐसे में जीरा की खेती किसानों की आय का मुख्य जरिया बन सकता है। यदि आप भी जीरा की उन्नत खेती करना चाहते हैं तो पढ़िए किसान सहायता की यह खास लेख

जीरा की खेती का उचित जलवायु :

सर्दियों के मौसम में बोया जाने वाला जीरा के लिए शुष्क एवं हल्का ठंडा मौसम काफी अच्छा होता है। इसके विपरीत फुल व फल बनते समय वायुमंडलीय नमी की अधिकता इसकी खेती को प्रभावित करती हैं। जीरा की खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई के समय 24 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान जबकि फसलों की वृद्धि के समय 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान काफी अच्छा माना जाता है। 30 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तथा 10 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान जीरे के अंकुरण पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

जीरे की खेती की उचित मृदा :

जीरा की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से किया जा सकता है परंतु दोमट मृदा जिसका पीएच मान 5.5 से 7 के बीच में होता है काफी उपयुक्त होता है। वैसी मृदाएं जिसमें कार्बनिक पदार्थ की अधिकता हो तथा जल निकास की भी अच्छी व्यवस्था हो इसकी खेती के लिए काफी अनुकूल माना जाता है।

जीरा की खेतीजीरा की बुआई का समय :

जीरा रबी की फसल (rabi crops) होने के कारण इससे अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई 15 नवंबर से लेकर 30 नवंबर के बीच में करना काफी अच्छा रहता है क्योंकि यह समय जीरा की खेती के लिए काफी अनुकूल होता है।

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 जीरा की खेती के लिए बीज दर :

जीरे से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम रखना काफी सही रहता है क्योंकि जीरा का बीज काफी महीन होता है।

जीरा की उन्नत किस्में :

जीरा की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए अपनी क्षेत्र के अनुसार जीरा की उन्नत किस्म के बीजों का चयन करना चाहिए। कुछ प्रमुख किस्में निम्नलिखित है

(A). जीसी 4 : गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित जीसी 4 जीरे की एक उन्नत किस्म है। 110 से 120 दिनो मे पक कर तैयार हो जाने वाली इस किस्म के पौधे बौने व झाड़ीनुमा होते है तथा 7 से 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज देते हैं।

(B). आरजेड 19 : आरजेड 19 जीरे की एक उन्नत किस्म है जो 110 से 120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म के दाने सुडोल, आकर्षण एवं गहरे भूरे रंग के होते हैं।

(C). आरजेड 209 : यह भी जीरे की एक उन्नत किस्में है जो 120 से 125 दिनो मे पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के दाने बड़े, सुडोल तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं।

 खाद एवं उर्वरक :

जीरा की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए उनके लिए आवश्यक पोषक तत्व पर विशेष ध्यान देना होता है। जीरे की आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 10 से 15 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 45 किग्रा डीएपी, 15 किग्रा पोटाश एवं 15 किलो यूरिया की आवश्यकता होती है। इनमें से यूरिया की आधी मात्रा तथा शेष खादों की पूरी मात्रा को फसलों की बुवाई से पूर्व खेतों की अन्तिम जुताई के समय ही मृदा में मिला देना चाहिए। यूरिया की शेष आधी मात्रा को फसलों के विकास के समय उचित समय पर देना चाहिए।

जीरे की फसल मे सिंचाई :

जीरा रबी की फसल होने के कारण उसकी पानी की जरुरतों की पूर्ति कराने हेतु सिंचाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। फसलों की बुवाई के तुरंत बाद पहली हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इस फसल की दूसरी सिंचाई अंकुरण के समय यानी कि फसलों की बुआई से 8 से 10 दिन बाद करना चाहिए। इसके बाद फसलों की मांग एवं वातावरण के अनुसार 15 से 25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए परंतु ध्यान रहे फसलों के पकते समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए।

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