धान का जीवाणु झुलसा रोग क्या है | bacterial leaf blight of rice in hindi

bacterial leaf blight of rice : धान का जीवाणु झुलसा रोग  धान की फसलों में लगने वाला एक महत्वपूर्ण रोग है। यह एक जीवाणु जनित रोग है जो पौधों में Xanthomonas oryzae pv. oryzae नामक जीवाणुओं के कारण उत्पन्न होता है। धान का जीवाणु झुलसा रोग मुख्यतः पर्णीय रोग (foliar disease) है जो धान की पत्तियों पर ही लगता है। इस रोग के प्रभाव के कारण पौधों की पत्तियों झुलस जाती है जिसके कारण इस रोग को धान का झुलसा रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग भारत के सभी राज्यों के साथ ही साथ एशिया के उन सभी देशों मे ब्यापक रूपों में उत्पन्न होती है जहां पर धान की खेती की जाती है। एशियाई देशों के अतिरिक्त धान का झुलसा रोग का प्रकोप मेक्सिको, ऑस्ट्रेलिया एवं रूस में भी देखा गया है।

धान में झुलसा रोग के लक्षण | bacterial leaf blight of rice symptoms in hindi :

पौधों में झुलसा रोग का सर्वप्रथम लक्षण धान के रोपाई के लगभग 5-6 सप्ताह बाद उस समय दिखाई देता है जब पौधे के तने एवं पत्तियां अपनी तीव्र वृद्धि की अवस्था में होती है। संभवत अगस्त माह की शुरुआती अथवा अंतिम दिनों में पौधों की पत्तियों के उपरी सिरो (नोक) पर हल्के हरे एवं पीले रंग के 5 से 10 mm लम्बे धब्बों के साथ इस रोग का जन्म होता है। जो पत्तियों के दोनों सिरो पर बनते है। अनुकुल वातावरण और समय के साथ मिलने पर यह धब्बे तेजी से बढते हुए एक लम्बी-लम्बी धारियों मे बदल जाते है। तथा धब्बों का रंग पीले से बदल कर भूरे रंग का हो जाता है। बाद में ये धब्बे पत्तियों के उपरी सिरो से होते हुए पत्तियों के निचली सिरो की ओर बढते हुए पूरी की पूरी पत्तियों पर फैल जाते है तथा कई धारियाँ आपस मे मिलकर भूरे रंग के विक्षत (lesions) बना लेते है इसके साथ ही पत्तियों सुख जाती हैं। रोग का उग्र अवस्था होने पर पूरा का पूरा पौधा ही सुख जाता है। इस रोग का उग्र प्रकोप उस समय अधिक होता है जब बालियों में दाने बनने की समय आती है।

जापान मे मिला था धान का जीवाणु झुलसा रोग पहला मामला :

धान के फसलों में जीवाणु झुलसा रोग का सर्वप्रथम लक्षण सन् 1884-85 मे जापान के फुकुओका नामक स्थान पर वहां के किसानों के द्वारा देखा। भारत में इस रोग का सर्वप्रथम लक्षण सन् 1951 में मुंबई के खोपोली नामक स्थान पर देखा गया था जो फिलीपींस से आयातित धान के बीजों के साथ यह रोग हमारे देश में प्रवेश किया था। लेकिन उस समय इस रोग की पहचान नहीं की जा सकी थी।

धान का जीवाणु झुलसा रोग के वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण :

इस रोग के वृद्धि विकास और संक्रमण के लिए 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है। अत्यधिक वर्षा, वायू मे अत्याधिक नमी का होना व खेत में गहरा जल भराव इस रोग के वृद्धि के लिए सहायक होते है। इसके विपरीत तेज गर्मी और सूखा धान का जीवाणु झुलसा रोग की वृद्धि के लिए नाकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन युक्ति उर्वरकों का अधिक प्रयोग तथा नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश जैसे उर्वरकों का अनुचित प्रयोग भी इस रोग के वृद्धि के लिए अनुकूल होते हैं। पौधों को छायापन तथा घनी रोपाई रोग के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं।

धान का जीवाणु झुलसा रोग का नियंत्रण | bacterial leaf blight of rice control in hindi :

  • इस रोग के बचाव के लिए खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए।
  • जहां तक संभव है खेत में नाइट्रोजनिक उर्वरको का कम से कम प्रयोग करना चाहिए।
  • बीजों को बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना चाहिए जिससे कि इस रोग के रोगजनक को नष्ट किया जा सके।
  • बुवाई के लिए सदैव ही रोग प्रतिरोधक किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • खड़ी फसल में धान का झुलसा रोग का प्रकोप दिखाई देने पर कापर आक्सीक्लोराइड के साथ स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक रासायन का घोल बना कर छिडकाव करना चाहिए।

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