हरित क्रांति क्या है, हरित क्रांति का अर्थ, परिभाषा एवं प्रभाव | green revolution in india in hindi

Green revolution in hindi : आजादी के बाद से ही भारत के सामने अनेकों समस्याएं थी इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या थी गरीबी व भुखमरी। कहने को तो भारत एक कृषि प्रधान देश था पर आजादी के समय मात्र 36 करोड़ जनसंख्या को भोजन उपलब्ध करना सरकार के लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई थी। इस गंभीर समस्या को निपटने के लिए सरकार द्वारा देश में पहली पंचवर्षीय योजना में अपने मुख्य फोकस के रूप में कृषि विकास को रखा। इसके बावजूद दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान देश ने एक गंभीर खाद्य संकट का सामना किया। तथा देश में गरीबी व भुखमरी एक गंभीर समस्या के रूप में उभरा जिसे देखते हुए सरकार ने सन् 1958 में भारत में खाद्य समस्या की कमी के कारणों की जांच करने वह उसे दूर करने के उपायों को सुझाव के लिए एक टीम का गठन किया। इस गठित टीम ने पूरे देश में अनेक शोध कार्य किया तथा सरकार को यह सुझाव दिया कि भारत को इस गंभीर समस्या से निपटने व खाद्यान्न उत्पादन बढाने के लिए उन क्षेत्रों में अधिक फोकस करना चाहिए जहां पर कृषि उत्पादन बढ़ाने की अधिक संभावना है। इसके परिणाम स्वरूप सरकार ने पहले से ही विकसित हुई कृषि क्षेत्रों को अधिक खाद्यान्न उत्पादन प्राप्त करने के लिए गहन खेती के रूप में चुना गया। तथा अपना पूरा फोकस इन कृषि क्षेत्रों पर ही लगाए रखा जिसके परिणाम स्वरूप 60 के दशक में भारत में कृषि उत्पादन में एक आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। उत्पादन में वृद्धि इतनी अधिक थी कि देश के कई अर्थशास्त्रीयो ने इसे हरित क्रांति (green revolution) नाम दे दिया।

हरित क्रांति का अर्थ | green revolution meaning in hindi :

हरित क्रांति (green revolution) शब्द हरित एवं क्रांति शब्दों से मिलकर बना है जिसमें क्रांति शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी घटना में तेजी से परिवर्तन होने तथा उस परिवर्तन का प्रभाव आने वाले लंबे समय तक रहने से है जबकि हरित शब्द का तात्पर्य कृषि या फसलों से लगाया जाता है अर्थात शाब्दिक अर्थो में देखा जाए तो हरित क्रांति का अर्थ किसी देश में कृषि फसलों के उत्पादन में एक निश्चित समय में ही विशेष गति से वृद्धि का होना तथा उत्पादन मे यह वृद्धि दर आने वाले लंबे समय तक बनाए रखने से हैं।

भारत में हरित क्रांति के जनक | father of the green revolution in india in hindi :

एमएस स्वामीनाथन को भारतीय हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 अगस्त 1925 में कुंभकोणम जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है में हुआ था। यह एक जेनेटिक्स वैज्ञानिक थे जिन्होंने मेक्सिको के बीजों को पंजाब के देशी बीजों के साथ मिश्रित करते हुए एक नई एवं अत्यधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का विकास किये थे। भारत में हरित क्रांति लाने में इनका काफी योगदान था। कृषि मे इन योगदानो के कारण ही इन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

हरित क्रांति के घटक | components of green revolution in hindi :

(A) उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग : हरित क्रांति का सबसे महत्वपूर्ण घटक कृषि में उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग रहा है। हरित क्रांति में प्रयोग की जाने वाली सबसे पहली उन्नतशील बीज ‘नोरीन 10’ थी। जिसे डॉ0 यस. सी. शैली ने सन् 1948 में जापान से अमेरिका लाए थे। भारत में सर्वप्रथम हरित क्रांति के फलस्वरूप मेक्सिको से आया उन्नत किस्म आरोही, सोनारा 63, व वसुंधरा 64 थी। जिसके उपयोग से कृषि उपज काफी बढ गई। लेकिन बाद में डॉ स्वामीनाथन द्वारा मेक्सिको से आए बीजो को देश के देसी किस्म के बीजों को संकरण द्वारा एक नई अत्यधिक उपज देने वाली किस्मों में बदल दिये। जिससे कि देश में कृषि उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि होने लगी

(B) रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग : फसलों के वृद्धि और विकास के लिए 16 आवश्यक पोषक तत्व की आवश्यकता होती है जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश मुख्य हैं। भारतीय मृदाओंं में इन पोषक तत्वों की भारी कमी पाई जाती हैं। हरित क्रांति के पहले कृषक इन पोषक तत्व से अनभिज्ञ थे। तथा गोबर आदि जैविक खादो से अपने कृषि कार्य को करते थे। जिसके कारण कृषि उत्पादन उतना अच्छा नहीं हो पाता था जितना होना चाहिये। परंतु हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप देश में रासायनिक उर्वरकों का उपभोग की मात्रा में काफी तेजी से वृद्धि हुई जिससे देश की मृदा में इन पोषक तत्वों की पूर्ति की वजह से फसलों के उत्पादन में भी सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई।
(C) सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि : फसल उत्पादन में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान है हरित क्रांति के पूर्व देशों में कृषि मानसून के भरोसे ही हुआ करती थी। जिस वर्ष वर्षा अच्छी होती थी उस वर्ष उत्पादन भी अच्छा जाता था। लेकिन जिस वर्ष बारिश कम होती थी उत्पादन भी उसी अनुपात में गिर जाता था। हरित क्रांति के दौरान देश में सिंचाई सुविधा का सर्वाधिक विकास हुआ जिससे देश की प्यासी भूमि को पानी मिलने से देश की फसले झूम उठे तथा उत्पादन भी बढ़ गया।
(D) पौधों को रोगों एवं कीटों से बचाव : फसलों का एक महत्वपूर्ण शत्रु कीट एवं रोग है। हरित क्रांति से पूर्व इनसे बचाव के लिए कोई ठोस उपाय नहीं थे। लेकिन हरित क्रांति के फलस्वरूप देश में कीटों व रोगों से बचाव के लिए तरह-तरह के रासायनिक कीटनाशकों व रोगनाशको का प्रयोग होने लगा। जिससे कि इन कीटो एवं रोगों का बचाव के कारण फसल उत्पादन में भी वृद्धि हुई।
(E) बहु फसली कार्यक्रम : आजादी के समय देश में वर्ष में अधिकतर क्षेत्रों में सिर्फ एक ही फसलों का उत्पादन हुआ करता था। लेकिन हरित क्रांति के बाद देश मे बहु फसली कार्यक्रम को सर्वाधिक जोर दिया गया। यानी किसानों को यह समझाया गया कि वह एक ही खेत में एक ही वर्ष में एक से अधिक फसलों का उत्पादन करें जिससे कि किसानों को अधिक उपज का लाभ होने के साथ ही साथ उत्पादन में भी वृद्धि हो सके। वर्तमान में देश में 68% से अधिक सिंचित क्षेत्रों में बहुफससली खेती की जाती हैंं।
(F) आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग : आजादी के समय हमारे देश के कृषक बैलों से जुताई आदि का कार्य किया करते थे। लेकिन हरितक्रांति के दौरान कृषि को आधुनिकरण किया गया। तथा कृषि मे विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरण का प्रयोग बढावा दिया गया। जिससे कृषि में उत्पादन बनने के साथ ही साथ किसानों को लागत में भी कमी आयी। किसानों को कृषि उपकरण मे विभिन्न प्रकार के सब्सिडी का भी प्रावधान किया गया। जिससे कृषक आसानी से कृषि उपकरण को खरीद सके।
(G) मृदा परीक्षण की स्थापना : हरित क्रांति के दौरान देश की विभिन्न क्षेत्रों में मृदा परीक्षण की स्थापना की गई। तथा किसानों की खेत से मृदाओं को एकत्र कर के उनके खेत मे वहीं पोषक तत्व डाले जाने की सलाह दी गई जिन पोषक तत्व की उनके खेत में कमी थी।
(H) कृषकों को उपज का उचित मूल्य की गारंटी : आजादी के समय देश में कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलने की वजह से अधिकतर किसानो का कृषि कार्य से मोह भंग हो रहा था। लेकिन हरित क्रांति के दौरान सरकार द्धारा देश में कृषि उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए एक आयोग का गठन किया गया। जिसे कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के नाम से जाना जाता हैं। यह आयोग किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए वर्ष में दो बार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है तथा यह आश्वासन देती है कि उनकी उपज का उचित मूल्य दिया जाएगा। जिससे निर्भय हो कर कृषक अपने कृषि कार्य में लग गये।

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