किसान भाइयों नमस्कार, आज हम बात करेंगे कि बारिश के मौसम में अरहर की दाल कैसे बोई जाती है। अरहर दाल हमारी थाली की शान है और इसकी खेती सही तरीके से हो जाए तो आमदनी भी बढ़िया मिलती है। तो चलिए जानते हैं बारिश में अरहर दाल की बुवाई: एक आसान तरीका।
बारिश में अरहर दाल की खेती किसानों के लिए एक बेहतरीन मौका होता है, खासकर अगर बुवाई का समय सही चुना जाए। अरहर की बुवाई का सही समय पहली अच्छी बारिश के बाद जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के मध्य तक माना जाता है। इस समय पर बोई गई फसल की बढ़वार अच्छी होती है और अरहर दाल की पैदावार भी अधिक मिलती है। खेत की तैयारी के दौरान गहरी जुताई, पानी निकासी के लिए नालियां और प्रति एकड़ 8-10 किलो अरहर दाल का बीज का इस्तेमाल, फसल की गुणवत्ता बढ़ा देता है।
सही समय क्या है?
अरहर दाल की बुवाई का सही समय बहुत जरूरी होता है। पहली अच्छी बारिश के बाद जून के आखिरी हफ्ते से लेकर जुलाई के मध्य तक इसे बोया जा सकता है। अगर आप समय पर बुवाई करेंगे तो पौधे मजबूत होंगे और पैदावार अच्छी मिलेगी।

खेत की तैयारी कैसे करें?
अरहर के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी नरम और भुरभुरी हो जाए। 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चला लें और पानी निकलने के लिए खेत में नालियां जरूर बनाएं ताकि बारिश का पानी जमा ना हो।
अगर आप चाहते हैं कि आपकी अरहर की फसल बीमारियों और कीटों से सुरक्षित रहे, तो अरहर में रोग और कीट नियंत्रण पर विशेष ध्यान दें। इसके लिए नीम का अर्क, हल्की दवा का छिड़काव और समय-समय पर निराई-गुड़ाई बहुत जरूरी है। साथ ही अरहर में खाद और उर्वरक के रूप में गोबर की सड़ी हुई खाद और जरूरत अनुसार DAP/NPK मिलाना फायदेमंद रहता है। इस तरह सही अरहर की बुवाई का तरीका अपनाकर, सिंचाई और देखभाल पर ध्यान देकर आप बारिश में भी अच्छी कमाई कर सकते हैं।
बीज कहां से लें और कितना लें?
अच्छा बीज मतलब अच्छी फसल। बीज हमेशा अच्छी दुकान या सरकारी स्रोत से ही लें। एक एकड़ खेत के लिए 8 से 10 किलो बीज पर्याप्त होता है। बुवाई से पहले बीज का दवा से उपचार जरूर कर लें ताकि फफूंद और बीमारी न लगे।
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बुवाई कैसे करें?
अरहर की बुवाई लाइन में करनी चाहिए। इससे खेत में काम करना आसान रहता है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 से 75 सेंटीमीटर रखें और पौधे से पौधे के बीच 20 से 30 सेंटीमीटर का अंतर रखें। बीज को ज्यादा गहराई में न डालें, बस 5-6 सेंटीमीटर ही काफी है।
विषय | जानकारी |
बुवाई का सही समय | पहली बारिश के बाद, जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के मध्य तक |
खेत की तैयारी | गहरी जुताई, 2-3 बार हैरो चलाना, पानी निकासी के लिए नालियां बनाना |
बीज की मात्रा | प्रति एकड़ 8-10 किलो प्रमाणित बीज |
बीज उपचार | बोने से पहले ट्राइकोडर्मा या थाइरम से उपचार करना |
बुवाई का तरीका | लाइन में बुवाई; पंक्ति से पंक्ति 60-75 सेमी., पौधे से पौधे 20-30 सेमी. की दूरी |
गहराई | बीज को 5-6 सेमी. गहराई पर बोना |
खाद का इस्तेमाल | प्रति एकड़ 8-10 टन गोबर की खाद, साथ में DAP/NPK जरूरत अनुसार |
सिंचाई | बारिश सही हो तो सिंचाई की जरूरत नहीं, कम बारिश पर हल्की सिंचाई |
निराई-गुड़ाई | 20-25 दिन बाद खरपतवार निकालना, जरूरत पड़े तो हर्बिसाइड का छिड़काव |
रोग और कीट नियंत्रण | फली छेदक, पत्ती लपेटक से बचाव; नीम का अर्क या हल्की दवा का छिड़काव |
खाद और उर्वरक कब और कितना?
अरहर दाल के लिए गोबर की सड़ी हुई खाद सबसे अच्छी रहती है। बुवाई से पहले प्रति एकड़ 8 से 10 टन गोबर की खाद खेत में मिला दें। इसके अलावा जरूरत के हिसाब से DAP या NPK भी डाल सकते हैं। अरहर खुद नाइट्रोजन फिक्स करती है, फिर भी शुरुआती बढ़वार के लिए हल्की यूरिया दी जा सकती है।

सिंचाई और खरपतवार की देखभाल:
बारिश के मौसम में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती। अगर बारिश कम हो तो हल्की सिंचाई कर सकते हैं। अरहर में घासफूस जल्दी उगती है, इसलिए 20-25 दिन में एक बार निराई जरूर करें। जरूरत पड़े तो खरपतवार नाशक का हल्का छिड़काव कर सकते हैं।
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रोग और कीट से कैसे बचाएं?
अरहर में फली छेदक और पत्ती लपेटक जैसे कीट नुकसान पहुंचा सकते हैं। फसल पर नजर रखें और जरूरत पड़ने पर नीम का अर्क या हल्की दवा का छिड़काव करें। देसी तरीका अपनाना चाहें तो नीम की खली भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
आखिर में एक सलाह:
तो भाइयों, अगर आप यह सारे तरीके अपनाएंगे तो बारिश में अरहर दाल की अच्छी पैदावार ले पाएंगे। मेहनत सही दिशा में हो तो मुनाफा भी अच्छा मिलता है। उम्मीद है अब आपको कोई दिक्कत नहीं होगी। खुश रहो, खेत हरा-भरा रखो.
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