आलू की उन्नत खेती | Potato farming in hindi | aalu ki kheti

Potato farming in hindi : सब्जियों के राजा के नाम से मसहूर आलू भारत सहित विश्व की एक महत्वपूर्ण फसल है। हमारे देश में उगाई जाने वाली कुल फसलों में धान, गेहूं और मक्का के बाद आलू चौथा सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज एवं विटामिंन से भरपूर आलू की मांग सब्जियों के साथ ही साथ व्यवसायिक एवं प्रसंस्करण के रूप मे हमारे देश में सालभर बनी रहती है। ऐसे में किसानों को अधिक आय प्राप्त हेतु आलू की खेती (aalu ki kheti) किसी मुनाफे से कम नही होती। यदि आप भी इसकी खेती करके अधिक आय प्राप्त करना चाहते है तो पढ़िये किसान सहायता का यह खास लेख

आलू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु | best climate for potato farming in hindi :

आलू रबी की फसल है अतः इसका पौधा अच्छी वृद्धि, विकास एवं सफल उत्पादन हेतु ठंडी जलवायु की मांग करता है। आलू की फसलों की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए 25 से 30℃ तापमान काफी अच्छी मानी जाती है जबकि इसके कन्दो की वृद्धि एवं विकास के लिए 18 से 22℃ का तापमान काफी अनकूल रहता है। कन्दो की वृद्धि एवं विकास के लिए इससे अधिक का तापमान नुकसानदेह माना जाता है इसके साथ ही साथ 30 या उससे अधिक का तापमान इसके कन्दो के विकास को रोक देता है। अतः किसानों को आलू की खेती से अधिक मुनाफा कमाने हेतु इसकी बुआई से लेकर इसके कन्दो के बनने तक के लिए तापमान का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

आलू की बुआई का उचित समय | best time to potato farming in hindi :

जब वातावरण में न्यूनतम तापमान 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में हो तो आलू की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। समान्यतः आलू की अगेती बुवाई मध्य सितंबर से लेकर अक्टूबर के प्रथम सप्ताह के बीच में जबकि आलू की मुख्य फसल की बुवाई मध्य अक्टूबर के बाद करना लाभदायक सिद्ध होता है।

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आलू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी | best soil to potato farming in hindi :

वैसे तो आलू की खेती लगभग सभी प्रकार के मिट्टी में की जा सकती है परंतु इसकी खेती से अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु दोमट अथवा बलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थों की अधिकता तथा जलनिकासी का अच्छी व्यवस्था हो काफी अनकूल रहती है। हल्की अम्लीय मिट्टी जिसका P.H. (पीएच) मान 6 से 6.5 के बीच में हो काफी उपयुक्त रहता है जबकि क्षारीय तथा भारी मिट्टी मे इसकी खेती अच्छी नहीं मानी जाती है।

खेत की तैयारी :

आलू की खेती से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसकी मिट्टी की भुरभुरी होना बेहद जरूरी होता है क्यों कि आलू के कन्दो की वृद्धि एवं विकास इसी पर निर्भर करता है। अतः चयनित खेत को सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करके 3 से 4 जुताई देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करते हुए मिट्टी को भुरभुरी बना कर खेत को समतल कर लेना चाहिए।

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आलू की खेती के लिए बुआई हेतु बीज की मात्रा :

आलू की बुआई के लिए बीज की मात्रा, आलू की बुआई की विधि, पक्तियों की दूरी तथा बुआई हेतु उपयोग किये जाने वाले बीज कन्दो के आकर एवं वजन के ऊपर निर्भर करता है। 2.5 से 3 सेमी व्यास के आकार वाले कन्द बीज जिसका वजन 25 से 30 ग्राम के बीच मे हो की मात्रा प्रति हेक्टेयर 20 से 25 कुन्टल पर्याप्त रहता है।

बीजों के चयन के समय सावधानियां :

आलू की खेती में बीजों का चयन सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसकी खेती से अधिक उपज प्राप्त कराने मे इसके बीजों का अहम योगदान रहता है। इसके साथ ही साथ आलू की खेती के लागत का एक बडा भाग हिस्सा इसी मे खर्च होता है। अतः इसके बीजों का चयन बडे ही सोच समझ कर करना चाहिए तथा इसके बीजों का क्रय किसी विश्वसनीय दुकानों से ही करना है।

अधिक उपज प्राप्त करने हेतु खाद एवं उर्वरक की मात्रा :

आलू की खेती (aalu ki kheti) से अधिक उपज प्राप्त कराने मे खाद एवं उर्वरकों का अहम योगदान होता है। अतः अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु खुब सडी हुई 30 से 40 टन गोबर की खाद को खेत की जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों मे नाइट्रोजन की 180 किग्रा मात्रा तथा आलू के कन्दो की अच्छी वृद्धि एवं विकास हेतु फास्फोरस की 90 से 100 किग्रा मात्रा के साथ ही साथ उसके कन्दो की अच्छी लाइट एवं क्वालिटी प्राप्त करने के लिए पोटाश की 100 से 120 किग्रा की मात्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना लाभदायक होता हैं। इन रासायनिक उर्वरकों मे नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा को खेत की जुताई के समय ही मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा नाइट्रोजन की शेष मात्रा आलू की फसलों में मिट्टी चढाते समय देना चाहिए।

अधिक उपज प्राप्त करने हेतु सिंचाई का प्रबंध :

आलू रबी की फसल है। अतः इसकी खेती से अधिक उपज प्राप्त करने मे सिंचाई का विशेष महत्व है। इसकी खेती से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कुल चार से पांच सिंचाई की आवश्यकता होती है। आलू की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह बाद जबकि दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई से 20 से 25 दिन के बाद अवश्य करना चाहिए। इसके बाद की सिंचाई फसल की जलमांग के अनुसार करना चाहिए।

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